कृषकों की दिशा और दशा बदलने को ब्यूह रचना जरूरी: अभय
नेशनल सेमिनार का फोल्डर
संवाददाता विवेक मिश्रा
चित्रकूट
देश के खेतिहर श्रमिकों के आर्थिक सशक्तिकरण से कृषि प्रक्षेत्र के सुदृढ़ीकरण के विविध आयामों पर विचार मंथन के लिए दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा मप्र जन अभियान परिषद् तथा महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के सहयोग से 29 एवं 30 जून को राष्ट्रीय संगोष्ठी कर रहा है। जिसमें खेतिहर श्रमिकों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति पर देश के 12 राज्यों के प्रतिवेदन भी प्रस्तुत होंगे। इस अवसर पर वाइस आफ द लैण्डेस शीर्षक से विद्वतजन के आलेखों की पुस्तक भी विमोचित होगी।
दीनदयाल शोध संस्थान के राष्ट्रीय संगठन सचिव श्री अभय महाजन ने बताया कि तकनीकी परिवर्तनों और कृषि की आधुनिक व्यवस्थाओं से कृषि कार्य की परम्परागत परिभाषा, अर्थ और आयाम बदल रहे हैं। एक ओर व्यावसायिक उत्पादन में विश्व के शीर्षस्थ देशों में सम्मिलित हैं तो वहीं दूसरी ओर कृषकों की आय को दोगुना करने का संकल्प चुनौती के रूप में सामने है।
बीते कुछ समय में जैविक कृषि, प्राकृतिक खेती, ऋषि कृषि जैसे अनेक विचार विकल्प और संभावनाओं के रूप में सामने आये हैं, परन्तु इनका मुख्य धारा का विषय बनना अभी शेष है। खेती के सिकुड़ते रकबे और बढ़ती जनसंख्या ने जोत का आकार छोटा कर दिया है। जिससे छोटी जोत के किसानों के लिए कृषि कार्य की मुश्किले बढ़ी हैं। कृषि कार्य की लागत वृद्धि ने भी चुनौतियां उत्पन्न की हैं। इनकी दशा और दिशा पर विचार करना और उत्थान उन्नयन के लिए व्यूह रचना आज की महती जरूरत है।