हरिद्वार महाकुम्भ  2021 : घाट के किनारे पहुंचे कई मत-कई संस्कृतियां 

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हरिद्वार महाकुम्भ  2021 : घाट के किनारे पहुंचे कई मत-कई संस्कृतियां 

हरिद्वार महाकुम्भ  2021 : घाट के किनारे पहुंचे कई मत-कई संस्कृतियां 


नई दिल्ली।  हरिद्वार महाकुम्भ  2021 की शुरुआत मकर संक्रांति स्नान के साथ हो चुकी है।  पावन-पुनीत गंगा की लहरें हिलोरें ले रही हैं और घाट के किनारे पहुंचे कई मत-कई संस्कृतियां इन लहरों में एक होती दिख रही हैं। आदि गुरु शंकराचार्य ने सदियों पहले जब चार मठों की स्थापना की और आध्यात्म को नया सूत्र दिया, तब उन्होंने समझ लिया होगा कि यह नदियों की लहरें ही हैं जो अलग-अलग मान्यता को मानने वाले और कई पंथ के ईष्ट को पूजने वाले सनातनियों को एक साथ एक सूत्र में बांध सकती हैं।  कुंभ-महाकुंभ और कई शुभ मौकों पर होने वाले स्नान इसी एकता के परिचायक हैं। वैसे सेवा भाव लिए, निर्मल आचरण वाले और परोपकार को पहला उपदेश मानने वाला यह उखाड़ा उदासीन अखाड़ा कहलाता है।

कुंभ आने वाला तीसरा अखाड़ा 

महाकुंभ के आयोजन में जितनी विविधता नजर आती है, दुनिया के किसी धार्मिक आयोजन में विविधता के इतने रंग नहीं दिखते हैं, जितने महाकुंभ में नजर आते हैं।  यहां शिव को मानने वाले भी गंगा की गोद में  जाते हैं और विष्णु को प्रधान मानने वाले भी हर-हर गंगे का उद्घोष करते हैं।  शैव और वैष्णव मत के साथ कुंभ में जो अखाड़े आते हैं उनमें सिखों का भी एक तीसरा अखाड़ा शामिल होता है।  नागा साधु व अन्य संतों के बीच इनकी अलग ही पहचान होती है।  सेवा भाव लिए, निर्मल आचरण वाले और परोपकार को पहला उपदेश मानने वाला यह उखाड़ा उदासीन अखाड़ा कहलाता है।  

ऐसे बना उदासीन अखाड़ा

उदासीन अखाड़ा, सिख समाज से जुड़ाव लिए आता है।  गुरु नानकदेव के सुपुत्र श्रीचंद्र ने उदासीन संप्रदाय की स्थापना की थी।  कुंभ स्नान के महत्व को समझते हुए और भारतीय संस्कृति और समाज से एकाकार के लिए, भाईचारा की सीख देते हुए यह संप्रदाय देश के धार्मिक आयोजनों में भाग लेता था और सद्भावना ही इनका मंत्र था। 
इसी उदासीन संप्रदाय के आज दो अखाड़े प्रचलित हैं।  एक श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन अखाड़ा और दूसरा श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन।  हालांकि बाद सिख साधुओं के एक और संप्रदाय का उदय भी सामने आया।  यह संप्रदाय बीती शताब्दी में ही उदित हुआ है।  जिसे निर्मल संप्रदाय का नाम दिया गया।  निर्मल संप्रदाय के ही अधीन श्री पंचायती निर्मल अखाड़े का भी जन्म हुआ है।   

संप्रदाय में तीन अखाड़े

उदासीन अखाड़ा कहने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि उदासी या ऐसे किसी अर्थ से इसका संबंध हो।  उदासीन एक विचार है, शब्द का अर्थ हुआ ऊंचाई पर बैठा हुआ, यानी ब्रह्न या समाधि की अवस्था। इस तरह आज के दौर में उदासीन संप्रदाय में तीन अखाड़े हैं।  

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