पहले चरण की 58 सीटों पर क्या है दलितों का मन, यहां समझिए पूरा समीकरण

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पहले चरण की 58 सीटों पर क्या है दलितों का मन, यहां समझिए पूरा समीकरण

पहले चरण की 58 सीटों पर क्या है दलितों का मन, यहां समझिए पूरा समीकरण


मेरठ। दलित मतदाता खामोशी के साथ सियासत के हर दांव पेंच पर, नेताओं के भाषणों पर निगाह लगाए है। उसे हाथी की चाल पर भरोसा है तो वह किसान आंदोलन के बाद बदली हवा का रुख भी भांप रहा है। पश्चिम में कानून व्यवस्था और मुफ्त राशन वितरण से लेकर महंगाई जैसे मुद्दों की कसौटी पर भी वह दलों को तौल रहा है। दलितों का मन 10 फरवरी को पहले चरण में 11 जिलों की 58 सीटों पर नतीजों की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगा।

नेताओं के बीच तीखी भाषा में वार-पलटवार का तूफान चरम पर है। भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के बाद अब बसपा सुप्रीमो मायावती भी एक्शन में हैं। भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन नेताओं के दावे हैं कि इस बार चुनावों में दलित वोटों का बंटवारा हो जाएगा और बड़ा हिस्सा उन्हें ही मिलेगा। दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी भी दलित मतदाताओं पर दावा ठोक रही है। वहीं बसपा नेताओं के दावे हैं कि उनके बेस वोट बैंक में कोई सेंध नहीं लगा पाएगा।

राजनीतिक दलों के इस चक्रव्यूह पर दलित मतदाताओं का अपना नजरिया है। मेरठ शहर सीट के औरंगशाहपुर डिग्गी गांव में परचून की दुकान चलाने वाले सुनील कहते हैं कि पांच साल में सरकारी नौकरियां खत्म हो गईं, जिससे आरक्षण की अहमियत नहीं रही। वह कहते हैं कि कानून व्यवस्था सिर्फ कागजों में सुधरी है, हर रोज अपराध हो रहे हैं। सुनील को लगता है कि चंद्रशेखर आजाद युवाओं की आवाज बने हैं पर वह सत्ता में आने की स्थिति में नहीं हैं। उन्हें इस समय किसान आंदोलन ही बड़ा मुद्दा लगता है।

अजंता कॉलोनी निवासी 28 वर्षीय हर्ष कर्दम को सरकारी नौकरी का इंतजार है। वह कहते हैं कि गरीबों को मुफ्त राशन मिला, लेकिन गैस का सिलिंडर एवं अन्य जरूरी चीजें महंगी हो गईं। दूसरे हाथ से दलितों के आरक्षण पर हमला हुआ।

वहीं मेरठ दक्षिण सीट के शेरगढ़ी गांव के बाहर पंक्चर की दुकान चलाने वाले आनंद कहते हैं कि कानून व्यवस्था तो बेहतर हुई है पर महंगाई बढ़ी है। शेरगढ़ी के ही सुदेश को लगता है कि दलितों के लिए समाज में बराबरी और आरक्षण का सवाल बड़ा है। वह कहते हैं कि इस पर लगातार हमले हुए हैं। सरायकाजी निवासी राहुल कहते हैं कि बसपा सरकार में कानून व्यवस्था सबसे अच्छी रही। शहर सीट के अंतर्गत आने वाले जाटव गेट निवासी शेखर को लगता है कि पेंशन और रोजगार सबसे बड़े सवाल हैं। दलितों की समस्याओं का समाधान डॉ. आंबेडकर की नीतियों से ही हो सकता है। किठौर के मनोज पेंटर कहते हैं कि मुफ्त राशन के बजाय सरकार को लोगों को रोजगार देना चाहिए था। वह कहते हैं कि महंगाई चरम पर है। किसानों का मुद्दा बड़ा है, लेकिन कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है। शाहजहांपुर कस्बे के परमाचंद कहते हैं कि मुफ्त राशन वितरण तो अच्छा है पर नौकरियां भी मिलनी चाहिए थीं। उन्हें लगता है कि कानून व्यवस्था सुधरी है।

बड़ा है बेरोजगारी का सवाल
मुजफ्फरनगर के खतौली निवासी आकाश कहते हैं कि महंगाई से परेशान हैं। कानून व्यवस्था सुधरी है पर बेरोजगारी बढ़ी है। मुजफ्फरनगर शहर के रैदासपुरी निवासी अनिल कुमार कहते हैं कि उनके लिए विकास बड़ा मुद्दा है। कृष्णापुरी निवासी दिलीप कुमार को लगता है कि बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। वह कहते हैं कि गरीब लोगों को राशन के साथ रोजगार भी मिलना चाहिए। आर्यपुरी निवासी परविंद्र का कहना है कि विकास के मुद्दे पर लोगों को मतदान करना चाहिए। शहर का विकास जरूरी है।

मुफ्त राशन से राहत पर महंगाई से नाराजगी
बागपत के जैन मोहल्ले में रहने वाले 33 वर्षीय अशोक को लगता है कि पांच साल में कानून व्यवस्था बेहतर हुई है। अब दंगे नहीं होते और अपराधी जेल में गए हैं। सिसाना रोड निवासी 45 वर्षीय गृहिणी ममता कहती हैं कि कोरोना के समय में मिले राशन से परिवार को बड़ी राहत मिली है। बड़ौत निवासी 72 वर्षीय शीशराम मुफ्त राशन वितरण की तारीफ करते हैं पर महंगाई से नाराज हैं।

चंद्रशेखर ने बनाई दलित युवाओं के बीच पैठ
पश्चिम उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से निकले युवा दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने भी दलित युवाओं के दिलों में जगह बनाई है। चंद्रशेखर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी समेत 18 दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे हैं। दलित मतों में यह कितना हिस्सा ले पाएंगे, इसी पर इनका राजनीतिक भविष्य भी टिका है।

असमंजस में है दलित
दलित वोट बैंक बहनजी के साथ रहा है, लेकिन इस बार असमंजस की स्थिति में है। बहनजी ने समाज से दूरी बनाई है। पहले 2014 और 2017 में समाज का काफी वोट भाजपा को गया पर भाजपा ने भी समाज को कुछ नहीं दिया।   - हरीश गौतम, प्रचारक बामसेफ

अपनी जगह मजबूत है दलित मतदाता
बसपा के मतदाताओं पर दूसरे दलों के दलित प्रेम का कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कुछ दलित नेता दूसरी पार्टियों में गए, उनकी वजह से भले ही थोड़े-बहुत लोगों का मन बदले पर बड़े पैमाने पर दो-चार प्रतिशत वोट का फर्क पड़ेगा। भाजपा और सपा की दलित विरोधी नीति को एससी एसटी समाज भूला नहीं है।   - प्रोफेसर डॉ. राजकुमार दलित चिंतक

बदलाव समाज के लिए जरूरी
बसपा आंबेडकर के मिशन से भटक चुकी है। 1954 में जब बाबा साहब मेरठ आए थे तो मेरी मुलाकात हुई थी। उनके मिशन से ही दलितों का उत्थान संभव है। निजीकरण से बेरोजगारी बढ़ी है। इस बार गठबंधन बदलाव ला रहा है।   - शिब्बनलाल स्नेही, पूर्व अध्यक्ष, भारतीय बौद्ध महासभा

दलितों के घर भोजन सिर्फ दिखावा
दलितों के घर भोजन के दिखावे से समाज का भला नहीं होने वाला। दलितों और पिछड़ों की एकता जरूरी है। सपा ने भी पूर्व में बहुत गलतियां की हैं पर अखिलेश ने अहसास किया है।   - डॉ. एसपी सिंह, प्रदेश प्रभारी, राष्ट्रीय मूल निवासी पेंशनर संघ

नतीजे देख टूट जाएगा सपा-भाजपा का भ्रम
बसपा का परंपरागत दलित वोट बैंक केवल बहन जी को नेता मानता है। किसी दूसरे दलित नेता के नाम पर एक भी वोट जाने वाला नहीं है। भाजपा और सपा का भ्रम चुनाव नतीजे देखकर टूट जाएगा।   - मोहित जाटव, जिलाध्यक्ष बहुजन समाज पार्टी

भाजपा के साथ आएगा दलित
दलित कानून व्यवस्था और विकास के मुद्दे पर भाजपा के साथ ही आएगा। कोरोना काल में मुफ्त राशन वितरण कर सरकार ने बड़ी राहत दी है।   - डॉ. चरण सिंह लिसाड़ी, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भाजपा

अपनी जगह दमदारी से टिका है दलित
दलितों के मन में कोई बदलाव नहीं है। दलित को पता है कि उनका आरक्षण, रोजगार, बराबरी का हक बसपा में ही सुरक्षित है। बसपा दमदारी से चुनाव मैदान में है। भाजपा और सपा अफवाह फैला रहे हैं।   - डॉ. सतीश प्रकाश, दलित चिंतक

भाजपा को हराने के लिए वोट करेगा दलित
भाजपा ने दलितों का आरक्षण प्रभावहीन कर दिया है। दलित चाहता है कि भाजपा को सत्ता में आने से रोका जाए। ऐसे में वह उसे वोट करेगा, जो भाजपा को हराएगा।   - विपिन मनोठिया, जिला उपाध्यक्ष सपा मेरठ

58 में से 9 सीटें सुरक्षित, दलित प्रत्याशी 10
पहले चरण में 10 फरवरी को 11 जिलों की जिन 58 सीटों पर चुनाव है, उनमें से पुरकाजी, हापुड़, खुर्जा, खैर, इगलास, आगरा कैंट, आगरा देहात, हस्तिनापुर और बलदेव सीट सुरक्षित हैं। पहले चरण में सामान्य सीट पर सिर्फ सपा ने गाजियाबाद शहर सीट से अनुसूचित जाति के विमल वर्मा को प्रत्याशी बनाया है।
पहले चरण के किस जिले में कितने फीसदी दलित
मुजफ्फरनगर-शामली- 13.50 प्रतिशत
बागपत- 10.98 प्रतिशत
मेरठ- 18.44 प्रतिशत
गाजियाबाद-हापुड़- 18.04 प्रतिशत
गौतमबुद्धनगर-  16.31 प्रतिशत
बुलंदशहर- 20.21 प्रतिशत
मथुरा- 19.60 प्रतिशत
आगरा-  21.78 प्रतिशत
अलीगढ़-  21.20 प्रतिशत

जिले की सातों सीट पर दलित मतदाता
मेरठ शहर- 16 हजार
मेरठ दक्षिण- 1.25 लाख
मेरठ कैंट - 75 हजार
किठौर - 68 हजार
सरधना - 73 हजार
सिवालखास - 50 हजार
हस्तिनापुर - 68 हजार

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