तुलसी विवाह में करें इन मंत्रों और मंगलाष्टक का पाठ, मिलेगा सुख-सौभाग्य

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तुलसी विवाह में करें इन मंत्रों और मंगलाष्टक का पाठ, मिलेगा सुख-सौभाग्य

तुलसी विवाह में करें इन मंत्रों और मंगलाष्टक का पाठ, मिलेगा सुख-सौभाग्य


पब्लिक न्यूज डेस्क। कार्तिक मास में पड़ने वाली देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन तुलसी मां का भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप के साथ विवाह हुआ था। मान्यता है कि इस दिन जो भी विधि पूर्वक तुलसी विवाह का आयोजन कर है उसे कन्यादान के तुल्य फल प्राप्त होता है और अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन विशेष रूप से तुलसी पूजन का भी विधान है। तुलसी विवाह के दिन पूजन में मां तुलसी के इन मंत्रों और तुलसी मंगलाष्टक का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मां तुलसी सभी रोग-दोष से मुक्ति प्रदान करती हैं और अखण्ड सौभाग्य का वरदान देती हैं।

तुलसी पूजन के मंत्र

1-तुलसी जी के पूजन में उनके इन नाम मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए...

ॐ सुभद्राय नमः

ॐ सुप्रभाय नमः

2- तुलसी दल तोड़ने का मंत्र

मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी

नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।

3- रोग मुक्ति का मंत्र

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी

आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः

नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

5- अथ तुलसी मंगलाष्टक मंत्र ॥

ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः ।

प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥1

गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥2

नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम् । गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥3

बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः । मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥4

गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती ।

स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥5

गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका ।

शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥6

लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः ।

अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥7

ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः ।

विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥8

॥ इति मंगलाष्टक समाप्त ॥

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