सीरिया में इस्लामिक स्टेट लड़ाकों के बीवी-बच्चे किस हाल में हैं

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सीरिया में इस्लामिक स्टेट लड़ाकों के बीवी-बच्चे किस हाल में हैं

सीरिया में इस्लामिक स्टेट लड़ाकों के बीवी-बच्चे किस हाल में हैं


पब्लिक न्यूज डेस्क। सीरिया के अल-होल शिविर में अराजकता, हताशा और ख़तरा सा दिखता है. इस शिविर में इस्लामिक स्टेट के विदेशी लड़ाकों की पत्नियां और बच्चे रहते हैं. टेंटों के इस शहर में रहने वाले लोग हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों, निगरानी टावरों और कांटेदार बाड़ों से घिरे हुए रहते हैं.

विशाल रेगिस्तान में फैला ये शिविर क़ामिशली शहर के पास स्थित अल-मलिक्याह से चार घंटे की दूरी पर है. यह उत्तर-पूर्वी सीरिया में सीरिया-तुर्क़ी की सीमा के पास मौजूद है.

यहां रहने वाली महिलाएं काले कपड़े और नक़ाब पहनती हैं. कई इनसे अलग हैं. वहीं बाक़ियों का व्यवहार और स्वभाव दोस्ताना मालूम नहीं पड़ा. सब्ज़ियों की छोटी-सी मंडी के पास के एक कोने में चिलचिलाती धूप से बचती हुई कई महिलाएं आपस में बातचीत कर रही हैं. वो सभी पूर्वी यूरोप की रहने वाली हैं.

मैंने जब उनसे पूछा कि वो यहां कैसे पहुंचीं, तो इसके लिए उन्होंने अपने पति को जिम्मेदार बताया. उनके कहने का अर्थ यही था कि पति के आईएस में शामिल होने के चलते वो हज़ारों मील दूर और हजारों को प्रताड़ित करने, मारने और ग़ुलाम बनाने वाले संगठन के तहत रहने वहां पहुंची. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उनकी एक ही ग़लती थी कि वो ग़लत इंसान के प्यार में पड़ गईं.

आईएस आतंकियों की पत्नियों की ये सामान्य कहानी है. ऐसा इसलिए कि वो क्रूर और अपने ख़ास उद्देश्यों के लिए काम करने वाले संगठन से ख़ुद को अलग करना चाहती हैं. इन महिलाओं के पति या तो मारे गए, क़ैद हैं या लापता हो गए हैं और ये सब अपने बच्चों सहित वहीं फंस गई हैं.

इस शिविर में विदेशी आईएस लड़ाकों के 2,500 परिवारों सहित कुल क़रीब 60 हज़ार लोग रहते हैं. यहां कई लोग 2019 में बग़ुज़ में आईएस की हार के बाद से ही रह रहे हैं.

महिलाएं बहुत सावधानी से बात करती हैं. इनकी कोशिश होती है कि किसी का भी ध्यान उनकी ओर आकर्षित न हो ताकि उन्हें इसके गंभीर नतीजे ना झेलने पड़ें. हालांकि ये सब सुरक्षा​कर्मियों की परवाह नहीं करतीं. शिविर के अंदर कट्टरपंथी अभी भी इस्लामिक स्टेट के नियम लागू कर रहे हैं. सुबह जब हम वहां थे तो एक महिला की हत्या कर दी गई.

शिविर में हत्या होना आम

कुर्दों के नेतृत्व वाली 'सीरियन डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़' इन शिविरों का प्रबंधन करती हैं. उनके लिए इस शिविर की हिंसा और कट्टरता चिंताजनक है.

उत्तर-पूर्वी सीरिया में कुर्दों के नेतृत्व वाले प्रशासन के विदेश मंत्री डॉक्टर अब्दुलकरीम उमर मानते हैं कि अल-होल के शिविर में इस्लामिक स्टेट का शासन अभी भी है. उन्होंने कहा कि हिंसा की ज़्यादातर घटनाओं के लिए कट्टरपंथी महिलाएं ज़िम्मेदार हैं.

वो कहते हैं, "रोज़ हत्याएं हो रही हैं. लोग जब आईएस की विचारधारा को नहीं मानते तो वो तंबुओं को जला देते हैं. कट्टरपंथी विचारों को वो अपने बच्चों को सिखा रहे हैं.''

शिविर में हर जगह बच्चे हैं. ये एशिया, अफ़्रीका और यूरोप से अपने माता-पिता के साथ आए हैं. इनके माता-पिता इस्लामिक स्टेट के शासन में रहने के लिए सीरिया आए थे.

उनके पास करने को बहुत कम काम हैं. शिविर के विदेशी हिस्सों से गुज़रते वक़्त कई छोटे बच्चों ने हमारी गाड़ी पर पत्थर चलाए. इससे एक खिड़की का शीशा टूट गया. कार में बैठे सुरक्षाकर्मी बाल-बाल बचे. ऐसा होना आम बात है.

ज़्यादातर बच्चों ने लड़ाई के सिवा कुछ नहीं देखा

बाक़ी बच्चे बिना किसी काम के तंबू के बाहर बैठे हमें घूरते हैं. इराक़ और सीरिया में आईएस ने अपने इलाके बचाने की ज़ोरदार कोशिश की और उस दौरान इनमें से ज़्यादातर बच्चों ने कल्पना से भी परे कठिन समय का सामना किया.

इनमें से कई लड़ाई के सिवा कुछ और नहीं जानते और कभी स्कूल भी नहीं गए.

कई बच्चों के लगे चोट साफ़ दिखाई देते हैं. मैंने देखा कि एक कटे पैर वाला लड़का ऊबड़-खाबड़ और धूल भरे रास्ते पर मुश्किल से कहीं जा रहा है. सबको सदमा और नुक़सान झेलना पड़ा है. ज़्यादातर बच्चों के माता-पिता में से कम से कम एक नहीं हैं.

शिविर में बढ़ती हिंसा से निपटने के लिए सुर​क्षा के पुख़्ता इंतज़ाम हो रहे हैं. और भी उपाय किए गए हैं.

बड़े लड़कों को संभावित ख़तरे के रूप में देखा जाता है. जब वे किशोर हो जाते हैं तो उन्हें उनके परिवारों से दूर डिटेंशन सेंटर भेज दिया जाता है.

डॉक्टर उमर कहते हैं, "एक तय उम्र का हो जाने पर वे अपने और दूसरों के लिए ख़तरा हो जाते हैं. इसलिए इन बच्चों के लिए पुनर्वास केंद्र बनाने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं है."

उन्होंने बताया कि इंटरनेशनल रेड क्रॉस (आईसीआरसी) के ज़रिए ये बच्चे अपनी मां के संपर्क में रहते हैं.

'उसके बढ़ने से चिंता भी बढ़ती जाती है'

अल-होल के उत्तर में एक छोटा-सा शिविर 'रोज' है. यहां भी इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों की औरतें और बच्चे रहते हैं. यहां हिंसा कम है. यहीं ब्रिटेन की कई महिलाएं जिनमें शमीमा बेगम, निकोल जैक और उनकी बेटियां भी रहती थीं.

उस शिविर को तार की बाड़ से अलग किया गया है. वहां मेरी मुलाक़ात कैरीबियाई देश त्रिनिदाद और टोबैगो की कुछ महिलाओं से होती है. इस्लामिक स्टेट के लिए भर्ती होने वालों के लिहाज से यह द्वीप पश्चिमी हिस्से के सबसे अहम देशों में से एक था.

एक महिला का 10 साल का बेटा है. आईएस के शासन में रहने के लिए वो अपने बच्चों के साथ वहां गई थी. पति के मरने के बाद वो आईएस का शासन ख़त्म होने तक वहीं रहीं. उन्होंने सुना है कि लड़कों के बड़े होने के बाद उन्हें परिवार से अलग कर दिया जाता है. अब उन्हें डर है कि उनके बेटे के साथ भी ऐसा हो सकता है.

जैसे-जैसे लड़का बड़ा हो रहा है, मां की चिंता बढ़ती जा रही है. वो कहती हैं, "वो रोज़ बड़ा हो रहा है. मुझे लगता है शायद एक दिन वो आकर उसे ले जाएंगे."

उनका बेटा उनके पास ही अपने छोटे भाई-बहन के साथ फ़ुटबॉल खेल रहा है. उनके पिता एक हवाई हमले में मारे गए थे. वो मुझसे कहता है कि यदि वो घर से दूर गया तो अपनी मां को बहुत याद करेगा.

इस शिविर में साफ़-सफ़ाई के इंतज़ाम बड़े मामूली हैं. यहां शौचालय और शावर क्यूबिकल बाहर ही लगे हैं. पीने का पानी टैंकों से आता है. इसे लेकर सभी बच्चों ने शिकायत की.

शिविर में एक छोटा सा बाज़ार है जहां खिलौने, भोजन और कपड़े मिलते हैं. हर महीने यहां रहने वाले परिवारों को खाने के पैकेज मिलते हैं. बच्चों को कपड़े दिए जाते हैं.

कुछ महिलाएं शिविर में एक साथ एक ही परिवार में रहती हैं. असल में इस्लामिक स्टेट के राज में कुछ महिलाओं ने एक ही शख़्स से निकाह किया. शिविर में भी वो बंधन कायम है और वे सभी मिलकर बच्चों की परवरिश और घर के काम-काज करती हैं.

बच्चों की तस्वीरों में बर्बादी, बमबारी और युद्ध

कई बच्चे 'सेव द चिल्ड्रन' नामक संस्था द्वारा संचालित एक अस्थायी (टेंट में बने) स्कूल में जाते हैं.

संस्था के सीरिया रिस्पांस ऑफ़िस की सारा राशदान कहती हैं, "हम कई कहानियां सुनते हैं. दुर्भाग्य से कोई भी कहानी सुकून देने वाली नहीं है. लेकिन हम आशा करते हैं कि ये बच्चे अपने घर जा पाएंगे और सामान्य बचपन जीते हुए स्वस्थ और सुरक्षित रहेंगे."

वो कहती हैं, "हमने इनके व्यवहार में बहुत बदलाव देखे हैं. पहले देखा था कि ये बर्बादी, बमबारी और युद्ध की तस्वीरें बनाते हैं, लेकिन अब वे आशावादी चीज़ों जैसे ख़ुशी, फूल, घरों आदि की तस्वीरें बना रहे हैं."

हालांकि, ये नहीं पता कि ये बच्चे वहां से कैसे निकलेंगे या उनका भविष्य कैसा होगा?

पश्चिम के कई देश आईएस के विदेशी लड़ाकों की औरतों को अपने देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा मानते हैं. हालांकि महिलाओं ने इस बात से इनकार किया कि वे किसी की सुरक्षा के लिए कोई ख़तरा हैं.

दूसरी ओर ये महिलाएं इस्लामिक स्टेट के पीड़ितों पर चर्चा नहीं करना चाहतीं. इस्लामिक स्टेट के पीड़ितों में हज़ारों यज़ीदी महिलाएं हैं जिन्हें आईएस ने ग़ुलाम बना रखा था.

इन महिलाओं के लिए ये कहना सामान्य है कि उन्होंने आईएस का कोई हिंसक प्रोपेगेंडा नहीं देखा. आईएस के "ख़िलाफ़त" में रहने के बाद भी कई महिलाएं आईएस के सिर काटने, नरसंहार और जातिसंहार करने की घटनाओं से अनजान होने का दावा करती हुई मिलीं.

आईएस में शामिल होने वाले लोगों का ऐसा करना आम है. ज़्यादातर के लिए ये ऐसी बातें नहीं हैं जिनकी जांच-परख की जानी चाहिए. बाहरी दुनिया से वे कट गई हैं और बहुत कम को पता है कि उनके अपने देश में उन्हें कैसे देखा जाता है.

स्वीडन, जर्मनी और बेल्जियम जैसे कई यूरोपीय देश इनमें से कई बच्चों और उनकी माताओं को वापस बुला रहे हैं.

इन शिविरों की स्थिति लगातार बिगड़ रही है. कुर्द अधिकारी अधिकाधिक देशों से अपने नागरिकों को वापस बुलाने का अनुरोध कर रहे हैं.

डॉक्टर उमर कहते हैं, "ये एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है, पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय अपने कर्तव्यों और दायित्वों को नहीं निभा रहा है. यदि यही हाल रहा तो आने वाले वक़्त में हमें ऐसी आपदा का सामना करना पड़ सकता है जिससे हम निपट नहीं पाएंगे."

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