बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं में एनएफएचएस की जारी रैंकिंग में यूपी भी शामिल

 

पब्लिक न्यूज़ डेस्क। यूपी स्वास्थ्य के क्षेत्र में बीते पांच वर्षाें में सेहतमंद हुआ है। इसकी गवाही खुद राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2020-21 के आंकड़े दे रहे हैं। दस्त पर प्रभावी नियंत्रण के साथ-साथ संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला है। परिवार नियोजन के साधनों के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। कोरोना महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं में की गई बढ़ोतरी के कारण भी अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं।

इससे पहले वर्ष 2015-16 में सर्वेक्षण हुआ था

एनएचएफएस 2020-21 सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार दस्त के मरीजों के मामले या संक्रमण दर 15.6 प्रतिशत से घटकर 5.6 प्रतिशत रह गई है। स्वचछता अभियान के तहत गांव-गांव बनाए गए इज्जत घर यानी शौचालय के कारण इसमें कमी आई है। साफ-सफाई के प्रति लोगों में रुझान बढ़ा है। इसके कारण उन्हें बीमारियां नहीं हो रहीं। वहीं परिवार नियोजन के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। परिवार नियोजन के साधनों की उपयोगिता 45.5 प्रतिशत से बढ़कर 62.4 प्रतिशत हो गई है।

ऐसे में अब कुल प्रजनन दर भी 2.7 से घटकर 2.4 पर आ गई है। मातृत्व स्वास्थ्य को लेकर भी काफी जागरूकता बढ़ी है। संस्थागत प्रसव यानी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। पहले संस्थागत प्रसव 67.8 प्रतिशत था और अब यह बढ़कर 83.4 प्रतिशत हो गया है। वहीं बाल स्वास्थ्य में भी यूपी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। पहले छह माह तक की उम्र के 41.6 प्रतिशत ब'चे स्तनपान करते थे और अब यह बढ़कर 59.7 प्रतिशत हो गया है। चार प्रसव पूर्व जांच कराने वाली गर्भवती महिलाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। पहले 26.4 प्रतिशत महिलाएं ही यह जांचें करवा रही थीं अब 42.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं यह जांच करवा रही हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं को घर-घर पहुंचाने की मुहिम रंग ला रही है। टीकाकरण का ग्राफ भी 51 प्रतिशत से बढ़कर 69.6 प्रतिशत हो गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के महानिदेशक (मातृ स्वास्थ्य व टीकाकरण) डा. मनोज शुक्ल कहते हैं कि यूपी में मातृ स्वास्थ्य के साथ-साथ टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए बेहतर काम किया गया है। डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की मेहनत रंग लाई है। उधर राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के महाप्रबंधक डा. वेद प्रकाश कहते हैं कि बाल स्वास्थ्य के लिए लोग संजीदा हुए हैं। पहले नवजात शिशु की देखभाल को लेकर लोगों में जो भ्रांतियां व संदेह रहता था। योजनाएं लागू करने में दिक्कत आती थी। अब लोग जागरूक हुए हैं।

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