30 अगस्त को रात नौ बजे के बाद बांधे राखी, 200 साल बाद बन रहा ये दुर्लभ संयोग

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30 अगस्त को रात नौ बजे के बाद बांधे राखी, 200 साल बाद बन रहा ये दुर्लभ संयोग

 30 अगस्त को रात नौ बजे के बाद बांधे राखी, 200 साल बाद बन रहा ये दुर्लभ संयोग

रक्षाबंधन पर भद्रा की छाया के कारण भाई बहन के त्योहार 


पब्लिक न्यूज़ डेस्क। रक्षाबंधन पर भद्रा की छाया के कारण भाई बहन के त्योहार की तिथि को लेकर आम जनमानस में असमंजस की स्थिति है। काशी के विद्वानों के अनुसार अनुसार इस बार रक्षाबंधन पर 200 साल बाद दुर्लभ संयोग बन रहा है, जब गुरु और शनि ग्रह का शुभ प्रभाव रहेगा। इस बार रक्षाबंधन पर शनि और गुरु ग्रह वक्री अवस्था में अपनी स्वराशि में विराजमान रहेंगे। 24 साल बाद रक्षाबंधन पर रवि योग के साथ बुधादित्य योग और शतभिषा नक्षत्र का संयोग बन रहा है जो कि समृद्धिदायक और राजयोग का लाभ देने वाला है।

ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि रक्षाबंधन का पावन पर्व श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 30 अगस्त के दिन दिन में 10:12 से प्रारंभ हो रही है किंतु 10:12 से भी मृत्यु लोक पर भद्रा हो रही है। इस कारण से रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा काल में निषेध है अतः रक्षाबंधन का पावन पर्व 30 अगस्त को रात्रि में 8:58 के बाद मनाया जाएगा। क्योंकि मीन लग्न है और मीन का स्वामी गुरु है, रक्षाबंधन के पावन पर्व के साथ में ब्राह्मणों के लिए एवं यजुर्वेद का जो श्रावणी उपाकर्म है वह 31 अगस्त को रहेगा। चूंकि रक्षाबंधन देव कार्य है और दिन में ही करना उचित रहता है परंतु दिनगत कर्म के संबंध में धर्मसिंधु व नागदेव का वचन है कि किसी कारणवश दिन के कर्म,यदि दिन में ना किया जा सके तो रात्रि के प्रथम प्रहर तक अवश्य कर लेने चाहिए।

ज्योतिषाचार्य प्रो. रामचंद्र पांडेय ने धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथों का उल्लेख करते हुए बताया कि यदि पूर्णिमा का मान दो दिन का प्राप्त हो रहा है तो प्रथम दिन सूर्योदय के एक घटी के बाद पूर्णिमा का आरंभ होकर दूसरे दिन पूर्णिमा छह घटी से कम प्राप्त हो रही हो तो पूर्व दिन में भद्रा से रहित काल में रक्षाबंधन करना चाहिए। 31 अगस्त को पूर्णिमा छह घटी से कम प्राप्त हो रही है। 30 अगस्त को नौ बजे रात तक भद्रा है, इसलिए 30 अगस्त को रात्रि में भद्रा के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा। रात्रिकाल में भी रक्षाबंधन का विधान है। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय ने भी विभिन्न पंचांगों में प्रदत पूर्णिमा के मान तथा धर्मशास्त्र के वचनों की समीक्षा करते हुए 30 अगस्त को रक्षाबंधन मनाने का समर्थन किया।

उपाकर्म में नहीं लगता है भद्रा दोष

श्रावण पूर्णिमा का एक महत्वपूर्ण कर्म उपाकर्म भी होता है। इसका अनुष्ठान शुक्लयजुर्वेद के तैतरीय को छोड़कर अन्य सभी शाखा वालों का धर्म शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार 30 तारीख को तथा तैतरीय शाखा वालों की उदय व्यापिनी पूर्णिमा में 31 को उपाकर्म करना शास्त्र सम्मत रहेगा। खंड रूप में पूर्णिमा का दो दिन मान प्राप्त होने की स्थिति में द्वितीय दिन यदि दो/तीन घटी से अधिक और छह घटी से कम पूर्णिमा प्राप्त हो रही हो तो शुक्ल यजुर्वेद की तैतरीय शाखा के लोगों को श्रावणी उपाकर्म दूसरे दिन तथा शुक्ल यजुर्वेदीय अन्य सभी शाखा के लोगों को श्रावणी उपाकर्म पूर्व दिन अर्थात 30 अगस्त को ही करना चाहिए उपाकर्म में भद्रा दोष नहीं लगता है। इसलिए 30 अगस्त को प्रातः 10:12 के बाद श्रावणी उपाकर्म तथा रात्रि 9 बजे के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा।