‘लाल’ रेगिस्तान- दुनिया के सबसे बड़े सहारा मरुस्थल का रहस्य वैज्ञानिकों ने सुलझा लिया, उम्र को लेकर चौंकाने वाला खुलासा

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‘लाल’ रेगिस्तान- दुनिया के सबसे बड़े सहारा मरुस्थल का रहस्य वैज्ञानिकों ने सुलझा लिया, उम्र को लेकर चौंकाने वाला खुलासा

‘लाल’ रेगिस्तान- दुनिया के सबसे बड़े सहारा मरुस्थल का रहस्य वैज्ञानिकों ने सुलझा लिया, उम्र को लेकर चौंकाने वाला खुलासा

वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे बड़े ‘लाल’ रेगिस्तान का रहस्य सुलझा लिया है इसकी उम्र को लेकर चौंकाने वाला खुलासा


 पब्लिक न्यूज़ डेस्क - वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे बड़े ‘लाल’ रेगिस्तान का रहस्य सुलझा लिया है। इसकी उम्र को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। यह रेगिस्तान सहारा मरुस्थल का हिस्सा है और अफ्रीका के मोरक्को में है। इसे मोरक्को में लाला ललिया का टीला भी कहा जाता है।

पृथ्वी के इसे सबसे बड़े और सबसे जटिल रेगिस्तान की उम्र की गणना वैज्ञानिकों द्वारा की गई। यह रेगिस्तान करीब 100 मीटर ऊंचा और 700 मीटर चौड़ा है। इसकी उम्र को लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि यह रेगिस्तान करीब 13 हजार साल पहले बना था। शुरुआत के 8 हजार साल में यह जैसे बने थे, वैसे ही थे, लेकिन उसके बाद इनका आकार तेजी से बढ़ने लगा था। एबरिस्टविथ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ज्योफ डुलर ने बिर्कबेक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर चार्ल्स ब्रिस्टो के साथ रेगिस्तान पर एक शोध प्रकाशित किया था। शोध के अनुसार, रेगिस्तान का नाम लाला ललिया इसके आकार को देखकर रखा गया। इस तरह के रेगिस्तान अफ्रीका, एशिया और उत्तरी अमेरिका के अलावा मंगल ग्रह पर भी होते हैं। इनका निर्माण दिशा बदलने वाली विपरीत हवाओं के कारण होता है। लाला ललिया को मोरक्को की स्थानीय भाषा में सर्वोच्च पवित्र बिंदु कहते हैं। रिसर्च में सामने आया है कि यह रेगिस्तान प्रति वर्ष लगभग 50 सेंटीमीटर की स्पीड से रेगिस्तान में घूम रहा है। वैज्ञानिकों ने इसकी उम्र जानने के लिए ल्यूमिनसेंस डेटिंग नामक तकनीक का इस्तेमाल किया।

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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह टेक्निक गणना करती है कि रेत के कण आखिरी बार दिन के उजाले के संपर्क में कब आए थे। इसके लिए रेत के नमूने लिए गए और मंद लाल रोशनी में उनका विश्लेषण किया गया। प्रोफेसर डुलर ने रेत में मिले खनिज कणों को छोटी रिचार्जेबल बैटरी के रूप में वर्णित किया है, जो एक प्रकार के क्रिस्टल हैं। उनके अंदर एक प्रकार की ऊर्जा भी मौजूद है, जो प्राकृतिक वातावरण में रेडियोधर्मिता से आती है। रेत जितनी ज्यादा देर तक जमीन के नीचे दबी रहेगी, वह उतनी ही अधिक रेडियोधर्मिता के संपर्क में आएगी और उतनी ही अधिक ऊर्जा उत्पन्न करेगी। रेत के कण प्रकाश के रूप में ऊर्जा छोड़ते हैं, जिससे इनकी उम्र की गणना कर सकते हैं। प्रोफ़ेसर डुलर कहते हैं कि रेत के कणों से निकला प्रकाश जितना तेज़ होगा, कण उतने ही पुराने होंगे और उतने ही समय से वे दबे होंगे। इस रेगिस्तान में ऊपर की और जाना बेहद कठिन काम है। जैसे ही आप चढ़ते हैं, 2 बार ऊपर जाते हैं और एक वापस फिसलते हैं, लेकिन इस रेगिस्तान की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस रेगिस्तान में एक संगीत सुनाई देता है। दूर-दूर तक यहां इंसान नहीं बसते। न ही कोई यहां छुट्टियां मनाने आता है, बावजूद इसके संगीत कहां से बजता है, इसका रहस्य आज तक नहीं सुलझा है। कभी गिटार की धुन सुनाई पड़ती है तो कभी वॉयलिन के सुर बजते हैं। वैज्ञानिकों का तर्क है कि यह रेत के खिसकने की आवाज है, जो धुन बनकर कानों में गूंजती है।