हिंदू, मुस्लिम, सिख के आस्था का संगम है कपालमोचन, गुरु गोबिंद सिंह ने शुरू की थी यहां ये परंपरा

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हिंदू, मुस्लिम, सिख के आस्था का संगम है कपालमोचन, गुरु गोबिंद सिंह ने शुरू की थी यहां ये परंपरा

हिंदू, मुस्लिम, सिख के आस्था का संगम है कपालमोचन, गुरु गोबिंद सिंह ने शुरू की थी यहां ये परंपरा


पब्लिक न्यूज डेस्क। यमुनानगर जिला मुख्यालय से 26 किमी दूर कपालमोचन तीर्थ ऋषि-मुनियों की तपो स्थली रही है। तीर्थ स्थल को हिंदू, मुस्लिम व सिख धर्म के लोगों की आस्था का संगम कहा जाता है। ये भी मान्यता है कि सारे तीर्थ बार-बार कपालमोचन एक बार। 15 से 19 नंवबर तक मेला आयोजित होगा। इस दौरान श्रद्धालु पवित्र सरोवरों में मोक्ष की डुबकी लगाएंगे। कार्तिक पूर्णिमा स्नान के बाद मेला बिछडऩा शुरू होगा। इस बार मेले में कोरोना गाइडलाइन की पालना करनी होगी। कपालमोचन के साथ आदिबद्री धार्मिक स्थल पर भी पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालु जाते हैं। श्रद्धालु जगाधरी से बर्तन खरीदकर ही यात्रा पूरी समझते हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए परिवहन विभाग 250 बसे चलाएगा।

कपालमोचन सरोवर

श्रद्धालु सबसे पहले कपालमोचन सरोवर में स्नान करते हैं। पुराणों में इसका सोमसर के नाम से जिक्र है। यहां पर भगवान श्री रामचंद्र, भगवान कृष्ण, गुरु नानक देव, गुरु गोबिंद सिंह आए थे। सरोवर के निकट गुरु गोबिंद सिंह ने माता चंडी की मूर्ति की स्थापना की थी। गुरु गोबिंद सिंह ने कपालमोचन के महंत को हस्त लिखित पट्टी और ताम्र पत्र दिया। पंडित सुभाष बताते है यह आज भी उनके परिवार के पास है।

ऋणमोचन सरोवर

कपालमोचन सरोवर के बाद श्रद्धालु ऋणमोचन सरोवर में स्नान करते हैं। पुराणों में मुताबिक यहां स्नान से ऋणों से मुक्ति मिलती है। श्री कृष्ण ने पांडवों के साथ यहां पर यज्ञ किया। पांडवों यहां पर पिंडदान पितृ ऋण से मुक्त हुए थे। गुरु गोबिंद सिंह भी यहां दो बार आए। वर्ष 1746 में गुरु गोबिंद सिंह भांगानी की लड़ाई जीतने के बाद 52 दिनों तक यहां रूके थे। पूजा-अर्चना की और अस्त्र-शस्त्र धोए थे। यहीं से केसरी रंग का शिरोपा भेंट करने की परंपरा शुरू हुई। गुरु गोबिंद सिंह ने युद्ध के शिरोपा देकर सैनिकों का मनोबल बढ़ाया था। केसरी रंग शौर्य का प्रतीक माना जाता है। श्रद्धालु तीनों सरोवरों के साथ- साथ गुरुद्वारा साहिब वाले सरोवर में भी डुबकी लगाते हैं।

सूरजकुंड सरोवर

सूरजकुंड सरोवर के साथ भी अनेक दंत कथाएं हैं। कथाओं के अनुसार भगवान श्रीरामचंद्र रावण का वध करने के बाद माता सीता और लक्ष्मण, हनुमान सहित पुष्पक विमान द्वारा कपालमोचन सरोवर में स्नान करके ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए। कुंड का निर्माण किया। जिसे सूरजकुंड के नाम से जाना जाने लगा। इस स्थान पर सिद्ध पुरुष दूधाधारी बाबा रहते थे। दूधाधारी समाज की मान्यता मुस्लिम धर्म से भी जुड़ी है। मुगल सम्राट अकबर भी यहां आए थे। विभिन्न राज्यों से साधु आकर सूरजकुंड सरोवर के तट पर धूना रमाते हैं। यहां पर कदंब का पेड़ है।

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