स्वामी प्रसाद मौर्या के विवादित बयानों के जानें सियासी मायने?

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स्वामी प्रसाद मौर्या के विवादित बयानों के जानें सियासी मायने?

स्वामी प्रसाद मौर्या के विवादित बयानों के जानें सियासी मायने?

पहले रामचरित मानस, फिर बद्रीनाथ मंदिर और अब हिन्दू धर्म पर हमला।


पब्लिक न्यूज़ डेस्क। पहले रामचरित मानस, फिर बद्रीनाथ मंदिर और अब हिन्दू धर्म पर हमला। ये तीनों मुद्दे हिन्दू सेंटीमेंट से गहरे जुड़े हैं। पहले बसपा फिर भाजपा और अब समाजवादी पार्टी की राजनीति करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार हिंदू भावनाओं से खेल रहे हैं। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और वे जिस तरह हमलावर हैं, उनका हर कदम चुनावी दृष्टि से भाजपा को मजबूती दे रहा है। 

स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर से बार-बार उठाए जा रहे ऐसे कदमों से अब समाजवादी पार्टी भी फिक्रमंद हो चली है। उसकी एक अलग मुश्किल है।  समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने हाल ही में पिछड़ा, दलित अल्पसंख्यक (पीडीए) का नारा दिया है और इसके माध्यम से उन्होंने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। 
 उन्हें बल्क वोट यहीं से चाहिए।  सपा नेतृत्व की चिंता यह है कि मौर्य की ओर से होने वाली इस हरकत से संभव है कि उसकी पीडीए की राजनीति पर असर पड़े। 

सपा के अंदर भी होने लगा मौर्य का खुलकर विरोध

लोकसभा चुनाव के इस मौके पर वह नहीं चाहती कि वोट में बिखराव हो। वरिष्ठ पत्रकार और उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से देखने वाले ब्रजेश शुक्ल कहते हैं कि सपा का शीर्ष नेतृत्व मौर्य से इस संबंध में अलग-अलग बात कर चुका है। वे असहज भी हैं. चाहे शिवपाल, राम गोपाल हों या अखिलेश. बस खुलकर पब्लिक में कुछ नहीं कहा है, लेकिन अंदर खाने उन्हें समझाने की कोशिशें हो चुकी हैं। 

अब समाजवादी पार्टी अलग तरह की मुश्किल में फंस चुकी है। अगर मौर्य के खिलाफ कार्रवाई कर दे तो भाजपा का वोट उसकी ओर आने से रहा, न करे तो इस बात की आशंका बलवती हो रही है कि हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण होगा, जो सीधे भाजपा को फायदा पहुंचाएगा।  यद्यपि अब सपा के अंदर से भी मौर्य का विरोध खुलकर सामने आने लगा है।  सपा के प्रवक्ता आईपी सिंह ने खुलेआम लिखा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को धार्मिक मुद्दों पर हर दिन बोलने से बचना चाहिए। 

घोसी उपचुनाव में मौर्य स्टार प्रचारक

आईपी सिंह अपने ट्वीट में लिखते हैं कि आपने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया है तो इसका मतलब कतई नहीं है कि आप हिन्दू धर्म की लगातार आलोचना करें। पांच वर्ष भाजपा में रहते हुए आपने ये मुद्दे नहीं उठाए। आपके ऐसे विचारों से पार्टी हरगिज सहमत नहीं हो सकती। ये आपके निजी विचार हो सकते हैं। सिंह यहीं नहीं रुकते। वे लिखते हैं कि जातीय जनगणना पर लड़िए। आरक्षण का हक मार रही भाजपा सरकार, उस पर लड़िए। पीडीए की लड़ाई लड़िए। 

हालांकि, घोसी उपचुनाव के लिए घोषित स्टार प्रचारकों में स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम भी शामिल है, जो कहीं न कहीं इस बात का समर्थन करता है कि पार्टी का पूरी तरह से उनसे मोहभंग नहीं हुआ है।  संभव यह भी है कि यह महत्व हाल-फिलहाल के लिए हो। क्योंकि सपा इस चुनाव में कोई भी चूक नहीं करना चाहती। 
 वह अपनी सीट वापस पाने को हर जुगत लगा रही है, ऐसे में हजार-दो हजार वोट भी मायने रखते हैं। 

स्वामी प्रसाद का हर कदम भाजपा को पहुंचाता है फायदा

वरिष्ठ पत्रकार परवेज अहमद इस मुद्दे को नए नजरिए से देखते हैं। उनका कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने अब सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट का मामला है। वे किसी भी तरह से लाइम-लाइट में बने रहना चाहते हैं, लेकिन हाल के महीनों में उनका हर कदम भाजपा को ही फायदा पहुंचाता हुआ दिखाई दे रहा है। चाहे राम चरित मानस का मुद्दा हो या बद्रीनाथ मंदिर का या फिर हिन्दू धर्म का, मौर्य का बयान आते ही भाजपा जिस तरीके से इन मुद्दों पर हमलावर हुई है, वह काबिल-ए-तारीफ है। इनके बयान को भाजपा ने अपने पक्ष में इस्तेमाल कर लिया।

कुछ लोगों का यह भी मत है कि स्वामी प्रसाद मौर्य चाहते हैं कि बेटी का लोकसभा का टिकट भाजपा से ही पक्का हो जाए क्योंकि वे मानते हैं कि बेटी को समाजवादी पार्टी का टिकट बदायूं से वे नहीं दिला पाएंगे। वहां धर्मेन्द्र यादव लड़ेंगे। ऐसे में उसका राजनीतिक करियर भाजपा में ही सुरक्षित है। वे सपा में रहते हुए एमएलसी हैं। बेटी को टिकट मिला तो भाजपा के नाम पर जीत जाएगी।

स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी का भाजपा से टिकट पक्का?

वरिष्ठ पत्रकार परवेज यह कहने से गुरेज नहीं करते कि मौर्य की बेटी संघमित्रा का टिकट भाजपा से पक्का है। उन्हें प्रचार शुरू करने की हरी झंडी मिल चुकी है। उधर, वरिष्ठ पत्रकार नवलकांत सिन्हा कहते हैं कि राजनीति में सब जायज है. केवल वोटों के लिए है। भाजपा सरकार में मंत्री रहते हुए जब अंत समय में इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी में बड़े जोर-शोर से शामिल हुए, खुद को नेवला और भाजपा को सांप बताया और अपनी ही सीट हार गए तो इनकी हवा निकल गयी। वह तो सपा सुप्रीमो ने इन्हें एमएलसी बनाकर इज्जत में इजाफा किया नहीं तो कहीं के नहीं होते।

उनका कहना है कि अब लोकसभा चुनाव में उपयोगिता साबित करने की फड़फड़ाहट है और कुछ भी नहीं। हालांकि हिन्दू आस्था पर लगातार उनकी ओर से किया जा रहा हमला सपा पर उल्टा पड़ रहा है। इस सूरत में देखना रोचक होगा कि सपा का क्या रुख होगा? लोकसभा चुनाव में मौर्य कितने उपयोगी साबित होंगे?