जग से तारने वाली हैं मां तारा, इनकी आराधना से प्राप्त होता है भूत, भविष्य और वर्तमान का सारा ज्ञान

भारतीय पुराणों में समुद्र मंथन की कथा का उल्लेख मिलता है।
 

पब्लिक न्यूज़ डेस्क। भारतीय पुराणों में समुद्र मंथन की कथा का उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार राक्षसों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इसमें सबसे पहले कालकूट हलाहल नामक विष निकला जिसने पूरे विश्व का संहार आरंभ कर दिया। जब हर तरफ त्राहिमाम-त्राहिमाम होने लगा तो भगवान शिव ने उस विष को निगल लिया। परन्तु विष उन्हें नुकसान न पहुंचाएं इसलिए तुरंत ही मां पार्वती ने उग्र रुप लेते हुए विष को उनके कंठ में अवरुद्ध कर दिया। इससे भगवान शिव का गला नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाएं। वहीं मां पार्वती का यह रूप नीलतारा कहलाया।

दस महाविद्याओं में द्वितीया है मां तारा

उन्हें नीलसरस्वती अथवा एकजटा भी कहा जाता है। उनका उग्र स्वरूप मां काली के ही समान है परन्तु उनके हाथ में हंसिया और कैंची है। उनका वर्ण नीला है, वे अत्यन्त क्रोध से भरी हुई हैं। उनके गले में मुंडमाला है और हाथों को करघनी बनाकर कमर में बांधा हुआ है। उनका ध्यान और आराधना करने से भक्तों के समस्त प्रकार के कष्ट और भय का नाश होता है। उनका नाम लेने मात्र से नकारात्मक और पैशाचिक शक्तियां दूर भाग जाती हैं।

शास्त्रों में नीलसरस्वती की पूजा के लिए कई मंत्र दिए गए हैं। ये सभी मंत्र अत्यन्त उग्र और प्रचंड शक्तिशाली हैं। इनका प्रयोग किसी अनुभवी गुरु की देखरेख में ही करना चाहिए। मां तारा को प्रसन्न करने के लिए कुछ भक्त शव साधना भी करते हैं। इनकी कृपा से भक्त भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त कर सकते हैं। इनके मंत्र निम्न प्रकार हैं

ॐ ह्रीं त्रीं हुं फट्।
ॐ त्रीं ह्रां हुं नमस्ताराय महातारायै सकल दुस्तरांस्टारय ताराय तर तर स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः हुं उग्रतारे हुं फट्।
ॐ हुं ह्रीं क्लीं हसौः हुं फट्।
ॐ श्रीं ह्रीं हसौः हुं फट् नील सरस्वत्यै स्वाहा