मायावती इण्डिया गठबन्धन के साथ जाने की तैयारी में
एन डी ए और इण्डिया गठबंधन की निगाहे उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है
स्पेशल रिपोर्ट देवकी नन्दन मिश्र
पब्लिक न्यूज़ डेस्क। एन डी ए और इण्डिया गठबंधन की निगाहे उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है। क्यूंकि सबको पता है देश की सत्ता का रास्ता यूपी से ही होकर जाता है। बसपा को छोड़कर यूपी में गठबन्धन की स्थिति पूरी तरह से साफ हो गई है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल पहले से ही इण्डिया गठबंधन के हिस्से बन चुके है। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अभी तक अपनी स्थिति साफ नहीं की है कि वह किसके साथ खड़ी होगी। बीजेपी चाहती है कि मायावती चुनाव अकेले लड़े दूसरी तरफ कांग्रेस और राहुल गाँधी चाहते हैं कि वह भी गठबन्धन का हिस्सा बने। इस बीच मायावती और नितीश कुमार की मुलाकात की अटकले भी खूब लग रही है। मुंबई में इण्डिया गठबंधन की होने वाली बैठक में साफ हो जायेगा कि मायावती से बातचीत कौन करेगा। गठबंधन के नेता चाहते थे कि बातचीत की पहल अखिलेश यादव करें लेकिन उनसे मायावती के रिश्ते 2019 के लोक सभा चुनाव के बाद ख़राब हो गए थे इस वजह से उनको यह जिम्मेदारी नहीं दी गई। खबर है कि नीतीश कुमार को एक बार फिर मायावती को मनाने का जिम्मा दिया जायेगा।
इण्डिया गठबन्धन को लगता है कि अगर उनके साथ मायावती आ जाती है तो बसपा का जो वोट है वह उनके साथ आ जायेगा और बीजेपी को यूपी में शिकश्त देने में आसानी होगी। आपको बता दे कि 2022 के विधान सभा चुनाव में मायावती की बसपा को 12 फीसद वोट मिला था हालांकि वह महज एक सीट ही जीत पायी थी। 2019 के लोक सभा चुनाव में बसपा को 19 4 फीसद वोट मिला था और दस सीट मायावती ने जीती थी। 2014 में बसपा को उत्तर प्रदेश में इससे ज्यादा 19 5 फीसद वोट मिला लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पायी। 2014 में बसपा अकेले चुनाव मैदान में थी जबकि 2019 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबन्धन था। इस गठबन्धन का सबसे ज्यादा फायदा मायावती को ही हुआ था।
समाजवादी पार्टी को अगर सीट के मामले में देखा जाय तो कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद भी मायावती ने अखिलेश से नाराजगी जाहिर करते हुए चुनाव नतीजों के कुछ समय बाद ही अखिलेश के साथ गठबनधन को तोड़ दिया। इसी नाराजगी में मायावती ने 2022 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस से दूरी बना ली और अकेले मैदान में उतरी लेकिन इसका उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा। वोट का जो शेयर पहले रहता था उसमे भी भरी गिरावट आयी और महज एक सीट ही वह जीत पायीं। पार्टी की लगातार गिरती साख से मायावती गहरी चिंता में है। खुले तौर पर वह वह अपना रुख स्पष्ट नहीं कर पा रही है कि वह इण्डिया के साथ जायेंगी या नहीं? यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी का भी उन पर दबाव है। कुछ लोग यह भी कहते है कि वह बीजेपी की बी टीम के तौर पर काम कर रही है लेकिन जितना मैंने मायावती को समझा है वह बीजेपी के पाले में कभी खेल नहीं सकती हैं क्यूंकि वह जानती है कि अगर बीजेपी के साथ उनका कोई भी रिश्ता जाहिर होता है तो आगे से मुसलमान कभी उन पर भरोसा नहीं करेगा। मुसलमानो को रिझाने की कोशिश में मायावती हमेशा से लगी रहती है। दूसरी तरफ जिस समाज में उनकी पैठ है उसे लगता है कि अगर बीजेपी लम्बे समय तक सत्ता में बनी रहती है तो वह बाबा साहब के संविधान के साथ छेड़छाड़ कर सकती है। इसलिए उस समाज का भी मायावती के ऊपर भी दबाव है। इस वजह से बीजेपी के साथ जाने की संभावना शून्य ही है।
मायावती से जुड़े सूत्रों का कहना है कि लोक सभा चुनाव में अभी करीब नौ माह का वक्त है ऐसे में मायावती जल्दबाजी में नहीं है। मायावती चाहती है कि पहले पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के नतीजे आ जाय। तब तक साफ भी हो जायेगा कि 2024 के चुनाव का ऊंट किस करवट बैठ रहा है। क्यूंकि मध्य प्रदेश राजस्थान , तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में उनकी पार्टी सभी सीटों पर चुनाव की तैयारी कर रही है। लखनऊ आने से पहले मायावती एक माह तक दिल्ली में रूककर इन राज्यों में जीत की योजना तैयार कर रही थी। मायावती को लगता है कि इन राज्यों में अगर उनकी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो इण्डिया के साथ लोक सभा चुनाव में अच्छी सौदेबाजी हो सकती है। इसके साथ उनकी चिंता अपनी पार्टी की राष्ट्रीय स्तर की मान्यता को लेकर भी है। अगर वह इन राज्यों में अकेले नहीं लड़ती है तो वोट शेयर कम हो सकता है और बसपा की राष्ट्रीय स्तर की मान्यता का दर्जा भी छिन सकता है। लेकिन मायावती से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वह पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का इंतजार कर रही है जो इसी साल नवम्बर में होने है। चुनाव के बाद वह इण्डिया गठबंधन का हिस्सा जरूर बनेगी क्योंकि उन्हें भी पता है कि 2024 का लोक सभा चुनाव एन डी ए बनाम इण्डिया होगा। वोटर दो हिस्सों में बंटा होगा। ऐसे में बसपा अकेले रह जायेगी। बीजेपी के साथ वह जा नहीं सकती है इस वजह से इण्डिया गठबंधन के साथ जाना ही उनके लिए एक मात्र विकल्प होगा। मायावती से जुड़े सूत्रों का भी कहना है कि वह इण्डिया गठबंधन के साथ जाने को लेकर विचार कर रही है। हालांकि अभी तक मायावती इण्डिया गठबन्धन के किसी नेता से मिली नहीं है। गठबंधन के कई नेताओ ने उनसे संपर्क करने की कोशिश भी की हैलेकिन अभी तक किसी से उन्होंने वार्ता शुरू नहीं की है।
उधर मायावती की इस चुप्पी को लेकर इण्डिया गठबन्धन के नेता भी चिंतित हैं। यूपी में दलित वोट हर समय निर्णायक भूमिका में रहा है। बीजेपी भी उसे लुभाने की कोशिश में लगी हुई है लेकिन अभी तक बसपा के पास यह वोट बैंक बना हुआ है। दलित वोट बैंक में कोई भी पार्टी अभी सेंध लगाने में सफल नहीं हुई है। इस बीच यह भी खबर है कि मुंबई की बैठक में मायावती के रुख को लेकर गंभीर चर्चा होने वाली है। बैठक में यह भी तय किया जा सकता है कि मायावती से बात करने की जिम्मेदारी किसको दी जाय। सम्भावना है की मायावती से वार्ता का जिम्मा नीतीश कुमार को दिया जाय। हालॉकि पहले दौर में वह मायावती से मुलाकात और वार्ता में सफल नहीं हो पाए थे।
राहुल गाँधी भी चाहते है कि मायावती इण्डिया का हिस्सा जरूर बने। वह 22 के विधान सभा चुनाव में भी मायावती के साथ गठबंधन चाहते थे। चुनाव बाद राहुल ने बयां भी दिया था कि मायावती को वह मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लगातार मुखर रहे। उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा में जमीनी संघर्ष किया। नतीजतन कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराकर जीत हासिल करने की सफलता हासिल की। इन बातों के मद्देनजर यूपी के मुस्लिम समाज का भी कांग्रेस के प्रति रुझान बढ़ा है। मुसलमान के साथ दलित अगर यूपी में इण्डिया के साथ खड़ा हो जायेगा तो बीजेपी को यूपी में रोकना आसान हो जायेगा।