ध्रुवीकरण के दौर में मुद्दे हाशिए पर, अब तो पार्टी और प्रत्याशी ही अहम

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ध्रुवीकरण के दौर में मुद्दे हाशिए पर, अब तो पार्टी और प्रत्याशी ही अहम

ध्रुवीकरण के दौर में मुद्दे हाशिए पर, अब तो पार्टी और प्रत्याशी ही अहम


सहारनपुर। उत्तराखंड, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की सीमाओं से सटी सहारनपुर नगर सीट पर सियासी पारा चरम पर है। ध्रुवीकरण की कोशिशों के बीच मुद्दे गौण हो चले हैं। माहौल ऐसा बन गया है, जिसमें पार्टी और प्रत्याशी ही अहम हैं। इस सीट पर सपा-रालोद गठबंधन से सपा विधायक संजय गर्ग फिर से मैदान में हैं। वे सजातीय मतों के साथ ही मुस्लिम समीकरण साधने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। चुनाव में उनके राजनीतिक अनुभव और संपर्कों की भी परीक्षा है। भाजपा ने पूर्व विधायक राजीव गुंबर को मैदान में उतारा है। बसपा से व्यवसायी मनीष अरोरा ताल ठोक रहे हैं, तो कांग्रेस ने पूर्व पार्षद सुखविंदर कौर पर भरोसा जताया है। वहीं, आम आदमी पार्टी ने उस्मान मलिक को चुनाव मैदान में उतारा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि, परंपरागत वोट बैंक के साथ सवर्णों और अति पिछड़ों को साधने में जुटी भाजपा इस सीट पर जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है। 2007 और 2012 में राघवलखन पाल शर्मा ने यहां भगवा परचम फहराया था। उनके 2014 के लोकसभा चुनाव में सांसद बनने पर यहां हुए उपचुनाव में राजीव गुुंबर विधायक बने थे। पर, 2017 के चुनाव में लहर के बावजूद सपा के संजय गर्ग भाजपा प्रत्याशी राजीव गुंबर को हराकर तीसरी बार इस सीट से विधायक बने। इस बार भी दोनों आमने-सामने हैं। यहां पर मुस्लिम, वैश्य और पंजाबी समाज के मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। बहरहाल, यहां चुनाव दिलचस्प होने के आसार हैं।

बात सियासी मिजाज की करें तो महंगाई, विकास, बेरोजगारी के सवाल शुरुआती दौर मेें खूब चर्चा में रहे। पर, ज्यों-ज्यों चुनावी रथ आगे बढ़ा ये मुद्दे गौण हो गए। सबसे खास बात है कि मतदाता खामोश हैं। वे अपने-अपने तरीके से सियासी हवा का रुख भांप रहे हैं। पुराने शहर की खाताखेड़ी में हमें अकरम, नवाब, मरसलीम मिले। चुनावी सवाल पूछने पर वे कहते हैं, पहले चुनाव को तो चरम पर आने दो। माहौल जैसा होगा, हम वैसा ही करेंगे। अभी अपने पत्ते खोलने का कोई मतलब नहीं है। अजीज कॉलोनी में मारूफ की दुकान पर मिले गुफरान, दिलशाद भी टटोलने पर कहते हैं, इस बार तो यहां कोई मुद्दा ही नहीं है। कोई चर्चा ही नहीं हो रही। मुस्लिमों की बात करें तो वे इस बार सपा के साथ हैं। शहर की बाहरी बस्ती प्रकाश लोक कॉलोनी में मिले शुभम और मुकेश निर्मल चुनावी सवाल छिड़ते ही हमें कॉलोनी का हाल दिखाने लगते हैं। वे कहते हैं, इस कॉलोनी के साथ ही इससे जुड़ी शिवनगर, मीरनगर, पथिक नगर, नंदपुरी में भी कोई विकास कार्य नहीं हुआ। सांसद बसपा का है और विधायक सपा का, मेयर भाजपा का है। जब कोई भी विकास नहीं करा पाया, तो वोट क्यों दें? हालांकि, सरकार किसकी अच्छी रही, इस सवाल पर वे बोले, योगी की सरकार में कानून-व्यवस्था अच्छी है।

पड़ोसी सीटों पर भी कड़ा मुकाबला

सहारनपुर नगर सीट से सटी सुरक्षित सीट रामपुर मनिहारान और सहारनपुर देहात पर भी कड़े संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है। देेहात सीट पर भाजपा ने जगपाल सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। पिछली बार कांग्रेस से विधायक रहे मसूद अख्तर सपा में शामिल हो चुके हैं, लेकिन, उन्हें टिकट नहीं मिला। सपा ने आशु मलिक को चुनावी रण में उतारा है। बसपा से अजब सिंह, कांग्रेस से संदीप कुमार, आम आदमी पार्टी से योगेश दहिया, एआईएमआईएम से मरगूब मैदान मेें हैं। वहीं, रामपुर मनिहारान सीट पर बसपा से पूर्व विधायक रविंद्र मोल्हू, भाजपा से विधायक देवेंद्र निम, रालोद से विवेककांत और कांग्रेस से ओमपाल सिंह चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं।

समीकरण लेंगे सबका इम्तिहान
इस सीट पर चुनावी मुकाबला कैसा होगा, इसकी एक झलक 2017 के चुनाव से मिल जाती है। 2017 में यहां भाजपा-सपा के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था। तब सपा ने 4636 मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। सपा के संजय गर्ग की कुल मतों में हिस्सेदारी 46.80 फीसदी रही थी, जबकि भाजपा की 45.09 फीसदी। बसपा 6.38 फीसदी पर ही अटक गई थी। सबसे खराब प्रदर्शन रालोद का था। रालोद तो 1000 वोटों के आंकड़े को भी नहीं छू सका था। अगर समीकरण कमोवेश वैसे ही रहे तो सपा के लिए सीट बचाने की चुनौती है। वहीं, भाजपा के सामने बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की चुनौती है। अगर वह इसमें कामयाब हो गई, तो उसकी राहें आसान हो सकती हैं।

वोटों का गणित
मुस्लिम 1.55 लाख
पंजाबी व सिख 85 हजार
वैश्य 60 हजार
अनुसूचित जाति 30 हजार
ब्राह्मण 25 हजार
सैनी 18 हजार
अन्य 28 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
संजय गर्ग, सपा 1,27,210
राजीव गुंबर, भाजपा 1,22,574
मुकेश दीक्षित, बसपा 17,350
भूरा मलिक, रालोद 934

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