बाबा नीम करौली ने साल 1964 में उत्तराखंड के भुवाली से सात किलोमीटर आगे श्री नीम करौली आश्रम की स्थापना की, 1900 में उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म हुआ था जानिए

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बाबा नीम करौली ने साल 1964 में उत्तराखंड के भुवाली से सात किलोमीटर आगे श्री नीम करौली आश्रम की स्थापना की, 1900 में उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म हुआ था जानिए

बाबा नीम करौली ने साल 1964 में उत्तराखंड के भुवाली से सात किलोमीटर आगे श्री नीम करौली आश्रम की स्थापना की, 1900 में उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म हुआ था जानिए 

उत्तराखंड का कैंची धाम दुनिभर में मशहूर है, क्रिकेटर विराट कोहली, फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, एप्पल के सह-संस्थापक


पब्लिक न्यूज़ डेस्क- उत्तराखंड का कैंची धाम दुनिभर में मशहूर है, क्रिकेटर विराट कोहली, फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स समेत  कई नामचीन लोग धाम में बाबा नीम करौली के दर्शन के लिए जा चुके हैं। बाबा नीम करौली का जन्म उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद स्थित अकबरपुर में हुआ था। वह गांव में कई साल निर्विरोध प्रधान रहे थे, आज भी उनके गांव में एक डाक बंगलिया है।

गांव वाले बताते हैं कि इस बंगलिया में ही बाबा नीम के पेड़ के नीचे बैठते थे और गांव वालों की शिकायत सुनते थे। कई लोग बाबा के पास आर्थिक मदद मांगने आते थे और बाबा उनके बच्चों की पढ़ाई, शादी और जरूरत के लिए उन्हें पैसे देते थे।जानकारी के अनुसार बाबा को लोग ‘महाराज जी’ के नाम से पुकारते थे, उनका जन्म 1900 में अकबरपुर गांव में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम लक्ष्मण नारायण शर्मा रखा था। वह बचपन से ही हनुमान जी की पूजा करते थे और कई बार उन्होंने अपने पिता से गृहस्थ जीवन त्यागने की बात की। जिससे डर कर उनके परिजनों ने 11 साल की उम्र में ही उनकी शादी कर दी , उनके दो बेटे और एक बेटी है।

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बाबा नीम करौली अक्सर कथा और धार्मिक अनुष्ठानों में विभिन्न राज्यों की यात्रा पर रहते थे। इसी सफर में वह साल 1961 में पहली बार उत्तराखंड पहुंचे। यह जगह उन्हें इतनी पसंद आई की साल 1964 में भुवाली से सात किलोमीटर आगे उन्होंने श्री नीम करौली आश्रम की स्थापना थी। आज इसे ही नीम करौली धाम के नाम से जाना जाता है और सालभर यहां श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं। आश्रम की नींव उन्होंने अपने दोस्त पूर्णानंद के साथ मिल कर रखी थी। बाबा को संस्कृत का काफी ज्ञान था, साल 1973 को वृंदावन के एक अस्पताल में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया था। वृंदावन में ही उनका समाधि स्थल है।