लोकसभा चुनाव सामने है और इंडिया गठबंधन के अहम हिस्सेदार सीटों पर बातचीत, जानिए मामला
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इंडिया गठबंधन बनने से पहले ही बिखर गया है इसकी शुरुआत करने वाले नीतीश कुमार भाजपा के साथ चले गए तो राष्ट्रीय लोक दल के
पब्लिक न्यूज़ डेस्क- इंडिया गठबंधन बनने से पहले ही बिखर गया है। इसकी शुरुआत करने वाले नीतीश कुमार भाजपा के साथ चले गए तो राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया जयंत चौधरी अब एनडीए का हिस्सा हैं। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में सीटों को लेकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं तो आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने भी पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस को कुछ खास तवज्जो नहीं देने का इजहार कर रखा है। मायावती की बहुजन समाज पार्टी, आंध्र प्रदेश की तेलगू देशम जैसी पार्टियां इस गठबंधन का हिस्सा अभी भी नहीं हैं। ऐसे में विपक्ष का पूरा का पूरा प्लान आधा-अधूरा लगता हुआ दिखाई दे रहा है।
राजनीति में खास तौर से चुनावों के पहले बहुत कुछ उलटफेर देखा जाता है। पार्टियां अपनी सुविधा के अनुरूप पाला बदल करती आ रही हैं। यह कोई खास बात पहले भी नहीं रही और आज भी नहीं है लेकिन जिस तरीके से इंडिया गठबंधन की शुरुआत हुई, जो उनके इरादे थे, अब ढेर होते नजर आ रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस के अलावा उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी, बिहार की राष्ट्रीय जनता दल और कम्युनिस्ट पार्टियां अभी भी डटे हुए हैं। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके इसका हिस्सा है। आज का सच यह है कि लोकसभा चुनाव सामने है और इंडिया गठबंधन के मेजर हिस्सेदार सीटों पर बातचीत को अंतिम रूप नहीं दे पाए हैं। वे इस मामले पर एकमत भी नहीं दिखते। एक भी दल अपने प्रभाव वाले इलाके में गठबंधन के किसी दूसरे सहयोगी को एक भी सीट देने को राजी नहीं दिखाई दे रहे हैं। तीन राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में सरकार चलाने वाले लोक सभा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी गठबंधन से जुड़े दल बहुत भाव नहीं दे रहे हैं। कुल मिलाकर परसेप्शन यही बना हुआ है कि इंडिया गठबंधन बिखर गया है।
राहुल गांधी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश की अपनी प्रस्तावित यात्रा रद कर दी है। अब वे महाराष्ट्र में अपनी यात्रा का समापन करने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना तथा तमिलनाडु में डीएमके जरूर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के साथ हैं। पर, तीनों ही राज्यों में सीटों का हिसाब-किताब अभी तक सामने नहीं आया है। देश की राजधानी दिल्ली एवं पड़ोसी राज्य पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने अपने इरादे जरूर साफ कर दिए है। वे यहां अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने का इरादा रखते हैं। तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस या कम्युनिस्ट पार्टियों के प्रति कोई बहुत सद्भावना नहीं रखने वाली हैं। उन्होंने पूर्व में अपने इरादे भी जता दिए थे। इस सूरत में इंडिया गठबंधन की सूरत ईमानदारी से बहुत शानदार नहीं दिखाई दे रही है।
भटके, बिखरे विपक्ष का लाभ सीधे सत्ता पक्ष को मिल सकता है। क्योंकि वह एक-एक चूर को मिलाकर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। उसी का नतीजा है कि नीतीश फिर से एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन बैठे हैं। इसी का परिणाम है कि बाला साहब ठाकरे की शिवसेना फाड़ हो गई तो शरद पवार की बनाई पार्टी एनसीपी आज उन्हीं के सामने उनकी नहीं रही। यह भी सच है कि विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सीएम भाजपा का नहीं है। देवेन्द्र फड़नवीस डिप्टी सीएम बने बैठे हैं। गठबंधन को मजबूती के क्रम में ही राम विलास पासवान के सुपुत्र और भाई अलग-अलग दल बनाने के बावजूद एनडीए का हिस्सा हैं और भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं। माना जा रहा है कि देर-सबेर आंध्र प्रदेश की तेलगू देशम पार्टी के नेता चंद्र बाबू नायडू भी एनडीए का हिस्सा होंगे। उसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि आंध्र प्रदेश की जगन रेड्डी सरकार उन्हें स्पेस नहीं दे रही है। अगर नायडू एनडीए के साथ आ जाते हैं तो अगली सरकार में उन्हें केंद्र में मौका मिल सकता है। इस तरह गठजोड़ के सहारे भाजपा भी आंध्र प्रदेश में खाता खोल सकती है।
अबकी बार चार सौ पार का आंकड़ा पाने के लिए भाजपा और एनडीए गठबंधन को दक्षिण भारत के राज्यों तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मजबूत सीटें लेकर आना होगा, अन्यथा अबकी बार चार सौ पार का नारा हवा में उड़ जाएगा। संसद में यह नारा देने के बाद पीएम मोदी इसी लक्ष्य को पूरा करने को अपनी ओर से अनेक प्रयास करते देखे जा रहे हैं। वह चाहे मंदिर-मंदिर जाना हो या फिर यूएई की धरती से केरल और देश के मुसलमानों को साधने की कोशिश। देश के अंदर उनके काम का आंकड़ा उनके साथ पहले से ही है।