मदरसों में संस्कृत पढ़ाने पर दो फाड़ मुस्लिम समाज, कहा- कर रहे अधिकारों का हनन
उत्तराखंड के मदरसों में संस्कृत पढ़ाने के फैसले को लेकर शुरू हुआ बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा
पब्लिक न्यूज़ डेस्क। उत्तराखंड के मदरसों में संस्कृत पढ़ाने के फैसले को लेकर शुरू हुआ बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा। पहले सूफी इस्लामिक बोर्ड के राष्ट्रीय प्रवक्ता कशिश वारसी ने समर्थन किया था, वहीं अब जमीयत उलेमा हिन्द के लीगल एडवाइजर मौलाना काब रशीद ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कशिश वारसी पर एक तरह से झूठ बोलने का आरोप लगाया, साथ ही हिदायत दी की अफवाह ना फैलाएं। काब रशीदी ने कशिश वारसी के उस बयान की आलोचना की।
इसमें उन्होंने पैगंबर मोहम्मद साहेब के हवाले से कहा था कि इल्म हासिल करने के लिए चीन भी जाने पड़े तो जाना चाहिए। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में सूफी इस्लामिक बोर्ड के राष्ट्रीय प्रवक्ता कशिश वारसी ने मदरसों के अंदर संस्कृत की शिक्षा का स्वागत किया था। उन्होंने कहा था कि जिसको गंदी राजनीति करनी है, वो इस फैसले पर भी करेंगे। कट्टरपंथी अपनी जहनियत इस फैसले पर बताएंगे। उन्होंने कहा कि हमारे नबी मोहम्मद साहब ने साफ तौर पर कहा है कि इल्म हासिल करो, चाहे इसके लिए चीन ही क्यों न जाना पड़े।
चीन के अंदर कुरान व अरबी तो पढ़ाई नहीं जाती, लाजमी है कि वहां लैंग्वेज भी वही होगी। कशिश वारसी यहीं नहीं रूके, उन्होंने सरकार से तमाम मदरसों में अध्यात्मऔर सूफिज्म पढ़ाने की भी सिफारिश कर डाली। कहा कि केवल संस्कृत ही क्यों, अंग्रेजी भी पढ़ाई जानी चाहिए. कशिश वारसी ने देश के तमाम कट्टरपंक्तियों और राजनेताओं से इस मुद्दे पर राजनीति करने से बाज आने की भी सलाह दी थी। कहा था कि इसमें कुछ गलत नहीं हो रहा।
मौलाना काब रशीद का पलटवार
लेकिन उनके इसी बयान पर मुरादाबाद में ही जमीयत उलेमा ए हिन्द के लीगल एडवाइजर मौलाना काब रशीद ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कहा कि मदरसे रिलीजियस एजुकेशन के हब हैं, संविधान में अल्पसंख्यकों को यह अधिकार मिला है कि वह अपने रिलीजन के आधार पर और अपनी लैंग्वेज के आधार पर अपने एजुकेशनल इंस्टीट्यूट बना सकते हैं। यकीनन यहां रिलीजन से संबंधित ही शिक्षा दी जाती है। उन्होंने कहा कि संस्कृत को लेकर उनके मन में कोई भेद नहीं है। लेकिन संस्कृत को तो स्कूल में भी पढ़ा जा सकता है।
कॉलेज में पढ़ सकते हैं, संस्कृत के स्कूल बनाए जा सकते हैं। लेकिन मदरसे में संस्कृत पढ़ाने की बात करना कॉन्स्टिट्यूशन में माइनॉरिटी को मिले अधिकार का हनन है। इसी क्रम में मौलाना काब रशीद ने मोहम्मद साहब के हवाले से दिए गए कशिश वारसी के बयान पर आपत्ति की। उन्होंने कहा कि मोहम्मद साहब ने ऐसी बात कभी नहीं की। इस तरह की बात कर लोगों में मतभेद पैदा करना गलत बात है। उन्होंने कशिश वारसी को हिदायत भी दी कि ऐसा ना करें। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज के दो फीसदी लोग ही मदरसों में शिक्षा लेते हैं। बाकी के 98 फीसदी बच्चे स्कूल कॉलेज जाते हैं। उन्होंने उत्तराखंड सरकार के इस फैसले को महज चुनावी स्टंट बताया।