शांति, और ज्ञान का प्रकाश फैलाता है दीपावली

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शांति, और ज्ञान का प्रकाश फैलाता है दीपावली

शांति, और ज्ञान का प्रकाश फैलाता है दीपावली


अपने जीवन को अध्यात्मिक प्रकाश से प्रकाशित करने का पर्व है दीपावली , दीपावली परिवार समाज देश और विश्व में शक्ति और एकता का प्रकाश भी खेलता है इसमें मिट्टी के दीपों को जलाने की परंपरा है यह शरीर भी तो मिट्टी के दीयों का प्रतीक है इस शरीर रूपी मिट्टी के दीए से परमात्मा की दी हुई आत्मा बाती के रूप में जलती है जिस प्रकार एक जलता हुआ दिया अनिल बुझे हुए दीपों को प्रज्वलित कर सकता है ठीक उसी प्रकार ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित किसी भी महापुरुष की और दूसरी आत्माओं को भी आध्यात्मिक प्रकार से प्रज्वलित कर एक शब्द और संपूर्ण समाज का निर्माण कर सकती है।
सुबह का सूरज रात के अंधेरे को गायब कर देता है सूरज तो रोज आता है वह समय व्यतीत कर अंतर्ध्यान हो जाता है अग्नि के प्रकाश में प्रकाश को दीर्घकाल तक स्थिर बनाने के प्रयोग में ही दीपक की निर्माण कला का विकास हुआ इससे गिया तेल के माध्यम से एक बाती के जरिए प्रकाश को प्रभावी रूप दिया गया। दीपक आत्म बलिदान का प्रतीक है और बिना बलिदान के अंधकार के घटना से मुक्ति संभव नहीं अगर अंधेरा दूर करना है चाहे मन का हो या संसार का आत्मविश्वास जन के पथ पर ही चलना पड़ेगा।
'दीपक'संस्कृति की विकास का प्रतीक बन गया है. कितने दार्शनिकों, विचार को, वैज्ञानिकों,
संतु और मनीषियों ने अपने को तिल तिल जलाकर दुनिया को अध्यात्म की स्थिति तक पहुंचाया, श्री राम, श्री कृष्ण, हमारे ऋषि मुनि, सुकरात, निशा,, स्वामी दयानंद, स्वामी रामतीर्थ के संयुक्त प्रयासों ने दुनिया को सभ्यता, विकास और सौहार्द्र का मार्ग। अंधेरी का दान और एक छोटे से दीपक के बलिदान पर अपना पराजय स्वीकार कर लेता है।
भारत में दीपावली, दीपशिखा, ज्योति महोत्सव का पर्व है।
आदमी अपने संकल्प से अंधकार को पराजित करने का क्षमता रखता है।
दीपावली का ने भरा दीप धीमे धीमे जलता हुआ रात के अंधेरों से जूझता है ताकि हमें अपना रास्ता दिखाई दे।
अपने जीवन को आध्यात्मिक प्रकाश से प्रकाशित करने का पर्व है 'दीपावली'.
' दीपावली 'भारतीय राष्ट्रीय जीवन का प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है। यह दीप पर्व अंधकार विजय का पर्व और अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा, हमारा सांस्कृतिक दर्शन 'तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सद्गमय का वैदिक संदेश हमारा शाश्वत जीवन मूल्य है। दिवाली का स्निग्ध बत्तियों से निकली किरणें कार्तिक की अमावस्या गणतंत्र अंधकार को छिन्न-भिन्न कर संपूर्ण समाज जीवन को नई एवं नहीं उन्नति के भाव से भर देती है।
धार्मिक संदर्भों के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जब रावण को पराजित कर अयोध्या लौटे, तब समस्त अयोध्यावासी ने हर्षोल्लास में घर घर में दीपक के दीए जलाकर उत्साह प्रकट किया था, इसी तरह मां दुर्गा ने जब अत्याचारी राजा राक्षस महिषासुर को मारा और देवताओं को सुरक्षित किया, तब शक्ति दायिनी की शक्ति अनुप्रमाणित, इंद्रलोक में ऐसी ही रोशनी हुई थी।
भगवान श्री कृष्ण तो दीप उत्सव के प्राण पुरुष है। नाक आशीर्वाद से लेकर गोवर्धन पर्वत उठाने तक कि उनकी महिमा को ग्वाल बाल आज भी जीवित रखते हैं।
महावीर, स्वामी रामतीर्थ और महर्षि दयानंद जैसे महापुरुषों की पूर्ण स्मृति भी। इन सब ने अपने जीवन में यही चाहा कि मानव के मन में प्रगति की ज्योति संग चले और मनुष्य को प्रकाशित जीवन दिखाएं जिसमें सेवा,, ममता, दया
उदात्त गुण परिलक्षित हो।
'दीपावली 'का पर्व कार्तिक द्वादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक मनाते हैं। धनतेरस आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि का जन्म दिवस है। इसी विधि पर धन-धान्य, ज्ञान -वैभव,, समृद्ध शाली समाज की शुभकामनाओं के सद्भावना पूर्ण विचारों, लक्ष्मी पूजन के लिए कलश पात्र की तलाश होती है।
हमारी परंपराओं में इसलिए धनतेरस के दिन नए पात्र खरीदने का प्रचलन है।
हमारा प्रकाश पर्व, "दीपावली, लक्ष्मी जी का पूजन उत्सव भी है।
इस पवित्र तिथि शताब्दियों से यह संदेश दिया है कि सृष्टि अंधकार से प्रकाश की ओर जाती है।
अंधकार, अज्ञान, दारिद्र, अभाव या किसी  की दुर्बलता ही क्यों ना हो? निर्धन व्यक्ति भी माटी के 24 दिए जला कर चारों ओर फैली अमावस्या के तम (अंधकार ) को कुछ क्षणों के लिए ही क्यों ना हो,
चुनौती देता है। माटी की ही लक्ष्मी की पूजा कर उसे यह विश्वास होता है कि अब उसके दरिद्र दूर हो जाएंगे और आने वाले दिनों में नए जीवन का आनंद ले।
इसी खुशी में विद्युत सज्जा से दूर, दीपक की पवित्र रोशनी से सघन अंधकार को छिन्न-भिन्न कर अंतर्मन को आलोक भरने वाली दीपशिखा से अपने को आलोकित करते हैं।
सचमुच या दीपशिखा अद्भुत है,
सूरज के ढलने के बाद भी जीवन में प्रकाश भरने की सामर्थ्य दीपशिखा रखती है।
दीपावली का यह पर्व सभी के लिए उत्साह और उमंग का पर्व है।
' दीपक ' संदेश है कि बिना जले प्रकाश नहीं मिलता । हम अपने अंतर्मन के दीप जलाएं और अंधकार मिटाएं।

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