भैरहवा एयरपोर्ट बाडर सोनौली से 5 साल पहले पाकिस्तानी कर्नल के ग़ायब होने की गुत्थी अभी भी रहस्य बना है

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भैरहवा एयरपोर्ट बाडर सोनौली से 5 साल पहले पाकिस्तानी कर्नल के ग़ायब होने की गुत्थी अभी भी रहस्य बना है

भैरहवा एयरपोर्ट बाडर सोनौली से 5 साल पहले पाकिस्तानी कर्नल के ग़ायब होने की गुत्थी अभी भी रहस्य बना है


संवाददाता रतन गुप्ता 

सोनौली /नेपाल।  पाकिस्तानी सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद हबीब ज़हीर लगभग पांच साल पहले नेपाल से रहस्यमय तरीक़े से लापता हो गए थे. उनका आज तक कोई सुराग़ नहीं मिल सका है. वे नौकरी के लिए इंटरव्यू देने नेपाल आए थे और आज तक उनके लापता होने की कहानी अनसुलझी गुत्थी बनी हुई है.

उनकी गुमशुदगी की गुत्थी को समझने के लिए पांच बरस बाद हमने नेपाल के खोजी पत्रकारों, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से बात की. ये लोग तब या तो उच्च पदों पर बैठे थे या इस मामले में रिपोर्टिंग कर रहे थे. हमने उन ही रास्तों से नेपाल का दौरा किया, जिनके बारे में बताया जाता है कि कर्नल हबीब भी उन्हीं रास्तों से गुज़रे थे.

पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद हबीब ज़हीर अप्रैल 2017 में ओमान से होते हुए लाहौर से नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंचे थे. वे वहां के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे थे. उन्हें वहां से भारतीय सीमा से कुछ ही किलोमीटर दूर भैरहवा लुंबिनी जाना था. इसके लिए वे स्थानीय एयरपोर्ट गए, जो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से थोड़ी दूर स्थित है.

भैरहवा लुंबिनी का हवाई अड्डा भारत की सीमा से महज़ 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. कर्नल हबीब ने अपने परिवार से इसी हवाई अड्डे से बाहर निकलने के बाद एक टेक्स्ट मैसेज के ज़रिए संपर्क किया था.

भारत-पाक के झगड़े में नहीं पड़ना चाहता नेपाल

नेपाल ने लेफ्टिनेंट कर्नल हबीब की गुमशुदगी की पड़ताल एक विशेष जांच पैनल के ज़रिए करवाई. हालांकि इसकी रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गई.
नवराज सेलवाल उस समय नेपाल पुलिस के उप प्रमुख थे. फ़िलहाल वे संसद के सदस्य हैं.  उन्होंने कहा कि यदि यह मामला अभी तक हल नहीं हुआ है तो एक नए पैनल के ज़रिए इसकी और जांच करनी चाहिए.

हालांकि उन्होंने इस केस के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वो कहते हैं, 'जब मैं पुलिस में था, तो अपने पद की गोपनीयता के लिए ली गई शपथ के तहत मैंने काम किया. अब राजनीति में आने के बाद मैं उस समय की घटना पर बात नहीं कर सकता.'

राजन भट्टाराई पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के सलाहकार थे. उनका कहना है कि जांच से पता चला था कि कर्नल हबीब नेपाल में नहीं हैं.

नेपाल 'सरकार ने उस समय जांच के लिए एक पैनल बनाया था. उसने गहराई से तफ़्तीश की थी. सरकार का मानना था कि कर्नल हबीब नेपाल से ज़रूर ग़ायब हुए पर अब वे नेपाल में नहीं हैं.'पाकिस्तान की सरकार ने कर्नल हबीब की गुमशुदगी को लेकर भारत की तरफ़ इशारा करते हुए आरोप लगाया था कि इसमें 'दुश्मन ख़ुफ़िया एजेंसियों का हाथ' रहा है.उधर इस मसले पर भारत का रुख़ रहा है कि उसने नेपाल से पाकिस्तान के किसी पूर्व कर्नल की ग़ायब होने के बारे में सुना था, लेकिन इससे ज़्यादा उन्हें कुछ नहीं मालूम.नेपाल में भारत सहित कई देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियां बहुत सक्रिय हैं. मैंने नेपाल के गृह मंत्रालय से संपर्क किया और पुलिस अधिकारियों से भी बात की, लेकिन इस मामले पर कोई बात करने को तैयार नहीं हुआ. अधिकारियों का कहना है कि यह मामला बहुत पुराना है और उन्हें उनके बारे में कुछ नहीं मालूम.मालूम हो कि नेपाल दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन 'सार्क' का सदस्य है. उसके भारत और पाकिस्तान दोनों देशों से अच्छे संबंध हैं. नेपाल के सरकारी गलियारों में इस बात को लेकर अफ़सोस जरूर पाया गया कि कर्नल हबीब नेपाल से ग़ायब हुए. लेकिन नेपाल इस मामले में भारत और पाकिस्तान के झगड़े में नहीं फंसना चाहता.

पुलिस के पूर्व अधिकारी हेमंत मल्ला कर्नल हबीब के गायब होने के समय नेपाल के सेंट्रल इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (सीआईबी) के प्रमुख थे.
उनका कहना है कि कई कारणों से नेपाल विदेशी ख़ुफ़िया एजेंसियों की गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है. वे कहते हैं कि यहां भारतीय जासूसी एजेंसी की सरगर्मी दिखाई देती हैं. पाकिस्तान और चीन भी यहां काफ़ी सक्रिय है. पश्चिमी देशों की अपनी अपनी प्राथमिकताएं हैं.'
वे कहते हैं, 'नेपाल कभी-कभी उनकी गतिविधियों में फंस जाता है. कई बार दो देशों के मामले में नेपाल ऐसा फंसा कि उसकी समझ में नहीं आया कि वो क्या करे, कहां जाए. नेपाल की एजेंसियां पेशेवर तौर पर इतनी माहिर नहीं, जिसके चलते बाहर की एजेंसियों के कारण कई बार यहां मुश्किलें पैदा हो जाती हैं.'
कर्नल हबीब के गायब होने के बारे में आम राय यही है कि जिस तरह से वे ग़ायब हुए उसमें किसी ख़ुफ़िया एजेंसी का ही हाथ लगता है.।
उनके विचार में नेपाल में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियों का प्रभाव बहुत व्यापक है, उनकी यहां गहरी पैठ है. वे कहते हैं, 'यहां के लोगों को लगता है कि जो भारत के विरुद्ध जाएगा, वो यहां न राजनीति में आगे बढ़ सकता है, न पुलिस बल और ब्यूरोक्रेसी में ही प्रगति कर सकता है. प्रशासन के शीर्ष पद को लेकर आम समझ यही है कि अगर भारत को ख़ुश नहीं रखेंगे तो वहां तक नहीं पहुंच पाएंगे. यहां हर क्षेत्र में भारत का बहुत अधिक प्रभाव और पैठ है.'

कौन था वो शख़्स

कर्नल हबीब ज़हीर ने काठमांडू से लुंबिनी जाने के लिए घरेलू उड़ान का सहारा लिया था. इसके लिए टिकट उन्हें काठमांडू में रिसीव करने वाले व्यक्ति ने दी थी.लुंबिनी के उस विमान पर सवार होने से पहले कर्नल हबीब ने जहाज़ के नज़दीक अपनी एक फोटो भी ली थी. लेकिन वो फोटो सेल्फी नहीं थी, बल्कि उसे किसी दूसरे व्यक्ति ने ली थी. संभवतः वो व्यक्ति काठमांडू से उनके साथ ही सफ़र कर रहा था. वो व्यक्ति इस केस की बहुत अहम कड़ी है.कर्नल हबीब ज़हीर को संयुक्त राष्ट्र की किसी नौकरी के इंटरव्यू के सिलसिले में लुंबिनी बुलाया गया था. ऐसा लगता है कि यह एक प्रकार का ट्रैप या जाल था.लुंबिनी नेपाल और भारत के बीच एक सीमावर्ती क़स्बा है. बौद्ध धर्म शुरू करने वाले गौतम बुद्ध का यहीं जन्म हुआ था. बौद्ध धर्म के अनुयायियों समेत बड़ी मात्रा में पर्यटक पूरी दुनिया से यहां पूरी दुनिया से नेपाल और विदेशों से गौतम बुद्ध के अनुयायी और पर्यटक हज़ारों की संख्या में मंदिरों को देखने यहां आते हैं. यह एक विशेष धार्मिक स्थल है. भैरहव ,लुंबिनी का हवाई अड्डा भारतीय सीमा से केवल 5 किलोमीटर दूर है. बताया जाता है कि कर्नल हबीब ने अपने परिवार से आख़िरी बार संपर्क इसी हवाई अड्डे से बाहर आने के बाद एक टेक्स्ट मेसेज के ज़रिए किया था.


नेपाल सरकार की जांच भले ही किसी नतीज़े पर न पहुंची हो, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि लेफ्टिनेंट कर्नल हबीब ज़हीर भैरहवा ,लुंबिनी हवाई अड्डे, भारत की सीमा और लुंबिनी के बीच ही कहीं ग़ायब हुए. लेकिन उनके साथ सफ़र करने वाला शख़्स कौन थे और उन्हें यहां कौन रिसीव करने वाले थे? इन सवालों पर नेपाल की सुरक्षा एजेंसियां अब तक मौन हैं. इस तरह, कर्नल हबीब का लापता होना पांच साल बाद भी रहस्य बना हुआ है.

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