जानिए ज्ञानवापी मस्जिद का क्‍या है पूरा विवाद, क्यों कोर्ट के आदेश पर हो रहा सर्वे, जानें इतिहास

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जानिए ज्ञानवापी मस्जिद का क्‍या है पूरा विवाद, क्यों कोर्ट के आदेश पर हो रहा सर्वे, जानें इतिहास

जानिए ज्ञानवापी मस्जिद का क्‍या है पूरा विवाद, क्यों कोर्ट के आदेश पर हो रहा सर्वे, जानें इतिहास


पब्लिक न्यूज़ डेस्क : उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की वीडियोग्राफी और सर्वे का काम कोर्ट के आदेश के बाद शुक्रवार से शुरू होने के बाद 16 मई को शिवलिंग मिलने के बाद परिसर को सील भी कर दिया गया है। अदालत ने ज्ञानवापी परिसर स्थित मां शृंगार गौरी व अन्य विग्रहों की कमीशन कार्यवाही के दौरान वीडियोग्राफी, एकत्रित किए गए साक्ष्यों व प्रमाणों को सुरक्षित रखने के लिए स्थान उपलब्ध कराने का आदेश पुलिस आयुक्त को दिया है। हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद भी इसको लेकर दोनों पक्षकारों में तनातनी है। ऐसे में इस मस्जिद से जुड़े विवाद के बारे में विस्तार से जानिए...

ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। इस मस्जिद को लेकर दावा किया जाता है कि इसे मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। हिंदू पक्ष का दावा है कि इस ढ़ाचे के नीचे 100 फीट ऊंची विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थापित है। पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है।

कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2,050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब ने सन् 1664 में मंदिर को नष्ट कर दिया था। दावा किया गया कि इसके अवशेषों का उपयोग मस्जिद बनाने के लिए किया था, जिसे मंदिर भूमि पर निर्मित ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है।

सन् 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। वह अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं, लेकिन 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई।

बाद में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में नया मंदिर बनवाया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के रूप में जानते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इस विवादित ढांचे के नीचे ज्योतिर्लिंग है। यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है।

हालांकि कुछ इतिहाकारों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 14वीं सदी में हुआ था और इसे जौनपुर के शर्की सुल्‍तानों ने बनवाया था, लेकिन इस पर भी विवाद है। कई इतिहासकार इसका खंडन करते हैं। उनके मुताबिक शर्की सुल्‍तानों द्वारा कराए गए निर्माण के कोई साक्ष्‍य नहीं मिलते हैं और न ही उनके समय में मंदिर के तोड़े जाने के साक्ष्‍य मिलते हैं।

काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस का 1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया गया था। इस याचिका के जरिए ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विशेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं। मुकदमा दाखिल होने के कुछ दिनों बाद ही मस्जिद कमिटी ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट, 1991 का हवाला देकर हाई कोर्ट में चुनौती दी।
इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1993 में स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद स्टे आर्डर की वैधता पर 2019 को वाराणसी कोर्ट में फिर से सुनवाई की गई थी। कई तारीख मिलने के बाद आखिरकार गुरुवार को वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद की पुरातात्विक सर्वेश्रण की मंजूरी दी गई।

मुस्लिम पक्ष ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का विरोध कर रहा है। उसका कहना है कि यदि कोर्ट कमिश्‍नर वहां घुसते हैं उनके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया जाएगा। मुस्लिम पक्ष इस पर अड़ा है कि अदालत का आदेश मस्जिद के अंदर प्रवेश करने का नहीं है इसलिए उसमें प्रवेश की इजाजत नहीं दी जाएगी।

वहीं प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में अपील की थी कि काशी विश्वनाथ मंदिर व विवादित ढांचास्थल का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया जाये। दावा किया कि ढांचा के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के जुड़े पुरातात्विक अवशेष हैं।

यह है पूरा मामला

 नई दिल्ली की राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास व रेखा पाठक की ओर से 18 अगस्त, 2021 को सिविल जज (सीडि) की अदालत में वाद दाखिल किया गया था। वाद में कहा गया है कि भक्तों को मां शृंगार गौरी के दैनिक दर्शन-पूजन एवं अन्य अनुष्ठान करने की अनुमति देने के साथ ही परिसर में स्थित अन्य देवी-देवताओं के विग्रहों को सुरक्षित रखा जाए। वाद में प्रदेश सरकार के अलावा जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को पक्षकार बनाया गया है। इस वाद पर मौके की वस्तुस्थिति जानने के लिए सिविल जज (सीडि) रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने कमीशन कार्यवाही का आदेश दिया है।

श्रृंगार गौरी केस में कब क्‍या हुआ

श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा के लिए 18 अगस्त 2021 को वाद दाखिल किया गया।
कोर्ट ने मुख्य सचिव यूपी, वाराणसी जिला प्रशासन, वाराणसी पुलिस कमिश्नर, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को नोटिस भेजा।
इसके साथ कोर्ट ने श्रृंगार गौरी मंदिर की मौजूदा स्थिति को जानने के लिए कमीशन गठित करते हुए अधिवक्‍ता कमिश्‍नर नियुक्‍त करने और तीन दिन के अंदर पैरवी का आदेश दिया।
8 अप्रैल 2022 सिविल जज सीनियर डिविजन की कोर्ट ने वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता अजय कुमार मिश्रा को कोर्ट कमिश्‍नर बनाकर कमीशन और वीडियोग्राफी का आदेश दिया। यह कार्यवाही 19 अप्रैल को होनी थी।
कार्रवाई से ठीक एक दिन पहले वाराणसी जिला प्रशासन और कमिश्‍नरेट पुलिस ने सुरक्षा कारणों और मस्जिद में सिर्फ सुरक्षाकर्मी और मुस्लिमों के ही जाने की अनुमति देने की बात बताकर कार्रवाई को रोकने की मांग की।
19 अप्रैल 2022 को प्रतिवादी वाराणसी पुलिस-प्रशासन, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और वादी श्रृंगार गौरी के बीच बहस हुई इसके बाद अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए 26 अप्रैल 2022 को अगली तारीख तय कर दी। कोर्ट ने पुराने आदेश को बरकरार रखते हुए ईद के बाद कमीशन और वीडियोग्राफी की कार्रवाई कराने और 10 मई से पहले कोर्ट में रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। अगली सुनवाई 10 मई को होगी।

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