समय से पूर्व जन्मे बच्चों में आंख की रोशनी जाने का खतरा, 18.5 फीसदी में मिली ये समस्या

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समय से पूर्व जन्मे बच्चों में आंख की रोशनी जाने का खतरा, 18.5 फीसदी में मिली ये समस्या

समय से पूर्व जन्मे बच्चों में आंख की रोशनी जाने का खतरा, 18.5 फीसदी में मिली ये समस्या

समय पूर्व जन्मे बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी तमाम समस्याएं आती हैं।


पब्लिक न्यूज़ डेस्क। समय पूर्व जन्मे बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी तमाम समस्याएं आती हैं। अन्य विकारों के साथ इनकी आंखों पर खतरा बढ़ जाता है। रोशनी तक जा सकती है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विवि (केजीएमयू) के बाल रोग व नेत्र विभाग के साझा शोध में यह निष्कर्ष सामने आया है। ऐसे में चिकित्सकों ने समय पूर्व जन्मे बच्चों की देखभाल और आंखों की जांच को बेहत जरूरी बताया है।

विवि में समय पूर्व जन्मे 340 बच्चों पर हुए शोध में 18.5 फीसदी में रेटिनोपैथी (आंख का रोग) की समस्या देखने को मिली। जबकि 2.4 फीसदी में यह समस्या बेहद गंभीर पाई गई। इस शोध को एल्जेवियर जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त क्लीनिकल एपिडमियोलॉजी एंड ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित किया गया है। इस शोध में प्रभात कुमार, अर्पिता भृगुवंशी, माला कुमार, शालिनी त्रिपाठी, संदीप सक्सेना और संजीव कुमार गुप्ता शामिल रहे।

दरअसल, 37 सप्ताह से पहले जन्मे बच्चों को समय पूर्व प्रसव माना जाता है। शोध में शामिल किए गए बच्चों के वजन और अन्य जरूरी टेस्ट किए गए। साथ ही नेत्र विभाग के विशेषज्ञों के माध्यम से इनकी आंखों की जांच कराई गई। इसमें देखा गया कि जिन बच्चों का जन्म 34 सप्ताह से पहले हुआ था और वजन दो किलोग्राम से कम था उनमें से 18.5 फीसदी बच्चों में रेटिनोपैथी की समस्या मिली। 30 सप्ताह से पहले जन्मे और 1250 ग्राम से कम वजन वाले बच्चों में यह समस्या काफी गंभीर पाई गई।

धमनियां हो जाती हैं क्षतिग्रस्त

मुख्य शोधकर्ता डॉ. एसएन सिंह बताते हैं कि रेटिनोपैथी वह अवस्था होती है, जिसमें आंख में खून पहुंचाने वाली महीन धमनियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। शुगर से पीड़ित लोगों में डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या देखी जाती है। डाॅ. सिंह ने बताया कि गर्भ में ये धमनियां धीरे-धीरे विकसित होती हैं। समय पूर्व प्रसव से इनका पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता है।

इंजेक्शन व सर्जरी से इलाज संभव

डॉ. सिंह कहते हैं, जन्म के तुरंत बाद ही इस समस्या का पता चल जाए तो इलाज संभव है। समस्या कम गंभीर होने पर इंजेक्शन से काम चल जाता है। अगर रेटिना ज्यादा क्षतिग्रस्त है तो सर्जरी की जरूरत पड़ती है। यदि इस ओर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो आंखों की रोशनी जाने का भी खतरा है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि समय पूर्व जन्म के बावजूद अगर अगले चार से छह सप्ताह में बच्चे का वजन तेजी से बढ़ा तो उनकी रेटिनोपैथी की समस्या भी नियंत्रित हो गई।

ऑक्सीजन सपोर्ट पर ज्यादा खतरा

डॉ. सिंह ने बताया कि जिन बच्चों को लंबे समय तक ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत रही हो उनमें इसकी आशंका बढ़ जाती है। सांस चलना, क्लीनिकल सेप्सिस यानी संक्रमण के प्रति ज्यादा संवेदनशील बच्चों में भी यह समस्या ज्यादा मिली है।