18वीं शताब्दी के दौरान जब ब्रिटिश हुकूमत भारत में पैर पसार रही थी, फिर क्यों फेल हो गया प्लान? जानिए
पब्लिक न्यूज़ डेस्क- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दो दिवसीय दौरे पर हैं। रूस और भारत का रिश्ता किसी से छिपा नहीं है। भारत और रूस की एतिहासिक साझेदारी दशकों से चली आ रही है। मगर क्या आप जानते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब रूस भारत पर जीत हासिल करने के ख्वाब देख रहा था। रूस ने एक बार नहीं बल्कि चार बार भारत पर आक्रमण करने का प्लान बनाया। मगर परिस्थितियों ने रूस का साथ नहीं दिया और हर बार ये प्लान कैसिंल हो गया।कल्पना कीजिए कि अगर रूस का ये प्लान सफल होता तो आज भारत में अंग्रेजी की बजाए रूसी भाषा बोली जाती। हालांकि भारत पर कब्जा करने के बाद रूस सोने की इस चिड़िया को गुलाम बनाना चाहता था या नहीं? ये सवाल आज भी इतिहासकारों के बीच बहस का विषय बना हुआ है। तो आइए हम आपको भारत पर हमला करने वाले इरादे से रूबरू करवाते हैं।
रूस के जहन में आक्रमण का पहला ख्याल 18वीं शताब्दी की शुरुआत में आया था। ये वो समय था जब ब्रिटिश हुकूमत भारत में पैर जमाने की कोशिश में जुटी थी। रूस के राजा जार पॉल प्रथम ने फ्रांस के राजा नेपोलियन को एक प्रस्ताव भेजा। इस प्रस्ताव के तहत 70,000 रूसी और फ्रांसीसी सैनिक मिलकर भारत पर आक्रमण करते और ब्रिटिशर्स को यहां से खदेड़ देते। हालांकि नेपोलियन ने इस ऑफर को ठुकरा दिया। ऐसे में जार पौल प्रथम ने 22,000 सैनिकों के साथ आधे भारत पर कब्जा करने का खाका तैयार किया। मगर रास्ते में रूस के कई सैनिक मारे गए और जार पॉल प्रथम का रूस में ही कत्ल कर दिया गया। रूस के अगले राजा अलेक्जेंडर प्रथम नेपोलियन के साथ संधि करने में कामयाब रहे। दोनों देशों ने पर्शियन साम्राज्य (वर्तमान में ईरान) और अफगानिस्तान के रास्ते भारत पर आक्रमण करने का प्लान बनाया। हालांकि रूस के पहले हमले की भनक भारत में मौजूद ब्रिटिशर्स को लग चुकी थी और ब्रितानियों ने भी पर्शियन साम्राज्य के साथ संधि कर ली थी। ऐसे में पर्शिया ने रूसी और फ्रांसीसी सैनिकों को अपने देश से गुजरने पर रोक लगा दी। लिहाजा गुस्से में आकर नेपोलियन ने रूस पर ही हमला बोल दिया और मॉसको को बुरी तरह से तबाह कर दिया। नेपोलियन के हमले से उबरने में रूस को 40 साल लग गए। ये समय था 1850 का। भारत में 1857 की क्रांति की नींव रखी जा रही थी। इसी बीच रूसी सेना के जनरल अलेक्जेंडर दुहामिल पर्शिया को मनाने में कामयाब हो गए। रूस के राजा जार निकोलस प्रथम ने भारत पर हमले को हरी झंडी दिखा दी। मगर इसी बीच ओटोमन साम्राज्य ने क्रीमिया पर हमला कर दिया। रूस ये युद्ध हार गया और उसने भारत पर हमला करने के प्लान को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया।
1855 में रूसी सेना के अगले जनरल क्रुलैव ने भारत पर हमले का फिर से प्लान बनाया। दरअसल रूस और भारत के रास्ते में हिन्दूकुश पर्वत मौजूद हैं। जिसके कारण बड़ी संख्या में रूसी सैनिकों का भारत पहुंचना नामुमकिन होता था। कई रूसी सैनिकों की रास्ते में ही मौत हो जाती थी। ऐसे में क्रुलैव ने रूस के राजा जार अलेक्जेंडर द्वितीय को सुझाव दिया कि कम सैनिकों के साथ रूसी सेना अफगानिस्तान जाएगी और वहां के आदिवासी लोगों को युद्ध के पैंतरे सिखाकर भारत पर हमला करेगी। हालांकि इसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने भी अफगानिस्तान पर हमला कर दिया और अफगानिस्तान एक बफर जोन बन गया।