अक्षय नवमी विशेष

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अक्षय नवमी विशेष

अक्षय नवमी विशेष


कार्तिक मास की नवमी तिथि को अक्षय नवमी, कूष्मांडा नवमी और धात्री नवमी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक दृष्टि से कार्तिक मास की इस नवमी तिथि का महत्व अक्षय तृतीय से कम नही है। कहते हैं जो लोग दिवाली पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा पाने से वंचित रह गए उनके लिए अक्षय नवमी एक बड़ा मौका होता है जब आसानी से लक्ष्मी नारायण की कृपा पा सकते हैं। अक्षय तृतीया के समान ही अक्षय नवमी के दिन किए गए पुण्य का प्रभाव क्षय नहीं होता है, यानी नष्ट नहीं होता है।


इसके लिए बस करना इतना होता है कि आंवले के पेड़ की पूजा करनी होती है और प्रसाद रूप में आंवला लक्ष्मी नारायण को अर्पित करना होता है। दरअसल अक्षय नवमी के दिन आंवले की प्रधानता होती है क्योंकि तुलसी और बेल दोनों के गुणों को धारण करने वाले आंवले के पेड पर इस दिन त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश साथ में सरस्वती, लक्ष्मी और देवी पार्वती भी वास करती हैं।


अक्षय नवमी की कथा Akshay Navami ki Katha
अक्षय नवमी के दिन आंवले के इस महत्व को लेकर जो कथा पुराणों में बतायी गई है उसके अनुसार आंवला भी दिव्य फल है जैसे कि रुद्राक्ष। जैसे भगवान शिव के आंसूओं से रुद्राक्ष का वृक्ष अस्तित्व में आया उसी प्रकार ब्रह्माजी के आंसू से दिव्य फल आंवले की उत्पत्ति हुई है।

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कथा मिलती है कि भगवान विष्णु के ध्यान में लीन ब्रह्माजी के नेत्रों से अचानाक भक्ति भाव से आंसू की दो बूंदे धरती पर टपक गई। ब्रह्माजी के आंसूओं से आंवले का वृक्ष कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को ही प्रकट हुआ था। इसलिए इस दिन आंवले की पूजा का विधान है। भगवान विष्णु के ध्यान में लीन ब्रह्माजी के नेत्रों से आंसूओं से प्रकट होने के कारण आंवला भगवान विष्णु को भी अत्यंत प्रिय है।

आंवला नवमी पूजा विधि Amla Navami Puja Vidhi
आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान करके आंवले के वृक्ष के नीचे ओम धात्र्यै नमः मंत्र से आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। आंवले के वृक्ष में पहले भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का ध्यान करते हुए फूल, अक्षत, कुमकुम, तिल आदि पूजन समाग्री अर्पित करें। इसके बाद पितरों का ध्यान करते हुए आंवले के जड़ में दूध अर्पित करें और यह मंत्र बोलें- पिता पितामहाश्चानवे अपुत्रा ये च गोत्रिणः। ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेअक्षयं पयः।। आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवः। ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेअक्षयं पयः।।

इसके बाद आंवले के वृक्ष के चारों ओर रक्षासूत्र लपेटते हुए मंत्र बोलें- दामोदरनिवासयै धात्र्यै देव्यै नमो नमः। सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवी नमोस्तुते।। इसके बाद घी का दीप जलाकर आंवले की आरती करें फिर प्रदक्षिणा मंत्र बोलते हुए 3 बार आंवले की परिक्रमा करते हुए यह मंत्र बोलें- ओम यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे-पदे। इससे जाने अनजाने हुए पापों का क्षय होता है और व्यक्ति पुण्य प्राप्त करता है।


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आंले के वृक्ष की पूजा के बाद ऊनी वस्त्र धन, अनाज जो भी आपकी श्रद्धा हो दान करना चाहिए। कहते हैं कि इस दिन दिन वस्त्रों और दान से परलोक में बैठे पितरों को शीत काल में सर्दी से कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। आंवले की पूजा करने वाले को आऱोग्य की प्राप्ति होती है।

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