दल बदले, गठबंधन बदले तो उलझे समीकरण, प्रचार के शोर में खामोश मतदाताओं ने उड़ाए प्रत्याशियों के होश, वर्चुअल रैलियों से बनाई दूरी

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दल बदले, गठबंधन बदले तो उलझे समीकरण, प्रचार के शोर में खामोश मतदाताओं ने उड़ाए प्रत्याशियों के होश, वर्चुअल रैलियों से बनाई दूरी

दल बदले, गठबंधन बदले तो उलझे समीकरण, प्रचार के शोर में खामोश मतदाताओं ने उड़ाए प्रत्याशियों के होश, वर्चुअल रैलियों से बनाई दूरी


मेरठ।भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन नेताओं ने मेरठ में पूरी ताकत झोंक दी है पर मतदाताओं की खामोशी नहीं टूट रही है। दीवारों पर पोस्टर और होर्डिंग नहीं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी आम मतदाता मुखर नहीं। देहात और आर्थिक तौर पर कमजोर तबके के मतदताओं का एक बड़ा हिस्सा वर्चुअल रैलियों से भी दूर है। कई सीटों पर प्रमुख दलों ने प्रत्याशी बदले हैं तो दलों के गठबंधन भी बदले हैं। ऐसे में आखिरी वक्त में मतदाताओं का मन बदला तो मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

2017 के विधानसभा चुनाव में सरधना, मेरठ कैंट, सिवालखास, हस्तिनापुर, मेरठ दक्षिण और किठौर सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। सिर्फ शहर सीट ही सपा को मिल पाई थी। तब सपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन में थे। सिवालखास, किठौर और सरधना सीट पर सपा दूसरे नंबर पर रही थी। हस्तिनापुर में सपा तीसरे नंबर पर खिसक गई थी। गठबंधन में कांग्रेस के खाते में मेरठ दक्षिण और कैंट सीट थी जहां पार्टी प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे। सिवालखास को छोड़ रालोद के बाकी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। तब बसपा मेरठ कैंट, दक्षिण और हस्तिनापुर में दूसरे नंबर पर रही थी। बाकी सीटों पर बसपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर खिसक गए थे।

दल बदले, गठबंधन बदले तो उलझ गए समीकरण
2017 के मुकाबले इस बार समीकरण जुदा हैं। सपा और रालोद साथ हैं। कांग्रेस और बसपा अपने दम पर लड़ रहे हैं। आप ओवैसी और चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के प्रत्याशी भी मैदान में हैं। सिवालखास में गुलाम मोहम्मद साइकिल से उतर हैंडपंप चला रहे हैं तो वहीं हस्तिनापुर में हाथी से उतरकर योगेश वर्मा साइकिल पर सवार हैं। सरधना में संजीव धामा नल छोड़कर हाथी पर सवार हैं। सिवालखास में वर्तमान विधायक जितेन्द्र सतवाई की जगह कमल खिलाने के लिए मनिंदरपाल लगे हैं। कैंट से चार बार के भाजपा विधायक सत्यप्रकाश अग्रवाल की जगह अमित अग्रवाल प्रत्याशी हैं। शहर में भाजपा ने भी नए चेहरे कमलदत्त शर्मा पर दांव लगाया है।

कई दिग्गज हुए बाहर
बीते कई दशक में यह पहला चुनाव है जब कई दिग्गज चुनाव मैदान से बाहर हैं। हाजी याकूब कुरैशी और अखलाक परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ रहा है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेई भी चुनाव में नहीं हैं। महिलाओं में कैंट से रालोद से मनीषा अहलावत, हस्तिनापुर से कांग्रेस की अर्चना गौतम, किठौर से कांग्रेस की बबीता गुर्जर भी चुनाव मैदान में हैं।

ध्रुवीकरण की राह में किसान आंदोलन
मेरठ में मतदाताओं का ध्रुवीकरण रोकने के लिए सपा-रालोद, कांग्रेस और बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर काम किया है। किसान किसान आंदोलन का भी असर है। बसपा, कांग्रेस और सपा नेताओं के मुकाबले भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन नेताओं के तेवर तीखे हो गए हैं।
2017 में यह रहा हार-जीत का अंतर:
शहर: 28820
दक्षिण: 35395
कैंट: 76618
हस्तिनापुर: 36045
किठौर: 10800
सरधना: 21595
सिवालखास: 11407

मतदान प्रतिशत से भी प्रभावित होंगे नतीजे
मतदाताओं की खामोशी से मतदान का असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ सकता है। 2017 में जिले की सातों सीटों पर औसत 66.89 प्रतिशत मतदान हुआ था। जानकारों का मानना है कि मतदान प्रतिशत का भी नतीजों से सीधा संबंध है।

2017 में कहां कितना हुआ मतदान:
मेरठ दक्षिण: 63.14
मेरठ शहर: 64.69
मेरठ कैंट: 58.96
सरधना: 71.83
हस्तिनापुर: 67.76
सिवालखास: 70.71
किठौर: 71.70
जिले में कुल मतदान 66.89

मतदाताओं के मन में चल रहा द्वंद
जब मतदाता मतदान की तारीख तक खामोश रहता है तो उसके अंदर राजनीतिक दलों के मुद्दों विकास, सामाजिक सुरक्षा और क्षेत्रवाद, जातिवाद और धर्म व संप्रदाय को लेकर द्वंद चलता रहता है। वह यह तय नहीं पाता कि किसकी तरफ जाए। ऐसे में वह मतदान के दिन ही अपना निर्णय लेता है। वर्चुअल प्रचार की वजह से भी इस बार मतदाता खामोश है। -प्रो. पवन कुमार,विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान, चौधरी मेरठ

ईवीएम पर ही टूटेगी ये खामोशी
वोटरों की खामोशी का मतलब है कि मतदाताओं ने अपना मन बना लिया है। मतदाता सरकार के पांच साल के कार्यकाल को भी देखता है और उसे व्यक्तिगत रूप से व समाज को क्या मिला है वह इसका भी आकलन करता है। ऐसे में मतदाता ईवीएम पर ही अपनी चुप्पी तोड़ता है।  -प्रो. पूरन सिंह उज्जवल, राजनीति विज्ञान, मेरठ कालेज मेरठ

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