जानिये आखिर कुम्भ का आकर्षण भारत ही नही पूरी दुनिया में क्यूँ रहता है

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जानिये आखिर कुम्भ का आकर्षण भारत ही नही पूरी दुनिया में क्यूँ रहता है

जानिये आखिर कुम्भ का आकर्षण भारत ही नही पूरी दुनिया में क्यूँ रहता है


पब्लिक न्यूज डेस्क। आखिर कुम्भ का आकर्षण भारत ही नही पूरी दुनिया में क्यूँ बना हुआ है? यह सवाल हमेशा से लोगो की जेहन में बना रहता है। हरिद्वार कुम्भ में भी यह सवाल लोगो के मन में है, कोविड की वजह से लोग कुम्भ में जा नही पा रहे है लेकिन इन्टरनेट पर सर्च करके कुम्भ की गतिविधियों पर नजर बनाये हुए है। वैसे तो कुम्भ को साधू संतो का पर्व कहा जाता है लेकिन इसका रिश्ता संन्यासियों और बैरागी उदासी बाबाओं तक ही नहीं बल्कि सम्राटों तक भी रहा है।

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कुंभ महापर्व के बारे में कहा जाता है कि वह जितना विराट है उसकी गाथाएं भी उतनी ही विशाल हैं। कुंभ ऐसा महापर्व है जिसकी सुगंध विदेशों में भी खूब फैली रहती है। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, यूरोप आदि तमाम स्थानों से लोग कुंभ देखने आते हैं।  कई पुस्तको में वर्णित है कि श्रद्धालु के रूप में राजा-महाराजा न केवल कुंभ नगरों में लंबे समय के लिए आते, बल्कि अपना राजपाट भी यहीं से चलाते थे। कुंभ वर्णन को कागजों पर आकार देने ह्वेनसांग, महंत लालपुरी, दिलीप कुमार राय, इंदिरा देवी आदि ने राजाओं से साधुओं के रिश्तों पर काफी कुछ लिखा है। साधु जब कुंभ स्नान को निकलते तब राजा महाराजा एक दिन के लिए अपने तमाम राजसी अलंकार, गहने और मुकुट साधुओं को सौंप देते थे। राजा बाबाओं को कंधों पर उठाकर गंगा आदि पवित्र नदियों के तटों पर ले जाते थे। चूंकि राजसी वैभव त्यागकर राजा उस दिन साधुओं को शाही सम्मान, हाथी, घोड़े सौंप देते। अत: कुंभ स्नानों को शाही स्नान और जमातों को शाहियां कहा जाने लगा। भारतीय अध्यात्म परंपरा ऐसे मूल्यों से ही आज तक जीवंत है। कुंभ के शाही स्नान आज भी होते हैं और वैभवशाली भारत की याद दिलाते हैं।

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