मुजफ्फरनगर सदर : जातीय गणित में उलझे समीकरण, भाजपा के सामने सीट बचाने की चुनौती
मुजफ्फरनगर। लोहा उद्योग, खासकर सरिया उत्पादन में देशभर में पहचान रखने वाले उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की सदर सीट पर इस बार
जातीय समीकरणों का जाल उलझा हुआ है। यहां प्रदेश सरकार में
कौशल विकास मंत्री कपिलदेव अग्रवाल फिर से भाजपा के टिकट
पर चुनाव मैदान में हैं। इस चुनाव में उनके राजनीतिक व
चुनावी कौशल की परीक्षा है। वहीं, सपा-रालोद गठबंधन से पूर्व
मंत्री चितरंजन स्वरूप के बेटे सौरभ स्वरूप बंटी हुंकार भर रहे हैं।
बसपा से भिक्की के रहने वाले पुष्पांकर पाल ताल ठोक रहे हैं
कांग्रेस ने इस बार जिलाध्यक्ष रहे सुबोध शर्मा को मैदान में
उतारा है।
मुजफ्फरनगर सदर सीट पर 1991 में भाजपा का खाता खुला था।
पिछले तीन दशक में हुए आठ में से छह चुनावों में भाजपा को
जीत मिली है। पर, इस बार यहां मुकाबला आसान नहीं है।
जातीय समीकरण साधने के लिए भाजपा की नजर अनुसूचित जाति
के वोट बैंक पर है। सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी सौरभ अपने बेस
वोट बैंक, गठबंधन के गणित के सहारे मैदान में हैं। वे भाजपा
का मतदाता माने जाने वाले अति पिछड़े वर्ग में सेंध लगाने की
जुगत में हैं। शहर सीट पर संख्या बल में मुस्लिम सब पर भारी हैं।
पर, किसी भी मुख्य राजनीतिक दल ने मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में
नहीं उतारा है। नतीजों पर इसका असर भी दिख सकता है। बसपा
के पुष्पांकर पाल की बात करें तो उनकी पत्नी जिला पंचायत
सदस्य रही हैं। बसपा के कोर वोट बैंक के सहारे ही वह आगे बढ़
रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के सुबोध शर्मा पुराने नेताओं में शुमार हंै। वे
साफ-सुथ्ारी छवि के नेताओं में गिने जाते हैं। पर, उनके दमखम
की भी परीक्षा है। देखने वाली बात यह होगी कि 1985 के बाद इस सीटपर जीत से दूर कांग्रेस का वे खाता खोल पाते हैं या नहीं।
सिर्फ एक बार जीता मुस्लिम उम्मीदवार
मुजफ्फरनगर सदर सीट पर भले ही मुस्लिम मतदाता बहुतायत में हों, पर
यह भी उतना ही सच है कि यहां से सिर्फ एक बार ही मुस्लिम
उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचा। बीकेडी के टिकट पर 1969
में सईद मुर्तजा ने सदर विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी।
हालांकि, इस बार प्रमुख दलों ने कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा
है।
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