हरिद्वार महाकुम्भ-2021 : सनातन परंपरा में आस्था रखने वालों का लगेगा जमघट

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हरिद्वार महाकुम्भ-2021 : सनातन परंपरा में आस्था रखने वालों का लगेगा जमघट

हरिद्वार महाकुम्भ-2021 : सनातन परंपरा में आस्था रखने वालों का लगेगा जमघट


नई दिल्ली। हरिद्वार महाकुम्भ -2021 में दुनिया के कोने-कोने में सनातन परंपरा में आस्था रखने वालों का यहां खूबसूरत जमघट लगेगा।  यह वह भीड़ होगी जो एक साथ एक बहते जल के सोते में डुबकी लगाएगी और इस जल में होने वाले हर-हर गंगे का उद्घोष उनमें एकता का संचार करेगा। और गंगा नदी ने तो वचन दिया है कि स्नान के समय शुद्ध मन से, पाश्चाताप भरे हृदय से और अपने पापों को उत्तरदायी मानते हुए जो व्यक्ति किसी भी जलाशय या जलस्त्रोत के सामने मेरा स्मरण करेगा और स्नान करेगा वहां उस जल में मैं स्वयं आ जाऊंगी।
उनके उघारे बदन इस बात को साबित करेंगे कि कपड़े या बाहरी आवरण तो दिखावा हैं जो उन्हें अलग बना देते हैं।  असलियत में तो हम सब वही हाथ-पैर, हड्डी के ढांचे हैं जिनमें प्राण एक ही है।  फिर अचानक ही उन्हें ग्लानि होगी कि आज तक इस आवरण के फेर में पड़कर उन्होंने कितने पाप किए।  अब एक डुबकी और लगेगी. इस डुबकी का आशय होगा... हे मां गंगा... हमारे अपराध क्षमा करना.. हमारे पाप धुल देना. 
क्या मां गंगा वाकई उनके पाप धुल देंगी?? ऐसा होगा?
 
 इस विषय में महामुनि व्यास जी कहते हैं एक बड़ा ही रोचक और प्रसिद्ध श्लोक है, अष्टादश पुराणेषु, व्यासस्य वचनद्वयं, परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्
यानी कि 18 पुराणों के सार में महामुनि वेदव्यास एक ही तथ्य कहते हैं।  किसी के साथ परोपकार करना पुण्य है और किसी को जरा सा भी कष्ट देना पाप है।   धरती पर मानव जीवन की शुरुआत हुई।  इसी के साथ दो सबसे बड़ी भावनाएं पाप और पुण्य का भी जन्म हुआ।  
यह दोनों ही मनुष्य की छाया बनकर उसके साथ ही चलते रहे।  जैसे ही किसी मनुष्य की जीवन यात्रा शुरू होती है, पाप और पुण्य की भी यात्रा प्रारंभ हो जाती है। 

दुनिया की हर परंपरा में है पाप-पुण्य

अकेले सनातन परंपरा में ही नहीं, बल्कि दुनिया की हर संस्कृति में जो जहां भी पनपी वहां पाप और पुण्य  साथ-साथ पनपे।  इसाई समाज में यही बात एडम और ईव के जरिए कही गई है, जो देवता के मना करने के बावजूद भी सेब फल खा लेते हैं।  इस्लाम कहता है कि कुछ फरिश्ते आदमी के दायें-बाएं हैं जो उनके अच्छे-बुरे काम लिख लेता है और हिसाब तैयार करता है।  

हर संस्कृति में है जल शुद्धि

पुण्य और पाप के होने के साथ ही यह भी कोशिश जारी रही है कि पुण्य बढ़े और पाप अगर हैं तो उन्हें मिटाया या हटाया जा सके।  यही अवधारणा हर संस्कृति में हमें जल की ओर ले जाती है।  वह जल जो पवित्र कर देता है।  जो पाप का लिखा मिटा देता है और जो फिर से एक पुण्य आत्मा बना देता है।इस्लाम में इसे आब-ए-जमजम कहा गया है और सनातन परंपरा इसे गंगा मैया कहती है।  

इसलिए करते हैं स्नान

ग्रहों और राशियों के विशेष योग में लगने वाला महाकुंभ पर्व इसी विश्वास को बल देता है कि गंगा माता हमारे सारे पाप धुल देती हैं।  यह विश्वास भी उस पौराणिक कथा के कारण आता है जो कहती है कि गंगा में अमृत की बूंदे मिल गई।  अमृत वह दैवीय तरल है जो अमर कर देता है।  सिर्फ अमर ही नहीं, यह जन्म-मृत्यु का चक्र तोड़ देता है। थोड़ी मात्रा गंगा नदी में मिल जाने का प्रभाव यह है कि गंगा जल स्नान अमरता न भी दे तो कम से कम पापों को धो दे और मनुष्य नवजीवन का अनुभव कर सके। 

व्यास मुनि ने पुराणों के आख्यान में बताया है महत्व

इस बात की पुष्टि खुद व्यास मुनि ही अपने कथन की व्याख्या में करते हैं।  उनके अलग-अलग पुराणों में  महाकुम्भ स्नान के कई महत्व बताए गए हैं।   भविष्य पुराण कहता है कि  महाकुम्भ स्नान पापों को नष्ट कर देता है।  ब्रह्म पुराण कहता है कि  कुम्भ स्नान से अश्वमेध यज्ञ जैसा फल मिलता है क्योंकि आप अपने पापों की बलि दे रहे होते हैं। अग्नि पुराण कुंभ स्नान को गोदान जैसा पवित्र बताता है।  स्कंद पुराण कुंभ स्नान को इच्छा पूर्ति और शुभ फल प्रदान करने का माध्यम बताता है।  कूर्म पुराण कहता है कि कुंभ स्नान से पाप नष्ट होते हैं।  इसके साथ ही यह पुराण यह भी कहता है कि सिर्फ पाप नष्ट करने के लिए कुंभ स्नान करना फलदायी नहीं होता है, बल्कि आप यह संकल्प भी लें कि अब कोई पाप नहीं करेंगे।  इस तरह का प्रण लेने और संकल्प करने से वाकई पुराने पाप कटते हैं और पुण्यों में वृद्धि होती है।  

गंगा मां ने दिया है वचन

और गंगा नदी ने तो वचन दिया है कि स्नान के समय शुद्ध मन से, पाश्चाताप भरे हृदय से और अपने पापों को उत्तरदायी मानते हुए जो व्यक्ति किसी भी जलाशय या जलस्त्रोत के सामने मेरा स्मरण करेगा और स्नान करेगा वहां उस जल में मैं स्वयं आ जाऊंगी।  इस संबंध में एक श्लोक है-
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी।।

भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी।
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशय।

स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम्।।

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