हवन का क्या है वैज्ञानिक महत्व, क्यों किया जाता है यज्ञ जानें सब कुछ ?

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हवन का क्या है वैज्ञानिक महत्व, क्यों किया जाता है यज्ञ जानें सब कुछ ?

हवन का क्या है वैज्ञानिक महत्व, क्यों किया जाता है यज्ञ जानें सब कुछ ?

प्राचीन भारतीय परंपरा में यज्ञ या वहन किए जाने की परंपरा चली आ रही है।


पब्लिक न्यूज़ डेस्क। प्राचीन भारतीय परंपरा में यज्ञ या वहन किए जाने की परंपरा चली आ रही है। आज भी पूजा के समापन या विशेष अवसरों पर हवन किए जाने की परंपरा है। खासकर नवरात्रि के अंतिम दिन या किसी देवी या देवता के प्रकटोत्सव पर हवन किया जाता है। किसी गुरु की जयंती पर भी हवन किया जाता है। आखिर हवन या यज्ञ करने का क्या है वैज्ञानिक महत्व और क्या होगा हवन करने से फायदा।

हवन में खासकर आक, ढाक, कत्था, चिरचिटा, पीपल, आम, गूलर, जांड, दूब, कुशा, नीम, पलाश, चंदन, अश्वगंधा, ब्राह्मी, मुलैठी की जड़ आदि का हवन किया जाता है। इसके अलावा गुड़, घी, तिल, जौ, कर्पूर, गूगल, चावल, शक्कर, लौंग, इलायची, अगर, तगर, नागर मोथा, बालछड़, छाड़छबीला आदि कई समग्री डाली जाती है। मुख्यत: आम, बड़, पीपल, ढाक, जांटी, जामुन और शमी से हवन किया जाता है।

ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ , पितृयज्ञ , वैश्वदेवयज्ञ अतिथि यज्ञ इसमें से देवयज्ञ में ही हवन आदि कर्म किया जाता है। 

हवन का वैज्ञानिक महत्व क्या है हम आपको बताते  है 

- हवन में डाले जाने वाले घी और गुड़ से ऑक्सिजन का निर्माण होता है। 

- हवन से जो धुआं निकलता है उससे वायुमंडल शुद्ध होता है। माना जाता है कि हवन में 94 प्रतिशत हानिकारक जीवाणु नष्ट करने की क्षमता होती है।

फ्रांस के वैज्ञानिक ने हवन पर शोध करके यह बताया कि हवन में जलने वाली  आम की लकड़ी फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न करती है जो खतरनाक विषाणु और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शुद्ध करती है। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।

- हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च करके पाया कि यह विषाणु और जीवाणु नाशक है। 

- विभिन्न प्रकार के धुएं पर किए गए शोधानुसार सिर्फ आम की 1 किलो लकड़ी जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए लेकिन जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डालकर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर 94 प्रतिशत कम हो गया। कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं बाहर निकल जाने के 24 घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से 96 प्रतिशत कम था। इस धुएं का असर करीब एक माह तक रहता है।