कोस-कोस में बदले पानी, चार कोस में बानी

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कोस-कोस में बदले पानी, चार कोस में बानी

भजन कीर्तन करते साधू संत

भजन कीर्तन करते साधू संत


बुंदेलखंड की प्राचीनतम लोक विधाओं का रंगारंग कार्यक्रम आयोजित

संवाददाता विवेक मिश्रा
चित्रकूट

बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के सात जिलों से आए लोक कलाकारों ने अपने गांव, क्षेत्र और समाज में गाई जाने वाली पुरानी लोक विधाओं को प्रस्तुत कर पुरानी परंपराओं को पुनर्जागृत कर सभी का मन मोह लिया।
मानिकपुर के पाठा क्षेत्र से आई बूटी कोल की टीम ने मंगलाचरण, लमटेरा, देवी वंदना कर कार्यक्रम की शुरूवात की। इसके बाद सरैया की रामकली ने बधाई गीत गाया।

महोबा से आई टीम ने तम्बूरा गायन कर पुराने बुजुर्गों की परम्परा को याद दिलाया। हमीरपुर की टीम ने अचरी और कबीरी विधाओं को प्रस्तुत किया। पाठा की कोल आदिवासी महिला टीम ने प्राचीनतम विधा कोलहाई और सजनई गाकर लोक नृत्य दिखाया। मौदहा के रोहित सिंह ने आल्हा गायन से लोगों की नसों में जोश भरने का काम किया। ललितपुर से लोक कलाकार संतोष परिहार ने सपत्नीक मतवारी विधा में बूंदा ले गई मछरिया हिलोर पानी गीत गाकर सभी का दिल जीता।

मध्य प्रदेश के ग्वालियर की अष्टांग गायकी घराने से आई डा. राजश्री दीपक ने शास्त्रीय संगीत में राजस्थान के प्रचलित गोट विधा का गायन प्रस्तुत किया। बांदा जनपद के कैरी गांव से आई ज्योति पटेल ने जरा देर ठहरो राम तमन्ना यही है, कि अभी हमने जी भर के देखा नहीं है गीत गाकर माहौल भक्ति मय बना दिया।

इस अवसर पर आलोक कुमार द्विवेदी, लोकलय कार्यक्रम में पद्मश्री उमाशंकर पांडेय, पूर्व विधायक आनंद शुक्ला, प्रथम मुखारविंद के महंत मदन गोपाल दास महाराज, रामजस द्विवेदी ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। पाठा के लोक कलाकारों बालिकाओं ने राई नृत्य प्रस्तुत कर समारोह को अपने ठुमको से झूमने के लिए बाध्य कर दिया। लोकलय कार्यक्रम का संचालन अर्चन द्विवेदी ने किया। संस्थान के अध्यक्ष डा. राजेश सिन्हा अतिथियों का स्वागत व निदेशक राष्ट्रर्दीप ने आभार जताया है।