जुमे की नमाज के बाद क्यों भड़कती है हिंसा

  1. Home
  2. टॉप न्यूज़

जुमे की नमाज के बाद क्यों भड़कती है हिंसा

जुमे की नमाज के बाद क्यों भड़कती है हिंसा


नई दिल्ली। कश्मीर में भी अक्सर शुक्रवार को ही पत्थरबाजी होती है। ऐसे में सवाल उठता है कि मस्जिदों में शुक्रवार को सामूहिक नमाज के बाद ही हिंसा ज्यादा क्यों भड़कती है? पब्लिक न्यूज़ टीवी के माध्यम से समझिये इतिहास। 


मस्जिदों का इतिहासः प्रार्थना के साथ राजनीतिक इस्तेमाल भी
इतिहासकार पीके यासेर अराफात के मुताबिक, 'इतिहास में कभी भी मस्जिदें सिर्फ धार्मिक कामों का सेंटर नहीं रही हैं। शुरुआत से लेकर अब तक यहां पढ़ाई से लेकर कानूनी मसले तक हल किए जाते रहे हैं।' मस्जिदों के इतिहास पर एक नजर डालते हैं।


• ब्रिटिश इतिहासकार कैरेन आर्मस्ट्रांग अपनी किताब 'इस्लामः ए शॉर्ट हिस्ट्री' में लिखते हैं- पैगंबर मोहम्मद ने अपने समुदाय को काबा के आसपास जमा होकर कुरान पढ़ने के निर्देश दिए थे। इसलिए माना जाता है कि दुनिया की पहली मस्जिद काबा के आस-पास थी।
• कुछ लोगों का मानना है कि पैगंबर मुहम्मद ने मदीना जाने के तुरंत बाद पहली मस्जिद बनवाई थी। ये पेड़ों के सहारे खड़ी एक इमारत थी, जिसमें प्रार्थना की दिशा तय करने के लिए पत्थर रखा गया, जिसे किबला कहा जाता है। यहां उपदेश देने के लिए पैगंबर एक पेड़ के तने पर खड़े थे।

o इतिहासकार हेबा मुस्तफा अपने एक लेख में लिखती हैं कि पैगंबर मोहम्मद के बाद मस्जिदों में न सिर्फ सामूहिक प्रार्थनाएं होती थीं, बल्कि ये समुदाय के मौजूदा मसलों पर चर्चा करने की जगह भी बन गईं।
o बाद में इस्लाम जब एक पॉलिटिकल पावर बन गया तो मस्जिदें भी ताकतवर हो गईं। उस वक्त की सत्ता के साथ वफादारी दिखाने के लिए खुतबा यानी उपदेश होने लगे। हालांकि, कई बार राज्य के खिलाफ विद्रोह करने के लिए भी मस्जिदों का इस्तेमाल किया गया।
o भारत में अंग्रेजों के समय और उसके बाद भी मस्जिदों के जरिए सत्ता से उलट विचार जारी किए गए। 1947 में मौलाना अजाद ने मुस्लिमों को पाकिस्तान न जाने की अपील करने के लिए दिल्ली की जामा मस्जिद को चुना था।

* फिलहाल मस्जिदों का इस्तेमाल शिक्षा देने, जकात बांटने, नमाज पढ़ने, इमाम के उपदेश देने के लिए होता है। मस्जिद की मीनार से और अब लाउडस्पीकर से लोगों को सार्वजनिक संदेश भी दिए जाते हैं।


जुमे की नमाजः मुस्लिम समुदाय को उपदेश देने का जरिया
* जुमे की नमाज के बारे में कुरान की सूरा 62 आयत 9 में लिखा है- 'ऐ ईमान वालों जब जुमा के दिन नमाज के लिए पुकारा जाए तो अल्लाह की याद की ओर दौड़ पड़ो और खरीद-बिक्री छोड़ दो।'
* मुस्लिमों का मानना है कि अल्लाह ने शुक्रवार को इबादत के लिए खास तौर पर चुना है। शुक्रवार की नमाज के बाद आमतौर पर खुतबा यानी उपदेश जरूर दिया जाता है। पुरानी रिवायत के मुताबिक आजकल भी जुमे की नमाज के बाद धार्मिक से लेकर राजनीतिक मसलों पर भी टिप्पणी होती है।
गैदरिंग और स्पीच से उत्साहित युवा करते हैं प्रदर्शन
शुक्रवार को होने वाली हिंसा में दो फैक्टर काम करते हैंः

पहला- मुस्लिमों का मस्जिदों में एकजुट होना। दूसरा- सामूहिक उपदेश में धार्मिक-राजनीतिक मसलों पर टिप्पणी करना। जुमे को मस्जिद में होने वाली तकरीर के बाद कई बार लोगों का आक्रोश बढ़ जाता है और एक छोटी चिंगारी भी बड़ी हिंसा में बदल जाती है।
पाकिस्तानी मूल के पत्रकार और लेखक तारिक फतेह शुक्रवार को होने वाली हिंसा के मसले पर कहते हैं कि मस्जिदों में काफिरों को खत्म करने की दुआ मांगी जाती है। राजनीतिक टिप्पणियों से मुस्लिम युवा भड़क उठते हैं।
हालांकि इस्लामिक रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर मौलाना शहाबुद्दीन रजवी के मुताबिक, हिंसा की घटनाओं को जुमे से जोड़कर देखना ठीक नहीं है। पिछले दो जुमे की नमाज के बाद कुछ शहरों में जो हिंसा हुई, उसमें बाहरी लोगों का हाथ है। इन घटनाओं का मस्जिदों और जुमे की नमाज से कोई लेना-देना नहीं है।

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें पब्लिक न्यूज़ टी वी के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @PublicNewsTV और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @PublicNewsTV पर क्लिक करें।