अफगानिस्तान में अपने ही जाल में फंसा पाकिस्तान

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अफगानिस्तान में अपने ही जाल में फंसा पाकिस्तान

अफगानिस्तान में अपने ही जाल में फंसा पाकिस्तान


पब्लिक न्यूज डेस्क। फगानी तालिबान पाकिस्तानी तालिबान के हक्कानी गुट को महत्व नहीं दे रहे हैं वे चाहते हैं कि पाकिस्तान समर्थक हक्कानी गिरोह को नई सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाए हक्कानी तालिबान अफगानिस्तान में भी भारत समर्थकों पर हमले करता रहा है

पाकिस्तान परेशान है। अफगानी तालिबान पाकिस्तानी तालिबान के हक्कानी गुट को महत्व नहीं दे रहे हैं। इस वजह से आईएसआई के मुखिया जनरल फैज हमीद एक प्रतिनिधिमंडल के साथ काबुल में डेरा डाले हुए हैं। वे चाहते हैं कि पाकिस्तान समर्थक हक्कानी गिरोह को नई सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाए। पाकिस्तान इसके पीछे एक तीर से दो निशाने साधना चाहता है। एक तो नई हुकूमत में उसकी पकड़ और पैठ मजबूत बनी रहेगी और दूसरा भारत के खिलाफ कश्मीर में हिंसा भड़काने का नया सरकारी तंत्न उसके कब्जे में आ जाएगा। हक्कानी नेटवर्क भारत विरोधी है। कश्मीर में अनेक आतंकवादी वारदातों के पीछे उसका हाथ रहा है। इस कारण पाकिस्तान उसमें दिलचस्पी ले रहा है। जब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आईएसआई प्रमुख की अफगानिस्तान यात्ना की आलोचना हुई तो इमरान मंत्रिमंडल के एक सदस्य शेख रशीद ने भारत पर ही निशाना साधा। उन्होंने कहा कि फैज की यात्ना से भारत को क्यों तकलीफ हो रही है। उन्होंने बेहूदा आरोप लगाया कि भारत अफगानिस्तान में 60 आतंकवादी शिविर संचालित कर रहा है।

अब यह गुप्त नहीं है कि अमेरिका ने तालिबान की सरकार बनवाई और अपनी कठपुतली सरकार गिरने दी। यदि वह ऐसा नहीं करता तो कभी भी अफगानिस्तान छोड़ नहीं सकता था। तालिबान भी नहीं चाहते थे कि उनकी हुकूमत में कोई ऐसा गुट शरीक हो, जो घोषित तौर पर भारत विरोधी हो और कश्मीर में दखल देता रहा हो। यह बात हक्कानी तालिबान को बता दी गई थी। इसीलिए चार दिन पहले अनस हक्कानी ने बयान दिया था कि कश्मीर में हस्तक्षेप उसकी नीति नहीं है। भारत से वह शांतिपूर्ण संबंध चाहता है और अपेक्षा करता है कि वह अफगानिस्तान में विकास करता रहे। इससे पहले नई सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका संभालने जा रहे स्टेनिकजई ने साफ कहा था कि वे भारत से दोस्ती के हामी हैं और भारत-पाकिस्तान के बीच नहीं पड़ेंगे। भारत में फौजी प्रशिक्षण प्राप्त स्टेनिकजई ने ऐलान किया था कि वे जैशे मोहम्मद और लश्करे तैयबा जैसे उग्रवादी समूहों को संरक्षण नहीं देंगे। यह दोनों समूह कश्मीर में हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं। पाकिस्तान के लिए यह बड़ा झटका था। आईएसआई के मुखिया फैज हमीद के अफगान दौरे के परदे के पीछे की कहानी यही है। उधर, तालिबान भी कम दबाव में नहीं है। रविवार को अमेरिकी बयान ने उसे चौंकाया है कि अगर हालत नहीं सुधरे तो वह फिर सेना भेज सकता है।

इसके पुख्ता सबूत हैं कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्नी इमरान खान की पार्टी के हक्कानी नेटवर्क से मधुर रिश्ते रहे हैं। पिछले चुनाव में इमरान खान नियाजी की पार्टी को जिताने में उसकी बड़ी भूमिका रही है। अमेरिका पहले पाकिस्तान को भरपूर आर्थिक सहायता दे रहा था। जब इमरान की पार्टी पख्तूनख्वा प्रांत में सरकार चला रही थी तो उसने इमरान के निर्देश पर 30 लाख डॉलर हक्कानी नेटवर्क के मदरसों को दिया था। नेटवर्क ने इसका इस्तेमाल हथियार खरीदने और कश्मीर में उग्रवादी वारदातें करने में किया था। अमेरिका को भनक लगी तो उसने आर्थिक सहायता रोक दी। इससे भी यह मुल्क छटपटा रहा है।

हक्कानी तालिबान अफगानिस्तान में भी भारत समर्थकों पर हमले करता रहा है। वहां हिंदू-सिखों पर आतंकवादी हमलों के पीछे हक्कानी तालिबान का हाथ रहा है। उसने तीन बरस पहले अफगानिस्तान के लोकप्रिय सिख नेता अवतारसिंह की हत्या इसलिए कर दी थी क्योंकि वे वहां शांति के लिए सक्रि य थे और संसद के लिए चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे थे। अवतारसिंह अफगानी तालिबान और वहां की सरकार के बीच सेतु बनकर उभरे थे। दोनों पक्ष अवतारसिंह के साथ सहज महसूस करते थे। यह पाकिस्तान को मंजूर नहीं था क्योंकि इससे हक्कानी तालिबान हाशिये पर आ जाता और पाकिस्तान की भूमिका सिकुड़ जाती। ईरान के चाबहार से अफगान सीमा तक भारत सड़क बना रहा था तो उसमें अनेक इंजीनियरों तथा भारतीय मजदूरों की हत्या में इसी गुट का हाथ था। पाकिस्तान नहीं चाहता था कि ग्वादर बंदरगाह के पिछवाड़े भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह बनाए। इससे उसे अपनी सुरक्षा को खतरा लग रहा था। पाकिस्तान के फौजी तानाशाह रहे जनरल परवेज मुशर्रफ ने तो एक टीवी इंटरव्यू में खुलकर कहा था, ''हमने रिलीजियस मिलिटेंसी इंट्रोड्यूस की पाकिस्तान के हक में 1979 में, अफगान से सोवियत संघ को निकालने के लिए। हम मुजाहिदीन लाए पूरी दुनिया से। हमने तालिबान को ट्रेंड किया। हथियार दिए। हमारे हीरो थे। हक्कानी है, हमारा हीरो है जी। ओसामा बिन लादेन हमारा हीरो था। जवाहिरी हमारा हीरो था। अब माहौल बदल गया। अब जो हीरो हैं, वो विलेन बन गए। फिर कश्मीर में 1990 में स्ट्रगल शुरू हुई तो हाफिज सईद वगैरह यहां आ गए। पाकिस्तान में उनको हीरो रिसेप्शन दी गई। उनकी बिल्कुल ट्रेनिंग होती थी। हम सपोर्ट में थे कि ये इंडियन आर्मी से लड़ेंगे अपने हुकूक के लिए। फिर ये लश्करे तैयबा वगैरह बनी। दस बारह और बनी। वो हमारे हीरो थे। तो यह रिलीजियस मिलिटेंसी कन्वर्ट हो गया टेररिज्म में।''

पाकिस्तान की उलझन यह है कि वह अपने जाल में ही फंस गया है। अफगानिस्तान को देने के लिए उसके पास कुछ नहीं है। जो मुल्क आर्थिक दिवालियेपन के कगार पर हो, वह क्या मदद देगा? उधर तालिबान भारत के साथ भविष्य में अपना हित देख रहा है।

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