केवल भारत में निकाले जाते हैं ताजिए, जानि कैसे शुरू हुई ये परंपरा
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम से नए वर्ष की शुरूआत होती है
पब्लिक न्यूज़ डेस्क। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम से नए वर्ष की शुरूआत होती है। मुहर्रम के माह को गम के रूप में मनाया जाता है और दुनिया भर के मुस्लिम इस माह में शुभ काम करने से बचते हैं। आइए जानते हैं इस माह के बारे में
क्यों खास है मुहर्रम का महीना
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी माह में पैगंबर मुहम्मद के नाती इमाम हुसैन शहीद हुए थे। इसलिए इस माह को गमी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष मुहर्रम माह 20 जुलाई से आरंभ हुआ है और मुहर्रम की 10वीं तारीख (जिसे यौम-ए-अशूरा भी कहा जाता है) 29 जुलाई 2023 (शनिवार) को मनाई जाएगी। इस्लामिक कथाओं के अनुसार इसी दिन कर्बला की जंग में इमाम हुसैन ने अपने परिवार और साथियों के साथ कुर्बानी दी थी। इस वजह से इस तारीख पर मुस्लिम शोक प्रकट करते हैं।
भारत में निकाले जाते हैं ताजिए, दूसरे देशों में नहीं है प्रथा
मुहर्रम के अवसर पर भारत में ताजिए निकाले जाते हैं। यह परंपरा केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही है, दुनिया के अन्य देशों, यहां तक खाड़ी देशों में भी नहीं है। इसके पीछे ऐतिहासिक कारण बताए जाते हैं। ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार तैमूर लंग का भारत में आक्रमण हुआ था। उसने दिल्ली के शासक मुहम्मद शाह तुगलक को हरा कर दिल्ली पर कब्जा कर लिया था।
वह हर वर्ष मुहर्रम के अवसर पर इराक जाता था परन्तु एक बार युद्ध में अत्यधिक घायल होने की वजह से वह नहीं जा पाया। इस पर उसके दरबारियों ने भारत में ही इमाम हुसैन की कब्र जैसा एक डिजाईन तैयार किया और उसी के साथ अपनी परंपराओं को पूरा करने का विचार किया। इस पर उस समय के शिल्पकारों ने बांस और खपच्चियों से ताजिए तैयार किए। इन्हें तैमूर के महल से निकाल कर कर्बला तक ले जाया गया। इसके बाद धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे देश में फैल गई जो तैमूर की मृत्यु के बाद भी आज तक चली आ रही है।