पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती की वजह आगामी विधानसभा चुनाव कतई नहीं

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पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती की वजह आगामी विधानसभा चुनाव कतई नहीं

पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती की वजह आगामी विधानसभा चुनाव कतई नहीं


पब्लिक न्यूज डेस्क। केंद्र सरकार ने हाल ही में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती की है। हालांकि सरकार के इस फैसले को राजनीति के चश्मे से देखा जा रहा है, क्योंकि आगामी महीनों में कुछ राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और कहा जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी सरकार चुनावी मौसम में वोट की खातिर हर बार तेल की कीमतों में कटौती करती है। वैसे, उपलब्ध आंकड़ों से यह कुछ हद तक सही भी प्रतीत होता है, लेकिन इस बार सरकार के इस निर्णय के पीछे आगामी महीनों में होने वाला विधानसभा चुनाव तो कतई नहीं है।

विगत कुछ महीनों से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के संग्रहण में कोरोना महामारी के बावजूद उल्लेखनीय बढ़ोतरी होने से राजकोषीय घाटे में कमी आ रही है और सरकार इसकी वजह से सरकारी खर्च में इजाफा कर रही है। ज्ञातव्य है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी होने से उसका सीधा असर महंगाई पर पड़ता है। परिवहन की लागत बढ़ती है, जिससे खाद्यान्न की कीमतों में इजाफा होता है। महंगाई बढ़ने से विकास दर में भी कमी आती है।
केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क कम करने के बाद 16 राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, उत्तराखंड, गोवा, कर्नाटक, असम, मणिपुर, त्रिपुरा आदि ने भी वैट की दरों में कटौती की है। बता दें कि वैट राज्य सरकारों द्वारा पेट्रोल और डीजल पर लगाया जाने वाला एक प्रकार का कर है। उत्पाद शुल्क और वैट में कटौती करने से पेट्रोल की कीमत में कुछ राज्यों में दस रुपये तक की और डीजल की कीमत में लगभग 17 रुपये तक की कमी आई है।
एक अनुमान के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क में कटौती करने से चालू वित्त वर्ष के बचे हुए पांच महीनों में सरकार को लगभग 55 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा। हालांकि जानकारों के अनुसार उत्पाद शुल्क में केंद्र सरकार द्वारा कटौती करने के बाद भी सरकार की कमाई पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि कोरोना काल में जब पेट्रोल और डीजल की खपत कम हो गई थी, तब उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी की गई थी। अब पेट्रोल और डीजल की खपत कोरोना से पहले के स्तर पर पहुंच गई है। खपत बढ़ने से राजस्व में भी वृद्धि हुई है। हालांकि सरकार केवल उत्पाद शुल्क से होने वाले राजस्व पर निर्भर नहीं है। अर्थव्यवस्था के दूसरे घटकों से भी सरकार की कमाई होती है। बीते कुछ महीनों से अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर सुधार हो रहा है।

भले ही सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क कम करने से फिलवक्त पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कुछ कमी आई है, लेकिन आगामी महीनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में फिर से वृद्धि होने की संभावना कायम है, क्योंकि भारत कुल कच्चे तेल उपयोग का 86 प्रतिशत तेल आयात करता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आने का अनुमान है। इतना ही नहीं, एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक कच्चे तेल की कीमत 100 रुपये प्रति बैरल तक बढ़ सकती है।

देखा जाए तो तेल की कीमत को नियंत्रित करना बहुत हद तक सरकार के हाथ में नहीं है। जब भी मांग और आपूर्ति में असंतुलन आएगा, तेल की कीमत में बढ़ोतरी होगी। तेल की बढ़ी कीमत का एक दूसरा बड़ा कारण इस क्षेत्र में निवेश की कमी का होना है। इस कमी को दूर करने के लिए सरकार अक्षय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा दे रही है। बेशक, कोरोना वायरस का प्रकोप कम होने से अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर तेजी से सुधार हो रहा है। राजस्व में भी बढ़ोतरी हो रही है, जिससे राजकोषीय घाटा में कमी आ रही है। साथ ही सरकारी खर्च में वृद्धि हो रही है, जिससे विविध उत्पादों व वस्तुओं की मांग में तेजी आ रही है और लोगों को भी फिर से रोजगार मिलने लगे हैं।

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