हिम संस्कृति से पुरानी है चित्रकूट की भौगोलिक संरचना: ललित

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हिम संस्कृति से पुरानी है चित्रकूट की भौगोलिक संरचना: ललित

 महोत्सव मेला में कविताओं के माध्यम से चित्रकूट की कथा का व्याख्यान करते कवि

महोत्सव मेला में कविताओं के माध्यम से चित्रकूट की कथा का व्याख्यान करते कवि


विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किया अत्रि रामायण की पंक्तियां
रिश्तों को निबाहना जानते थे श्रीराम

संवाददाता विवेक मिश्रा 
चित्रकूट

चतुर्थ दिवस की विद्वत गोष्ठी एवं सारस्वत सत्र का शुभारंभ करते हुए हिन्दी साहित्य के ख्यातिलब्ध साहित्यकार पुरातत्वविद एवं अनुसंधानकर्ता डा चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने कहा कि चित्रकूट सृष्टि की आदिम रचना है। इसके पर्वत, नदी और भौगोलिक स्थिति इसकी प्राचीनता के साक्ष्य है। यहां की पाठा क्षेत्र के बोली और भाषा भी आर्य भाषाओं में सबसे प्राचीन पाई जाती है। चित्रकूट की गुफाएं और उन सुरंगो से जाने वाले मार्ग भी इसकी प्राचीनता के प्रमाण हैं। इसकी भौगोलिक संरचना में जिस भू परपटी की बनावट पाई जाती है वह हिम संस्कृति अर्थात हिमालय की संस्कृति से भी पुरानी है।

डा ललित ने चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत को गुफाकालीन आदिम बताया और ओज से प्राप्त अत्रि ऋषि की वृहद रामायण का उल्लेख करते हुए कहा कि कामदगिरि के चार द्वार अंदर जाने के रास्ते थे। यह पर्वत अपने भीतर एक विशाल गुफा की भांति रहस्यपूर्ण है। इसके भीतरी भाग में एक सरोवर है। स्वर्ण और मणियो जटित एक मंदिर भी है। अत्रि रामायण के अनुसार इसकी संरचना सृष्टि के पहले शिल्पकार विश्वकर्मा द्वारा की गई थी। उन्होंने प्रमाण स्वरूप अत्रि रामायण की पंक्तियों को रामायण मेला में आए हुए विभिन्न विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किया।
उन्होंने बताया कि कामदगिरि को रामगिरि भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान राम ने वनवास काल में सीता और लक्ष्मण के साथ इसी गिरि में निवास किया था।

डा ललित ने यह भी कहा कि कामदगिरि ने कामनाओ तथा काम को परिपूर्णता प्रदान करने वाला पर्वत है। चित्रकूट की अग्नेय धरती भी इसे सृष्टि की आदिम रचना सिद्ध करती है। उन्होंने काव्य की पंक्तियों द्वारा इस धरती को सर्वोपरि बताया। चित्रकूअ सा तीर्थ नहीं है कोई भुवन-भुवन में, कामद सा देवता नहीं सृष्टि और त्रिभुवन में। विद्वत संगोष्ठी में आंध्र प्रदेश हैदराबाद की डा पी. नागपदमिनी ने हिन्दी और तेलगू की रामकथा पर प्रकाश डाला। मुजफ्फरपुर से आए डा संजय पंकज ने कहा कि सांस्कृतिक विकास के बिना कोई भी राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता। राम का सांस्कृतिक व्यक्तित्व सम्बन्धों के बड़े संसार में समाहित है। वे रिश्तो को निबाहना जानते थे। एक पत्नीव्रती राम ने स्वयं वनवास स्वीकारा मगर अपने वयोश्रेष्ठ होते माता-पिता के लिए राजभवन को ही सर्वोपरि माना। उनके भीतर करुणा और सेवा की अटूट निष्ठा थी। भारतीय संस्कृति के विराट पहचान हैं राम। 

संगोष्ठी में शोध पत्र पढ़ने वालों में डा. प्रमिला मिश्रा, डा. किरण त्रिपाठी, डा. सुमन सिंह, डा. एन. अनंत लक्ष्मी, पी.एस. बंगारैया हैदराबाद आदि प्रमुख रहे। रामकथा में व्याख्यान देने वालों में डा हरि प्रसाद दुबे फैजाबाद, के. विजयालक्ष्मी, डा. आशा कुमारी आदि विद्वान रहे।