Lumpy: लंपी ने अब तक ली एक लाख गोवंश की जान, जानें क्या संक्रमित पशु का दूध पहुंचा सकता है नुकसान?

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Lumpy: लंपी ने अब तक ली एक लाख गोवंश की जान, जानें क्या संक्रमित पशु का दूध पहुंचा सकता है नुकसान?

Lumpy: लंपी ने अब तक ली एक लाख गोवंश की जान, जानें क्या संक्रमित पशु का दूध पहुंचा सकता है नुकसान?


पब्लिक न्यूज़ डेस्क।  लंपी वायरस अब तक 15 राज्यों के 251 जिलों तक पैर पसार चुका है। पशुपालन मंत्रालय के मुताबिक इस वायरस ने 23 सितंबर तक 20.56 लाख से ज्यादा गोवंश को अपने चपेट में ले लिया है। इस वायरस के चलते करीब एक लाख गायों की मौत हो चुकी है। अप्रैल महीने में गुजरात के कच्छ इलाके में इस संक्रमण का पहला मामला आया था। तब से अब तक इस संक्रमण के चलते करीब एक लाख पशुओं की जान जा चुकी है। पिछले तीन हफ्ते में ही मौतों का आंकड़ा दोगुना हो चुका है।

किन राज्यों में  लंपी का सबसे ज्यादा असर?

राजस्थान में सबसे ज्यादा 13.99 लाख से ज्यादा गाय इस वायरस से संक्रमित हैं। यहां ये वायरस 64 हजार से अधिक गायों की जान ले चुका है। इसके बाद पंजाब, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में इस वायरस ने नुकसान पहुंचाया है। पंजाब में 17,721, गुजरात में 5,857, हिमाचल प्रदेश में 5,199 और हरियाणा में 2,638 गोवंश लंपी के चलते जान गवां चुके हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र, गोवा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, दिल्ली और बिहार में भी यह संक्रमण तबाही मचा रहा है। 

कितने गोवंश पर लंपी का खतरा?

देश में 3.60 करोड़ से ज्यादा गोवंश अतिसंवेदनशील श्रेणी में चिह्नित किए गए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 23 सितंबर की शाम तक 97,435 गायों की जान जा चुकी है। हालांकि, गैर आधिकारिक आंकड़े कहीं ज्यादा बताए जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने गायों को बीमारी से बचाने के लिए राज्यों को टीकाकरण अभियान तेज करने को कहा है। लगातार एडवाइजरी भी जारी की जा रही है। आमतौर पर 2 से 3 हफ्ते में संक्रमण ठीक हो जाता है, लेकिन कुछ मामलों में इससे मौत भी हो सकती है। इस वायरस के चलते होने वाली मौतों की दर 5 से 45 फीसदी तक हो सकती है। राजस्थान में मौजूदा संक्रमण के चलते होने वाली मौतों की सबसे ज्यादा दर 15 फीसदी तक है।

 क्या किसी संक्रमित जानवर के दूध का सेवन करना सुरक्षित है?

अब तक के अध्ययन बताते हैं कि दुधारू जानवर के दूध में लंपी वायरस के अंश नहीं मिले हैं। हालांकि, एशिया में दूध का सेवन करने से पहले उसे उबाला जाता है या फिर उसे पॉश्यूराइज्ड किया जाता है या उसका पाउडर बनाया जाता है। इससे दूध में वायरस होगा तो भी वह निष्क्रीय या नष्ट हो जाएगा। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि लंपी एक गैर-जूनोटिक रोग है। ऐसे में इससे संक्रमित जानवर के दूध का सेवन करने में कोई खतरा नहीं है। भले आप उसे उबालें या न उबालें।

आखिर ये लंपी वायरस होता क्या है?

ग्लोबल अलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन (GAVI) के मुताबिक, लंपी जानवरों में होने वाला एक चर्म रोग है। गायों-भैंसों में होने वाला यह रोग कैप्रीपॉक्स वायरस से होता है। यह वायरस गोटपॉक्स और शिपपॉक्स फैमिली वायरस का हिस्सा है। लम्पी वायरस मवेशियों में खून चूसने वाले कीड़ों के जरिए फैलता है। अभी तक इसके मनुष्यों में फैलने का मामला नहीं आया है। 

इसके लक्षण क्या हैं?
 
इस वायरस से संक्रमित होने के चार से 14 दिन के भीतर लक्षण नजर आने लगते हैं। जानवर को तेज बुखार होता है। इसके बाद पीड़ित जानवर की खाल पर गोलाकार धब्बे पड़ने लगते हैं जो बाद में थक्के और घाव का रूप ले लेते हैं। इससे पीड़ित जानवर का वजन तेजी से कम होने लगता है। दुधारू जानवर का दूध कम हो जाता है।  इसके अलावा संक्रमित जानवर की नाक बहती है, मुंह से लार आती है। गर्भवती गोवंश के संक्रमित होने पर मिसकैरेज होने का खतरा बढ़ जाता है।

कहां से आया लंपी?

1928-29 में पहली बार अफ्रीका महाद्वीप के जाम्बिया में यह वायरस सामने आया था। यहां से पूरे अफ्रीका में यह फैला। इसके बाद पश्चिम एशिया, दक्षिणपूर्व यूरोप और मध्य एशिया में इसके मामले सामने आए। 2019 में दक्षिण एशिया और चीन में सामने आए हैं। भारत में भी मौजूदा संकट की शुरुआत 2019 से हुई थी। तब प्रशासनिक स्तर पर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया, वरना हालात बिगड़ने से बचाया जा सकता था। भारत और दक्षिण एशिया में भले ये बीमारी तबाही मचा रही है लेकिन, FAO को मुताबिक अफ्रीका और पश्चिम एशिया के कई देशों में यह बीमारी खत्म होने के कगार पर है। 

सरकार का इसे लेकर क्या कहना है?

केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन व डेयरी राज्यमंत्री मंत्री डॉ. संजीव बालियान ने कहा, केंद्र लंपी वायरस से बचाव के लिए टीकाकरण अभियान को रूटीन में शामिल करने पर विचार करेगा। बकरियों को लगाया जाने वाला गोटपॉक्स टीका लंपी वायरस के खिलाफ शत-प्रतिशत कारगर पाया गया है। राज्यों को 1,38,58000 टीके की खुराकें उपलब्ध कराई जा चुकी हैं। 1.47 करोड़ खुराकें अभी उपलब्ध हैं। चार करोड़ खुराकें अक्तूबर में भेजेंगे।  

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (हरियाणा) ने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (बरेली) के सहयोग से इस वायरस का स्वदेशी टीका तैयार कर लिया है। लंपी-प्रो वैक-इंड नाम के इस टीके को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछले दिनों लॉन्च किया था। यह जल्द बाजार में आएगा। इसके उत्पादन की जिम्मेदारी बायोवैट कंपनी को दी गई है।

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