चित्रकूट से मिला प्रभु श्रीराम को वानरो का साथ: ललित

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चित्रकूट से मिला प्रभु श्रीराम को वानरो का साथ: ललित

फोटो no 1- रामयण मेला गोष्ठी में बोलते विद्वान् मानस मर्मज्ञ

 रामायण मेला गोष्ठी में बोलते विद्वान् मानस मर्मज्ञ


विद्वत गोष्ठी में मानस की महिमा पर विद्वानों ने दिए व्याख्यान

संवाददाता विवेक मिश्रा 
चित्रकूट

 राष्ट्रीय रामायण मेला के 51वें समारोह के दूसरे दिन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, मानस मर्मज्ञों के व्याख्यान, भजन, लोकगीत, लोकनृत्य, रासलीला, रामलीला आदि के आयोजन हुए। इसी क्रम में विद्वत गोष्ठी का संचालन करते हुए डा. चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने लंका विजय का रहस्य उजागर कर बताया कि वानरो की सेना बनाने, संगठित करने, रामदल के प्रमुख युद्ध कौशल मां भगवती सीता ने चित्रकूट की धरती में प्रिय देवर लक्ष्मण को दिया था। यह प्राचीन तथ्य अरण्य प्रिया काव्य में हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ कवि श्री दीक्षित ललित ने दिया। चित्रकूट में आदिम काल से ही वानर जो वैश्यानर अर्थात अग्निदूत के बारे मं जाने जाते है विशाल संख्या में पाए जाते रहे हैं। उन्होंने बताया कि लंका दहन में हनुमान जी की भूमिका रही है। वानर सेना ने भगवान राम को लंका विजय में सहायता की। इसका संगठन चित्रकूट में उस समय हो गया था जब भगवान राम, सीता प्रवास में थें। डा ललित ने अरण्य प्रिया काव्य की रचना की है। जिसमें सीता के चित्रकूट में वनवास काल में एक नए प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि चित्रकूट के वन पथ पर कितने विचित्र अदभुद बंदर है सच में तो ये वैश्यानर है। ये पर्वतो और किलाओ में चढ सकते हैं। सागर को नाप सकेगें। लंका को भी ध्वस्त करेंगें और इनसे मैत्री कर लें। हम वनवासी हैं ये भी वनचर है। साथ निभाने में सहचर सेना को संबल देंगें।

बांदा के मानस किंकर पं राम प्रताप शुक्ला ने राष्ट्रीय रामायण मेले के बारे में अपने विचार रखते हुए कहा कि शिवरात्रि पावन पर्व पर डा0 राममनोहर लोहिया के सपनो को साकार करने के लिए रामायण मेले का 51वां समारोह पांच दिनों तक हो रहा है। इन दिनो तीर्थराज प्रयाग से चल कर चित्रकूट आ जाते हैं। जहां श्रोताओं को चार फल धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का बोध होता है। उन्होंने बताया कि प्रयाग जाकर स्नान करने से वहां भी चार फल मिलते हैं। जिनमें तीन फल धर्म, अर्थ, काम तो जीवनकाल में मिल जाते हैं और चैथा फल शरीर छूटने के बाद मिलता है। यहां पर संत समाज जुटकर सत्संग कर रामभक्ति की चर्चा से सुरसरि की धारा बहाते हैं। निराकार परमात्मा की व्याख्या कर अदृश्य सरस्वती के दर्शन करते हैं। कलिमल हरनी यमुना में स्नान कराते हैं। त्रिवेणी रूपी संगम की चर्चा हरि (विष्णु), हर (शिव) के रूप में करके त्रिवेणी महात्म्य की चर्चा करते हैं। बट विश्वास अचल निज धर्मा के साथ अक्षय वट के महात्म्य से जोड़ते हैं। ऐसे राष्ट्रीय रामायण मेले की महिमा है जो संतो के प्रवचन सुनकर समझेगा प्रसन्नचित्त होकर हृदयगम करेगा तो तुलसीदास कहते हैं उस श्रोता को जीते जी चारो फल मिल जाएंगें। ‘सुन समझई जन मुदित मन, मंजहि अति अनुराग, लहहि चार फल अक्षत तनु, साधु, समाज प्रयाग’। 

कार्यक्रम में कार्यकारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया, महामंत्री करुणा शंकर द्विवेदी, शिवमंगल शास्त्री, विनोद मिश्रा, राजाबाबू पांडेय, डा घनश्याम अवस्थी, मो यूसुफ, ज्ञानचन्द्र गुप्ता, राम प्रकाश श्रीवास्तव, इम्त्यिाज उर्फ लाला, सत्येन्द्र पांडेय, हेमंत मिश्रा, विकास आदि मौजूद रहे।