जिले की महत्वपूर्ण सीट, यहां पल-पल बदलते हैं शहर के समीकरण, दिलचस्प है पूरा इतिहास

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जिले की महत्वपूर्ण सीट, यहां पल-पल बदलते हैं शहर के समीकरण, दिलचस्प है पूरा इतिहास

जिले की महत्वपूर्ण सीट, यहां पल-पल बदलते हैं शहर के समीकरण, दिलचस्प है पूरा इतिहास


मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सदर सीट पर चुनाव तक पल-पल माहौल बदलता है। मतदान के दिन बूथों पर लगी कतारों के शोर-शराबे से ध्रुवीकरण का खेल चलता है। किस मोहल्ले में किसकी कतार कितनी बड़ी है और कौन-कौन वोटर घर से बाहर है, इस पर यहां खूब गणित लगाया जाता है। शहर का विधायक चुनने में आसपास के गांव की सबसे बड़ी भूमिका है।

तिगरी, बीबीपुर, शेरनगर, सहावली, बिलासपुर, कूकड़ा, भिक्की गांव भी 2012 के परिसीमन के बाद शहर सीट के लिए ही मतदान करते हैं। शहर सीट का बड़ा हिस्सा पुरकाजी विधानसभा में शामिल किया गया है। इतिहास के पन्ने पलटें तो शहर सीट पर राजनीतिक दल बदलते रहे, लेकिन अधिकतर चुनाव में वैश्य समाज के प्रत्याशी ही जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। शहर सीट पर व्यापार और व्यापारी मुद्दा है। साथ में कानून व्यवस्था, शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार की बात उठती है। कॉलोनियों, मोहल्लों और गलियों के साथ मुद्दे भी बदलते हैं।

कब किसके सिर सजा शहर सीट का ताज
साल वि           धायक               पार्टी
1952         द्वारिका प्रसाद        कांग्रेस
1957        द्वारिका प्रसाद         कांग्रेस
1962        केशव गुप्त              कांग्रेस
1967        विष्णु स्वरूप            निर्दलीय
1969      सईद मुर्तजा बीकेडी   (भारतीय क्रांति दल)
1974      चितरंजन स्वरूप          कांग्रेस
1977      मालती शर्मा             जनता पार्टी
1980       विद्या भूषण               कांग्रेस
1985       चारुशीला                 कांग्रेस
1989       सोमांश प्रकाश         जनता दल
1991       सुरेश संगल              भाजपा
1993       सुरेश संगल              भाजपा
1996       सुशीला देवी             भाजपा
2002        चितरंजन स्वरूप       सपा
2007        अशोक कंसल         भाजपा
2012        चितरंजन स्वरूप      सपा
2017      कपिल देव अग्रवाल    भाजपा

सदर सीट पर एक बार जीत सका मुस्लिम

सदर सीट पर हमेशा ही कांटे का मुकाबला हुआ है। लेकिन सिर्फ एक बार ही मुस्लिम यहां से जीतकर विधानसभा पहुंचा। बीकेडी (भारतीय क्रांति दल) के टिकट पर 1969 में सईद मुर्तजा सदर विधानसभा सीट से जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे।
जानिए शहर में मतदातओं का गणित
कुल मतदाता 356283
पुरुष मतदाता 189918
महिला मतदाता 166325
मंगलामुखी 40

शहर में किस उम्र के कितने मतदाता
उम्र                         मतदाता
18-19                     4777
20-29                    73006
30-39                    98370
40-49                    73084
50-59                   54912
60-69                   32569
70-79                  14657
80-89                  4183
90-99                  687
100 प्लस              38

विष्णु की जीत से शुरू हुई स्वरूप परिवार की राजनीति

शहर सीट पर 1967 से नई राजनीति की शुरूआत भी हुई। यहां निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विष्णु स्वरूप विधायक बने थे, लेकिन इसके अगले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उनके भाई चित्तरंजन स्वरूप विधानसभा पहुंचे। स्वर्गीय चितरंजन स्वरूप 2002 और 2012 में सपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे और मंत्री बने थे। इस बार उनके बेटे सौरभ स्वरूप चुनाव मैदान में है।

लखनऊ और दिल्ली के फैसले करते थे विद्याभूषण
शहर में कांग्रेस के टिकट पर 1980 में विद्या भूषण विधायक बने थे। उनकी तूती शहर में ही नहीं, बल्कि लखनऊ और दिल्ली में भी बजती थी। स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबियों में रहे। विधानसभा से पहले वह 17 फरवरी 1973 को पालिकाध्यक्ष भी चुने गए थे। सियासत की गलियों में उनके किस्से आज भी शहर में खूब सुने और सुनाए जाते हैं।

सुरेश संगल ने सादगी से बनाई अपनी पहचान
डीएवी डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर सुरेश संगल भाजपा की लहर में 1991 और 1993 में शहर सीट से विधायक बने थे। सादगी उनकी पहचान रही। विधायक रहने के दौरान भी हमेशा कक्षाएं ली।

शहर से जीतकर तीन महिलाएं पहुंची विधानसभा
शहर सीट से 1977 में जनता पार्टी की मालती शर्मा, 1985 में कांग्रेस की चारुशीला और 1996 में भाजपा की सुशीला विधायक चुनी गई थीं।

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