छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के महान योद्धा और रणनीतिकार

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छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के महान योद्धा और रणनीतिकार

छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के महान योद्धा और रणनीतिकार


पब्लिक न्यूज़ डेस्क। आज छत्रपति शिवाजी महाराजा की जयंती है। 19 फरवरी 1630 को उनका जन्म शिवनेरी किले में हुआ था। शिवाजी की बहादुरी और संगठन क्षमता के साथ योजना और चातुर्य की मिसाल आज भी दी जाती है। शिवाजी ने 08 शादियां कीं। उनकी दूसरी पत्नी सोयराबाई के बारे में बाद में काफी कुछ लिखा गया। वो शिवाजी की दूसरे नंबर की पत्नी थीं। राजकाज के कामों में काफी दखल रखती थीं। असरदार भी थीं। हालांकि बाद में जब शिवाजी के निधन के बाद संभलजी ने उत्तराधिकार संभाला तो सोयराबाई पर बार बार उनके खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगा। इसके चलते उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।


मराठा साहित्य और कहानियों में सोयराबाई को काफी धाकड़, दबंग और निगेटिव महिला के तौर पर चित्रित किया जाता है। बाद में उन पर फिल्म भी बनी। दरअसल सोयराबाई शिवाजी के दूसरे बेटे राजमराम की मां थीं। वो हर हाल में अपने बेटे को शिवाजी की गद्दी पर देखना चाहती थीं।

लगातार साजिश रचती रहीं
कहा जाता है कि इसके लिए उन्होंने लगातार साजिशें कीं। उन्हें जेल में भी डाला गया लेकिन जेल से भी जब उन्होंने शिवाजी के बड़े बेटे संभाजी को गद्दी से हटाने की साजिश रचनी नहीं छोड़ी तो उन्हें फांसी की सजा दे दी गई।

क्या शिवाजी के निधन में भी था उनका हाथ

सोयराबाई को मराठा सेना के ताकतवर सेनापति हमबीरराव मोहिते की बहन बताया जाता है। हालांकि बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि वो उनकी बहन नहीं थीं। 1681 में उन्हें मृत्युदंड दे दिया गया। हालांकि उन पर ये आरोप है कि आखिरी दिनों में जिस तरह लंबी बीमारी के बाद शिवाजी मरे, उसमें पीछे भी उनका हाथ था।

कम उम्र में शिवाजी से शादी हुई 
सोयारबाई का विवाह शिवाजी से कम उम्र में 1660 में हुआ। शिवाजी अपनी मां जीजीबाई के साथ पिता शाहजी के बेंगलुरु स्थित महल गए थे, तभी उनकी सौतेली मां तुकाबाई ने उन पर इस विवाह के लिए दबाव डाला। उन्हें ये विवाह करना पड़ा।

शिवाजी की मां के निधन के बाद असरदार हो गईं
जब तक शिवाजी की मां जीजीबाई जिंदा रहीं तब तक काफी हद राजकाज पर वो नियंत्रण रखती थीं लेकिन उनके निधन के बाद सोयारबाई को महत्व मिलने लगा। यहां तक कि दरबार में उनका काफी दबदबा बढ़ गया।

अपने बेटे को किसी भी हाल में गद्दी पर देखना चाहती थीं
सोयराबाई के दो बच्चे थे। बेटा राजमराम और बेटी बालीबाई। कई इतिहासकारों का मानना है कि शिवाजी की मृत्यु सोयराबाई द्वारा उन्हें जहर दिए जाने से हुई थी। वो किसी भी हालत में अपने 10 साल के बेटे राजमराम को शिवाजी की गद्दी पर देखना चाहती थीं। हालांकि उस पर बड़ा होने के कारण शिवाजी के बेटे संभाजी का दावा बनता था।

पने बेटे को गद्दी पर बिठा भी दिया
जब शिवाजी का निधन हुआ तो संभाजी वहां नहीं थे। उन्हें इसकी सूचना भी नहीं दी गई.। ना ही अंतिम संस्कार के समय ही उनके आने का इंतजार किया गया। शिवाजी का अंतिम संस्कार होते ही जल्दी सोयराबाई ने अपने बेटे को छत्रपति घोषित कर दिय। इस साजिश में शिवाजी के कुछ दरबारी और उच्च पदों पर आसीन लोग भी उनके साथ थे।


संभाजी ने साजिश नाकाम की
बाद में जब संभाजी को ये मालूम हुआ तो उन्होंने सेनापति हमबीरराव मोहिते की मदद से सोयराबाई की साजिश को नाकाम किया। फिर खुद राजकाज को अपने हाथों में लेकर वो शिवाजी के बाद दूसरे छत्रपति बने।

जेल में भी जब साजिश रची तो मृत्युदंड
इसके बाद भी सोयराबाई ने संभाजी को रास्ते से हटाने के लिए साजिश रचती रहीं। इसमें वो नाकाम हो गईं। उन्हें जेल में डाल दिया गया। इसके बाद जेल से उन्होंने अपने लोगों द्वारा संभाजी को जहर देकर मारने की साजिश रची। इसमें भी वो नाकाम हो गईं। जब ये बात सामने आई तो संभाजी ने उन्हें मृत्युदंड दे दिया।

सोयराबाई के बारे में कहा जाता है कि वो खासी महत्वाकांक्षी महिला थीं। उन्होंने शिवाजी के कार्यकाल में अपने विश्वस्त दरबारियों और असरदार पदों पर बैठे लोगों की एक लॉबी तैयार कर ली थी।

बाद में सोयराबाई का बेटा बना तीसरा छत्रपति
हालांकि सोयराबाई के बेटे राजमराम बाद में संभाजी की मृत्यु के बाद तीसरे छत्रपति बने लेकिन ये देखने के लिए उनकी मां जिंदा नहीं थीं। मृत्युदंड मिलने के कारण वो पहले ही मारी जा चुकी थीं। दरअसल संभाजी का निधन औरंगजेब के सैनिकों के हाथों हुई। उन्हें गद्दी संभालने के बाद लगातार मुगलों से युद्ध करना पड़ा। यही नहीं पड़ोसी भी उनके खिलाफ सिर उठा रहे थे। 1689 में संभाजी को मुगलों ने बंदी बना लिया। उन्हें यातनाएं गईं, बाद में उनका सिर तलवार से कलम कर दिया गया। तब राजमराम ने उनकी जगह ली।

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