UP Election Results: गोरखपुर शहर मेें तीन दशक से सियासत का रंग भगवा, जानें क्यों योगी के सब दीवाने

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UP Election Results: गोरखपुर शहर मेें तीन दशक से सियासत का रंग भगवा, जानें क्यों योगी के सब दीवाने

UP Election Results: गोरखपुर शहर मेें तीन दशक से सियासत का रंग भगवा, जानें क्यों योगी के सब दीवाने


पब्लिक न्यूज़ डेस्क।  गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र बीते तीन दशक से भगवा खेमे का अभेद्य गढ़ बना हुआ है। बीते आठ विधानसभा चुनावों में यहां सात बार भाजपा तो एक बार हिंदू महासभा का झंडा लहराया है। इस सीट पर भाजपा के टिकट से शिव प्रताप शुक्ल जीत का चौका लगा चुके हैं। जीत के उनके रिकार्ड की बराबरी नगर विधायक डा. राधामोहन दास अग्रवाल ने भी की है। फर्क बस इतना कि उनकी एक जीत हिंदू महासभा के बैनर तले रही। अन्य प्रमुख दलों की बात करें तो इस सीट पर अभी तक समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का खाता नहीं खुल सका है तो लंबे समय से कांग्रेस का पुराना जमाना भी नहीं लौटा है।

पहले विधानसभा चुनाव में इस्तफा हुसैन ने दर्ज की थी जीत

1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में गोरखपुर सदर सीट से कांग्रेस के टिकट पर इस्तफा हुसैन ने जीत हासिल की थी। 1957 में भी वह विजयी रहे जबकि 1962 में नियमतुल्लाह अंसारी ने कांग्रेस को जीत दिलाई। 1967 के चुनाव में जनसंघ के उदय प्रताप ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली। शहर में यह भगवा खेमे की पहली जीत थी। 1969 के चुनाव में अपने उम्मीदवार रामलाल भाई के जरिए कांग्रेस ने यह सीट एक बार फिर हथिया ली। हालांकि इस दौर तक शहर में जनसंघ की पकड़ मजबूत हो चुकी थी, जिसका प्रभाव अगले दो चुनाव में दिखा।

1974 में जनसंघ ने लहराया था परचम

1974 में जनसंघ के टिकट पर और 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर अवधेश श्रीवास्तव विधायक चुने गए। इसके बाद के दो चुनाव इंदिरा लहर और इंदिरा सहानुभूति लहर के नाम रहे। 1980 और 1985 का चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने जीता। 1985 के बाद से यहां भगवा बयार बहने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह अबतक जारी है।

1989 में शिव प्रताप ने ख‍िलाया कमल

1989 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के शिव प्रताप शुक्ल ने यह सिलसिला शुरू किया। 1991, 1993 और 1996 के चुनाव में वह भाजपा के टिकट पर निरंतर जीतते रहे। 2002 के चुनाव में शिव प्रताप का मुकाबला हिंदू महासभा के प्रत्याशी डा. राधामोहन दास अग्रवाल से हुआ। डा. अग्रवाल को तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ का आशीर्वाद मिला तो जनता ने डा. राधा मोहन को विधायक बना दिया। तब भी इस सीट पर सिंबल भले बदला लेकिन वैचारिक रंग भगवा ही रहा। इसके बाद लगातार तीन चुनाव 2007, 2012 और 2017 में डा. राधामोहन दास अग्रवाल भाजपा के टिकट पर जीतते रहे।

बीते दो चुनाव में केवल निकटतम प्रतिद्वंद्वी ही बचा सके जमानत

शहर विधानसभा क्षेत्र भाजपा का कितना मजबूत गढ़ बन चुका है, आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। बीते दो विधानसभा चुनाव की ही बात करें तो यहां निकटतम प्रतिद्वंद्वी के अलावा अन्य सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। 2012 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी डा. राधामोहन दास अग्रवाल ने सपा की राजकुमारी देवी को 47454 मतों के अंतर से परास्त किया। डा. अग्रवाल को 81148 और राजकुमारी देवी 33694 को मत मिले थे। इस चुनाव में बसपा, कांग्रेस व निर्दलीय सहित अन्य 29 प्रत्याशियों की जमानत नहीं बच पाई। 2017 के चुनाव में जबकि सपा और कांग्रेस का गठबंधन था, भाजपा प्रत्याशी की जीत का अंतराल बढ़कर 60730 मत हो गया। डा. अग्रवाल को 122221 और सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी राणा राहुल सिंह को 61491 मत मिले। बसपा, पीस पार्टी व निर्दलीय समेत 21 प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाए।

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