जानें क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि और क्या है इसका महत्व?

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जानें क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि और क्या है इसका महत्व?

जानें क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि और क्या है इसका महत्व?


पब्लिक न्यूज़ डेस्क। महाशिवरात्रि के  दिन भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे और ब्रह्मा और विष्णु की परीक्षा ली थी और दूसरी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के साथ देवी पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत किया जाता है और पूजा भी। प्रमुख शिव मंदिरों में इस दिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है। और भी कई मान्यताएं और परंपराएं इस पर्व के साथ जुड़ी हैं। 

शिव महापुराण में कहा गया है कि जो भक्त महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव  लिंग स्वरूप की पूजा करता है उसे पूरे साल शिव पूजन का पुण्य प्राप्त हो जाता है। सवाल उठता है कि आखिर महाशिवरात्रि का इतना महत्व क्यों बताया गया है, इसका जवाब भगवान शिव ने ही शिव महापुराण में दिया है।

फाल्गुन माह में आने वाली महाशिवरात्रि का खास महत्व होता है. माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. शास्त्रों की माने तों महाशिवरात्रि की रात ही भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे. इसके बाद से हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है.

कहा यह भी जाता है कि मां पार्वती सती का पुनर्जन्म है. मां पार्वती शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी. इसके लिए उन्होंने शिवजी को अपना बनाने के लिए कई प्रयत्न किए थे, भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए. इसके बाद मां पार्वती ने त्रियुगी नारायण से 5 किलोमीटर दूर गौरीकुंड में कठिन साधना की थी और शिवजी को मोह लिया था और इसी दिन शिवजी और मां पार्वती का विवाह हुआ था.

महाशिवरात्रि का क्या है महत्व

महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है. यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं. पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं. सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं.

हालांकि, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे. वे एक पर्वत की भांति स्थिर व निश्चल हो गए थे. यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता. उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा. ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए. वही दिन महाशिवरात्रि का था.

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