मां दुर्गा के इस मंत्र से हार जाती है मौत की आफत

भारतीय सनातन परंपरा में परब्रह्म परमेश्वर का एक रूप स्त्रीरूप भी माना गया है।
पब्लिक न्यूज़ डेस्क। भारतीय सनातन परंपरा में परब्रह्म परमेश्वर का एक रूप स्त्रीरूप भी माना गया है। इस रूप की मां आद्यशक्ति भगवती, दुर्गा, काली, पार्वती आदि अनेकों नामों से पूजा की जाती है। ईश्वर के स्त्रीरूप को पूजने वाले शाक्त कहलाते हैं तथा इन्हें तंत्र परंपरा में विशेष स्थान प्राप्त है।
शास्त्रों में इन्हीं मां दुर्गा की स्तुति के लिए अनेकों मंत्र तथा स्तोत्र दिए गए हैं। यदि भक्त किसी विशेष लक्ष्य की पूर्ति के लिए मां की आराधना करना चाहते हैं तो उसके लिए भी इन मंत्रों का आश्रय लिया जा सकता है। ज्योतिषाचार्य पंडित रामदास के अनुसार यदि आप किसी ऐसे संकट में फँस गए हैं जिसका निराकरण नहीं हो सकता तो मां की स्तुति से वह कष्ट दूर होगा।
ऐसा ही एक स्तोत्र भगवती स्तोत्र है। यदि कठिन समय पर इसका प्रयोग किया जाए तो भक्त को तुरंत राहत मिलती है। यह निम्न प्रकार है-
भगवती स्तोत्र
जय भगवति देवी नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवी नरार्तिहरे॥1॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवी पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥
जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥
जय देवी समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥
हिंदी अर्थः हे वरदायिनी देवी! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट करने वाली और अंनत फल देने वाली देवी। तुम्हारी जय हो! हे शुम्भनिशुम्भ के मुण्डों को धारण करने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। हे मनुष्यों की पीड़ा हरने वाली देवी! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। हे सूर्य-चन्द्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान देदीप्यामान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो।
हे भैरव-शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुरका शोषण करने वाली देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो। हे महिषसुर का वध करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इंद्र से नमस्कृत होने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।
सशस्त्र शङ्कर और कार्तिकेयजी के द्वारा वन्दित होने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलने वाली गङ्गारूपिणि देवी! तुम्हारी जय हो। दु:ख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र-कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।
हे देवी! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन कराने वाली और दु:खहारिणी हो। हे व्यधिनाशिनी देवी! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवाच्छित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवी! तुम्हारी जय हो।
कैसे करें इसका प्रयोग
जब कभी असाध्य रोग हो, बहुत बड़ा संकट हो या कोई ऐसी समस्या आ जाए जिसका निराकरण न हो सकें तो इसका प्रयोग करना चाहिए। प्रयोग के लिए शुभ दिन और मुहूर्त चुनें। उस मुहूर्त से पूर्व ही स्नान आदि कर साफ, स्वच्छ, धुले हुए वस्त्र धारण करें। अब गणेशजी का ध्यान कर शंकरजी की पूजा करें।
तत्पश्चात मां दुर्गा का ध्यान करें, उनकी स्तुति करें। उन्हें पंचामृत से स्नान करवा कर अभिषेक करें। कलश स्थापना कर, धूप बत्ती, देसी घी का दीपक, पुष्प, माला, फल, भोग का प्रसाद आदि अर्पित करें। मां की पूजा कर उनकी आरती उतारें। इसके बाद अपनी समस्या के निवारण हेतु संकल्प कर यहां दिए गए भगवती स्तोत्र का 108 बार जप करें। इसके बाद प्रतिदिन उसी समय, उसी स्थान पर बैठ कर इस स्तोत्र का 108 बार जप करें। यह प्रयोग तब तक करना है, जब तक आपकी समस्या हल न हो जाएं।