आखिर कहाँ से उत्पत्ति हुई भूमिहार ब्राह्मणों की

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आखिर कहाँ से उत्पत्ति हुई भूमिहार ब्राह्मणों की

आखिर कहाँ से उत्पत्ति हुई भूमिहार ब्राह्मणों की


भगवान विष्णु के अवतार, भगवान परशुराम को, भूमिहारों का जनक माना जाता है

भूमिहार ब्राह्मणों (अयाचक ब्राह्मण) की उत्पत्ति कहाँ से हुई हैI इसके मूल व गोत्र याचक ब्राह्मण से क्यो मिलता हैं, यदि मिलता हैं तो यह क्यो नही याचक ब्राह्मणो की तरह दान-दक्षिणा लेता हैं l ऐसे अनेक प्रश्न बराबर उठते हैं। विभिन्न स्रोतो से प्राप्त जानकारी के आधार पर उठ रहे उन सभी प्रश्नो का जवाब प्रस्तुत लेख मे देने की कोशिश की गई है।
अनेक विद्वानो ने भूमिहार ब्राह्मण के उत्पत्ति का इतिहास, किम्वदन्तियों व लिखित लेखों को आधार मान कर अपनी जानकारी को कलमबद्ध करने का प्रयास युगो से करते आ रहे हैं। ब्राह्मणो के छ: कर्म (पढ़ना, पढ़ाना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान देना, दान लेना) मे से एक कर्म (दान लेना) का न किया जाना, ब्राह्मण से भूमिहार ब्राह्मण की श्रेणी मे ला खड़ा करता है I ऐसी अवधारणा चली आ रही है कि भगवान परशुराम जी ने क्षत्रियों की क्रूरता व निरंकुशता से तंग आ कर अपने फरसा से क्रूर क्षत्रियों का नाश कर दिया I क्षत्रियों के नाश के उपरान्त प्राप्त भूमि को शरीर से सशक्त ब्राह्मणों के बीच वितरीत कर दियाI भूमि प्राप्ति के बाद ब्राह्मणों ने दान लेना छोड़ दियाl जो शारीरिक रूप से कमजोर ब्राह्मण थे I वे पूर्ववत् अपनी परम्परा से जुडे़ रहेl दान न लेने वाले, ये ब्राह्मण ही कालान्तर मे भूमिहार ब्राह्मण कहलाये। यह एक ऐसी सवर्ण जाति है, जो अपने शौर्य, पराक्रम एवं बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाति हैंI भगवान विष्णु के अवतार, भगवान परशुराम को, भूमिहारों का जनक माना जाता हैI भूमिहार ब्राह्मण भारत के विभिन्न क्षेत्रो मे बसे हैंl बहुसंख्यक आवादी इनकी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं झारखण्ड में पाई जाती हैI मगध के महान राजा पुष्य मित्र शुंग और कण्व वंश दोनों ही ब्राह्मण राजवंश के (भूमिहार ब्राह्मण) थेI
भूमिहार ब्राह्मण की पुरानी व नवीन पदवियों के बारे मे कुछ जानकारी साझा करना चाहूँगा I मिश्र, चौबे, दुबे पाण्डेय, तिवारी, त्रिपाठी, शुक्ल, उपाध्याय, शर्मा, झा, ओझा, द्विवेदी इसके अलावा राजपाट और ज़मींदारी के कारण एक बहुत बड़ा वर्ग भूमिहार ब्राह्मण का राय, शाही, सिंह(सिन्हा), चौधरी(मैथिल से), ठाकुर(मैथिल से) आदी लिखा जाने लगाI भूमिहार ब्राह्मणो व मैथिल ब्राह्मणो के बीच वैवाहिक सम्बन्ध होते थे, इसके अनेक प्रमाण हैंI 11 जनवरी 1916 ई० को भारतमित्र के सम्पादकीय मे मैथिलों और भूमिहार ब्राह्मणों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध होते है इसकी चर्चा की गई थीI इस सम्पादकीय टिप्पणी को देखते दरभंगा निवासी जीवछ मिश्र ने काफी रोष व्यक्त कियाI इसके पूर्व सन् 1911ईo मे भागलपुर की मैथिल महासभा के अधिवेशन मे भूमिहार ब्राह्मणों व मैथिलो के बीच वैवाहिक सम्बन्ध को रोकने का प्रस्ताव पास हुआl मैथिल व भूमिहार ब्राह्मण के बीच वैवाहिक सम्बन्ध पर "ब्राह्मण" नामक एक पुस्तक छपी थी दरभंगास्थ रामेश्वर प्रेस मे, कलान्तर मे जिन मैथिलो ने अयाचक, पश्चिमा या भूमिहार ब्राह्मणों से वैवाहिक सम्बन्ध बनाऐI वे दोगमियां ब्राह्मण कहलाएI दोगमियां नाम उन मैथिल ब्राह्मण को दिया गया है, जिनके सन्तानो का वैवाहिक सम्बन्ध भूमिहार ब्राह्मणों से भी है और मैथिल ब्राह्मणो से भी हैंI कई ऐसे उदाहरण भी मिले हैं, जिससे प्रमाणित होता है कि भूमि प्राप्ति के बाद भी भूमिहार ब्राह्मण प्राचीन काल से ही पुरोहित का काम करते आ रहे हैंI प्रयाग (ईलाहाबाद) के त्रिवेणी संगम के सभी पंडे-पुजारी भूमिहार ब्राह्मण ही तो हैं। देव-गया के सूर्यमंदिर के पुजारी खेदा पांडे वगैरह भी सोनभदरिया बाभन (भूमिहार ब्राह्मण) मयूरभट्ट के वंशज हैंI
बनारस के राजा भी भूमिहार ब्राह्मणों थे, जिनका गोत्र गौतम था I बनारस पर उनका अधिपत्य 1725-1947ई० तक रहाI इसके अलावा कुछ अन्य बड़े राज्य बेतिया, हथुआ, टिकारी, तमकुही, लालगोला इत्यादि भी भूमिहार ब्राह्मणों के अधिपत्य में रहेI 1857 ई० में हथुआ के भूमिहार ब्राह्मण राजा ने अंग्रेजो के खिलाफ सर्वप्रथम बगावत कीl
अनापुर राज, अमावा राज, बभनगावां राज, भरतपुरा धरहरा राज, शिवहर मकसुदपुर राज, औसानगंज राज, नरहन ऐस्टेट, जोगनी ऐस्टेट, पर्सागढ़ ऐस्टेट (छपरा), गोरिया कोठी ऐस्टेट (सिवान), रूपवाली ऐस्टेट, जैतपुर ऐस्टेट, हरदी ऐस्टेट, ऐनखाओं जमींदारी, ऐशगंज जमींदारी, भेलावर गढ़ आगापुर ऐस्टेट, पैनाल गढ़, लट्टा गढ़, कयाल गढ़, रामनगर जमींदारी, रोहुआ ऐस्टेट, राजगोला जमींदारी, पंडुई राज केवटगामा जमींदारी, घोसी ऐस्टेट, परिहंस ऐस्टेट, धरहरा ऐस्टेट, रंधर ऐस्टेट, अनापुर ऐस्टेट (इलाहाबाद), चैनपुर मंझा, मकसूदपुर रुसी, खैरअ मधुबनी, नवगढ़ - भूमिहार से सम्बंधित हैl असुराह ऐस्टेट कयाल औरंगाबाद में बाबु अमौना तिलकपुर ,शेखपुरा ऐस्टेट जहानाबाद में तुरुक तेलपा ऐस्टेट क्षेओतर गया बारों ऐस्टेट (इलाहाबाद) पिपरा कोय्ही ऐस्टेट (मोतिहारी) इत्यादि ये सभी अब इतिहास के गोद में समां चुके हैंI
दंडी स्वामी सहजानंद सरस्वती (जुझौतिया ब्राह्मण, भूमिहार ब्राह्मण, किसान आंदोलन के जनक), बैकुन्ठ शुक्ल (14 मई 1934 ई० को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा फाँसी), 1857 ई० के वीर क्रांतिकारी मंगल पांडे, यमुना कर्जी, शील भद्र याजी, कर्यानन्द शर्मा, योगेन्द्र शुक्ल, चंद्रमा सिंह, राम बिनोद सिंह, राम नंदन मिश्र, यमुना प्रसाद त्रिपाठी, महावीर त्यागी, राज नरायण, रामवृक्ष बेनीपुरी, अलगू राय शास्त्री, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, राहुल सांस्कृत्यायन, बनारस के राजा चैत सिंह(जिन्होने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह किया वारेन हेस्टिंग और अंग्रेजी सेना को धूल चटाई), देवीपद चौधरी, राज कुमार शुक्ल (चम्पारण आंदोलन कि शुरुवात की), फतेह बहादुर शाही, हथुआ के राजा (1857ई० में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह किया), काशी नरेश (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए कई हजार एकड़ का भूमि दान मे दिया), योगेंद्र नारायण राय लालगोला(मुर्शिदाबाद) के राजा (अपने दान व परोपकारी स्वभाव के लिए प्रसिद्ध हुए), ऐसे अनेक महान व्यक्तित्व, भूमिहार ब्राह्मण समाज ने दिएI
1. एम.ए. शेरिंग ने 1872 में अपनी पुस्तक Hindu Tribes & Cast में कहा है कि, "भूमिहार जाति के लोग हथियार उठाने वाले ब्राहमण हैं (सैनिक ब्राह्मण)।"
2. अंग्रेज विद्वान मि. बीन्स ने लिखा है - "भूमिहार एक अच्छी किस्म की बहादुर प्रजाति है, जिसमे आर्य जाति की सभी विशिष्टताएं विद्यमान है। ये स्वाभाव से निर्भीक व हावी होने वालें होते हैं।"
3. पंडित अयोध्या प्रसाद ने अपनी पुस्तक "वप्रोत्तम परिचय" में भूमिहार को- भूमि की माला या शोभा बढ़ाने वाला, अपने महत्वपूर्ण गुणों तथा लोकहितकारी कार्यों से भूमंडल को शुशोभित करने वाला, समाज के हृदयस्थल पर सदा विराजमान- सर्वप्रिय ब्राह्मण कहा हैI
4. विद्वान योगेन्द्र नाथ भट्टाचार्य ने अपनी पुस्तक हिन्दू कास्ट & सेक्ट्स में लिखा है की भूमिहार ब्राह्मण की सामाजिक स्थिति का पता उनके नाम से ही लग जाता है, जिसका अर्थ है भूमिग्राही ब्राह्मण। पंडित नागानंद वात्स्यायन द्वारा लिखी गई पुस्तक - " भूमिहार ब्राह्मण इतिहास के दर्पण में "
" भूमिहारो का संगठन जाति के रूप में "
भूमिहार ब्राह्मण जाति ब्राह्मणों के विभिन्न भेदों और शाखाओं के अयाचक लोगो का एक संगठन ही हैl प्रारंभ में कान्यकुब्ज शाखा से निकले लोगो को भूमिहार ब्राह्मण कहा गया, उसके बाद सारस्वत, महियाल, सरयूपारी, मैथिल, चितपावन, कन्नड़ आदि शाखाओं के अयाचक ब्राह्मण लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इन लोगो से सम्बन्ध स्थापित कर भूमिहार ब्राह्मणों में मिलते गएl मगध के बाभनो और मिथिलांचल के पश्चिमा तथा प्रयाग के जमींदार ब्राह्मण भी अयाचक होने से भूमिहार ब्राह्मणों में ही सम्मिलित होते गएl
भूमिहार ब्राह्मण के मुख्य मूलों के लोगो का भूमिहार ब्राह्मण में संगठित होने की एक सूची यहाँ दी जा रही है :
1. कान्यकुब्ज शाखा से :- दोनवार ,सकरवार,किन्वार, ततिहा , ननहुलिया, वंशवार के तिवारी, कुढ़ानिया, दसिकर, आदि I
2. सरयू नदी के तट पर बसने वाले से : - गौतम, कोल्हा (कश्यप), नैनीजोर के तिवारी , पूसारोड (दरभंगा) खीरी से आये पराशर गोत्री पांडे, मुजफ्फरपुर में मथुरापुर के गर्ग गोत्री शुक्ल, गाजीपुर के भारद्वाजी, मचियाओं और खोर के पांडे, म्लाओं के सांकृत गोत्री पांडे, इलाहबाद के वत्स गोत्री गाना मिश्र ,आदि l
3.मैथिल शाखा से : - मैथिल शाखा से बिहार में बसने वाले कई मूल के भूमिहार ब्राह्मण आये हैंI इनमे सवर्ण गोत्री बेमुवार और शांडिल्य गोत्री दिघवय - दिघ्वैत और दिघ्वय संदलपुर, बहादुरपुर के चौधरी प्रमुख है. (चौधरी, राय, ठाकुर, सिंह मुख्यतः मैथिल ही प्रयोग करते है ) l
4. महियालो से : - महियालो की बाली शाखा के पराशर गोत्री ब्राह्मण पंडित जगनाथ दीक्षित छपरा (बिहार) में एकसार स्थान पर बस गए. एकसार में प्रथम वास करने से वैशाली, मुजफ्फरपुर, चैनपुर, समस्तीपुर, छपरा, परसगढ़, सुरसंड, गौरैया कोठी, गमिरार, बहलालपुर , आदि गाँव में बसे हुए पराशर गोत्री एक्सरिया मूल के भूमिहार ब्राह्मण हो गए l
5. चितपावन से : - न्याय भट्ट नामक चितपावन ब्राह्मण सपरिवार श्राद्ध हेतु पूर्व काल में कभी गया आये थे. अयाचक ब्राह्मण होने से इन्होने अपनी पोती का विवाह मगध के इक्किल परगना में वत्स गोत्री दोनवार के पुत्र उदय भान पांडे से कर दिया और भूमिहार ब्राह्मण हो गए. पटना डाल्टनगंज रोड पर धरहरा, भरतपुर आदि कई गाँव में तथा दुमका, भोजपुर, रोहतास के कई गाँव में ये चितपवानिया मूल के कौन्डिल्य गोत्री अथर्व भूमिहार ब्राह्मण रहते हैं l
भूमिपति ब्राह्मणों के लिए पहले जमींदार ब्राह्मण शब्द का प्रयोग होता थाI याचक ब्राह्मणों के एक दल ने विचार किया की जमींदार तो सभी जातियों को कह सकते हैं, फिर हममे और जमीन वाली जातियों में क्या फर्क रह जाएगा. काफी विचार विमर्श के बाद " भूमिहार " शब्द अस्तित्व में आया." भूमिहार ब्राह्मण " शब्द के प्रचलित होने की कथा भी बहुत रोचक है।
बनारस के महाराज ईश्वरी प्रसाद सिंह ने 1885 ई० में बिहार और उत्तर प्रदेश के जमींदार ब्राह्मणों की एक सभा बुलाकर प्रस्ताव रखा की हमारी एक जातीय सभा होनी चाहिएl सभा बुलाने के प्रश्न पर सभी सहमत थेI परन्तु सभा का नाम क्या हो इस पर बहुत ही विवाद उत्पन्न हो गयाl मगध के बाभनो ने जिनके नेता स्व.कालीचरण सिंह जी थे, सभा का नाम " बाभन सभा " रखने का प्रस्ताव रखाI स्वयं महाराज "भूमिहार ब्राह्मण सभा " के नाम के पक्ष में थेI बैठक मैं आम राय नहीं बन पाई, अतः नाम पर विचार करने हेतु, एक उपसमिति गठित की गईl सात वर्षो के बाद समिति की सिफारिश पर "भूमिहार ब्राह्मण " शब्द को स्वीकृत किया गया और साथ ही साथ इस शब्द के प्रचार व् प्रसार का काम भी हाथ में लिया गयाl इसी वर्ष महाराज बनारस तथा स्व.लंगट सिंह जी के सहयोग से मुजफ्फरपुर में एक कालेज खोला गयाl जिसे जी.बी.बी. कालेज के नाम से पुकारा गयाI आज वही काॅलेज लंगट सिंह कालेज के नाम से प्रसिद्ध है।
भूमिहार ब्राह्मणों के इतिहास को पढ़ने से पता चलता है कि अधिकांश समाजशास्त्रियों ने भूमिहार ब्राह्मणों को कान्यकुब्ज की शाखा माना हैI भूमिहार ब्राह्मण का मूलस्थान मदारपुर है, जो कानपुर - फरूखाबाद की सीमा पर बिल्हौर स्टेशन के पास हैl 1528 ई० में बाबर ने मदारपुर पर अचानक आक्रमण कर दियाl इस भीषण युद्ध में वहाँ के ब्राह्मणों सहित सब लोग मार डाले गएl इस हत्याकांड से किसी प्रकार अनंतराम ब्राह्मण की पत्नी बच निकली थी, जो बाद में एक बालक को जन्म दे कर इस लोक से चली गईl इस बालक का नाम गर्भू तिवारी रखा गयाl गर्भू तिवारी के खानदान के लोग कान्यकुब्ज प्रदेश के अनेक गाँव में बसते हैI कालांतर में इनके वंशज उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विभिन्न गाँव में बस गएl गर्भू तेवारी के वंशज भूमिहार ब्राह्मण कहलायेl इनसे वैवाहिक सम्बन्ध रखने वाले समस्त ब्राह्मण, कालांतर में भूमिहार ब्राह्मण कहलायेI
गढ़वाल काल के बाद मुसलमानों से त्रस्त भूमिहार ब्राह्मण ने जब कान्यकुब्ज क्षेत्र से पूर्व की ओर पलायन प्रारंभ किया और अपनी सुविधानुसार यत्र-तत्र बस गए तो अनेक उपवर्गों के नाम से संबोधित होने लगेI दोनवार, गौतम, कान्यकुब्ज, जेथारिया आदिl अनेक कारणों, अनेक रीतियों से उपवर्गों का नामकरण किया गयाl कुछ लोगो ने अपने आदि पुरुष से अपना नामकरण किया और कुछ लोगो ने गोत्र सेl कुछ का नामकरण उनके स्थान से हुवा जैसे - सोनभद्र नदी के किनारे रहने वालो का नाम सोन भरिया, सरस्वती नदी के किनारे वाले सर्वारिया, सरयू नदी के पार वाले सर्यूपारी, आदिI मूलडीह के नाम पर भी कुछ लोगो का नामकरण हुआ जैसे-जेथारिया, हीरापुर पण्डे, वेलौचे, मचैया पाण्डे, कुसुमि तेवरी, ब्र्हम्पुरिये, दीक्षित, जुझौतिया आदि।
पिपरा के मिसिर, सोहगौरा के तिवारी, हिरापुरी पांडे, घोर्नर के तिवारी, माम्खोर के शुक्ल, भरसी मिश्र, हस्त्गामे के पांडे, नैनीजोर के तिवारी, गाना के मिश्र, मचैया के पांडे, दुमतिकार तिवारी, , आदिl भूमिहार ब्राह्मण भूमि का मालिक होने से भूमिहार कहलाने लगेI
भूमिहार हर क्षेत्र में अग्रणीय है। ब्राह्मण होने के कारण भूमिहार स्वयं हल नहीं जोतते है।
1. सर्वप्रथम 1885 में ऋषिकुल भूषण काशी नरेश महाराज श्री इश्वरी प्रसाद सिंह जी ने वाराणसी में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासभा की स्थापना की l
2. 1885 में अखिल भारतीय त्यागी महासभा की स्थापना मेरठ में हुई l
3. 1890 में मोहियाल सभा की स्थापना हुई l
4. 1913 में स्वामी सहजानंद जी ने बलिया में आयोजित किया l
5. 1926 में पटना में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासभा का अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता चौधरी रघुवीर नारायण सिंह त्यागी ने की l
6. 1927 में प्रथम अयाचक ब्राह्मण सम्मलेन की अध्यक्षता सर गणेश दत्त ने की l
7. 1927 में मेरठ में ही अखिल भारतीय त्यागी महासभा की अध्यक्षता राय बहादुर जगदेव राय ने की l
8. 1926-27 में अपने अधिवेशन में कान्यकुब्ज ब्राह्मणों ने प्रस्ताव पारित कर भूमिहार ब्राह्मणों को अपना अंग घोषित करते हुए अपने समाज के गठन में सम्मलित होने का निमंत्रण दिया l
9. 1929 में सारस्वत ब्राह्मण महासभा ने भूमिहार ब्राह्मणों को अपना अंग मानते हुए अनेक प्रतिनिधियों को अपने संगठन का सदस्य बनाया l
10. 1945 में बेतिया (बिहार) में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता डा.बी.एस.पूंजे (चितपावन ब्राह्मण) ने की l
11. 1968 में श्री सूर्य नारायण सिंह (बनारस ) के प्रयास से ब्रह्मर्षि सेवा समिति का गठन हुआ और इस वर्ष रोहनिया में एक अधिवेशन पंडित अनंत शास्त्री फड़के (चितपावन ) की अध्यक्षता में हुआ l
12. 1975 में लखनऊ में भूमेश्वर समाज तथा कानपूर में भूमिहार ब्राह्मण समाज की स्थापना हुई l
13. 1979 में अखिल भारतीय ब्रह्मर्षि परिषद् का गठन हुआ l
14. 8 मार्च 1981 गोरखपुर में भूमिहार ब्राह्मण समाज का गठन हुआ I
15. 23 अक्टूबर 1984 में गाजीपुर में प्रांतीय भुमेश्वर समाज का अधिवेशन जिसकी अध्यक्षता श्री मथुरा राय ने की डा. रघुनाथ सिंह जी ने इस सम्मलेन का उद्घाटन कियाI 
16. 1989 में ईलाहाबाद (प्रयाग) में भूमेश्वर समाज की स्थापना हुई l
"हमारे देश आर्यावर्त में 7200 विक्रम सम्वत् पूर्व, देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा हेतु एक विराट युद्ध राजा सहस्रबाहु सहित समस्त आर्यावर्त के 21 राज्यों के क्षत्रिय राजाओ के विरूद्ध हुआ, जिसका नेतृत्व ऋषि जमदग्नि के पुत्र ब्रह्मऋषि भगवान परशुराम ने किया, इस युद्ध में आर्यावर्त के अधिकतर ब्राह्मणों ने भाग लिया और इस युद्ध में भगवान परशुराम की विजय हुई तथा इस युद्ध के उपरान्त अधिकतर ब्राह्मण अपना धर्मशास्त्र एवं ज्योतिषादि का कार्य त्यागकर समय-समय पर कृषि क्षेत्र में संलग्न होते गये, जिन्हे कालान्तर मे अयाचक ब्राह्मण व खांडवायन या भूमिहार कहा जाने लगा I"
जो बाद के काल खण्ड मे त्यागी, भूमिहार, महियाल, पुष्करणा, गालव, चितपावन, नम्बूदरीपाद, नियोगी, अनाविल, कार्वे, राव, हेगडे, अयंगर एवं अय्यर आदि कई अन्य उपनामों से पहचाने जाने लगे।
त्यागी अर्थात भूमिहार आदि ब्रह्मऋषि वंशज यानि अयाचक ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछ भागों में त्यागी, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार व बंगाल में भूमिहार, जम्मू कश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल, मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में अनाविल, महाराष्ट्र में चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में अयंगर एवं हेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवं अय्यर, आंध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव तथा उड़ीसा में दास एवं मिश्र आदि उपनामों से जाना जाता है। अयाचक ब्राह्मण अपने विभिन्न नामों के साथ भिन्न भिन्न क्षेत्रों में अभी तक तो अधिकतर कृषि कार्य करते थे, लेकिन पिछले कुछ समय से विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहे हैंI भूमिहार ब्राह्मण के कुछ मूलों के लोगो का भूमिहार ब्राह्मण रूप में संगठित होने की एक सूची यहाँ दी जा रही है :
1. कान्यकुब्ज शाखा से :- दोनवार ,सकरवार,किन्वार, ततिहा , ननहुलिया, वंशवार के तिवारी, कुढ़ानिया, दसिकर, आदि I
2. सरयूपारी शाखा से : – गौतम, कोल्हा (कश्यप), नैनीजोर के तिवारी , पूसारोड (दरभंगा) खीरी से आये पराशर गोत्री पांडे, मुजफ्फरपुर में मथुरापुर के गर्ग, 
गर्ग गोत्री शुक्ल, गाजीपुर के भारद्वाजी, मचियाओं और खोर के पांडे, म्लाओं के सांकृत गोत्री पांडे, इलाहबाद के वत्स गोत्री गाना मिश्र ,राजस्थान आदि पश्चिमोत्तर क्षेत्र के पुष्करणा – पुष्टिकरणा – पुष्टिकर ब्राह्मण आदि हैं I
3. मैथिल शाखा से : – मैथिल शाखा से बिहार में बसने वाले कई मूल के भूमिहार ब्राह्मण आये हैं.इनमे सवर्ण गोत्री बेमुवार और शांडिल्य गोत्री दिघवय – दिघ्वैत और दिघ्वय संदलपुर प्रमुख है I
4. महियालो से : – महियालो की बाली शाखा के पराशर गोत्री ब्राह्मण पंडित जगनाथ दीक्षित छपरा (बिहार) में एकसार स्थान पर बस गए I एकसार में प्रथम वास करने से वैशाली, मुजफ्फरपुर, चैनपुर, समस्तीपुर, छपरा, परसगढ़, सुरसंड, गौरैया कोठी, गमिरार, बहलालपुर, आदि गाँव में बसे हुए पराशर गोत्री एक्सरिया मूल के भूमिहार ब्राह्मण हो गए l
5. चित्पावन से : – न्याय भट्ट नामक चितपावन ब्राह्मण सपरिवार श्राध हेतु गया कभी पूर्व काल में आये थे l अयाचक ब्राह्मण होने से इन्होने अपनी पोती का विवाह मगध के इक्किल परगने में वत्स गोत्री दोनवार के पुत्र उदय भान पांडे से कर दिया और भूमिहार ब्राह्मण हो गएl पटना डाल्टनगंज रोड पर धरहरा, भरतपुर आदि कई गाँव में तथा दुमका, भोजपुर, रोहतास के कई गाँव में ये चितपावन मूल के कौन्डिल्य गोत्री अथर्व भूमिहार ब्राह्मण रहते हैं I
अयाचक ब्राह्मण पूरे भारतवर्ष मे फैले हुए है, जिन्हें हम भिन्न-भिन्न पद्वियों से हम जानते हैंI
1.) बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में- भूमिहार l
2.) पंजाब एवं हरियाणा में – मोहियाल l
3.) जम्मू कश्मीर में – पंडित, सप्रू, कौल, दार / डार , कार्टजू आदि l
4.) मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश में आगरा के निकटस्थ – गालव I
5.) उत्तर प्रदेश में – त्यागी एवं भूमिहार।
6.) गुजरात में – अनाविल ;देसाई जोशी, मेहताद्ध – मेहता I
7.) महाराष्ट्र में – चितपावन I
8.) कर्नाटक में – चितपावन I
9.) पश्चिमी बंगाल – भादुड़ी, चक्रवर्ती, गांगुली, मैत्रा, सान्याल आदि।
10.) उड़ीसा में – दास, मिश्र I
11.) तमिलनाडू में – अयर, आयंगर I
12.) केरल में – नंबूदरीपाद I
“13.) राजस्थान में – बांगर, पुष्कर्णा/पुष्टिकरणा /पुष्कर्ण, पुरोहित, रंग/ रंगा एवं रूद्र, बागड़ा.” आदि रहते हैं I
14.) आन्ध्रप्रदेश में – राव और नियोगी। इत्यादि और भी अनेक पद्वियो व नामो से जाने गए.

बालेन्द्र राय के फेसबुक वाल से साभार 

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