मिल गया पानी बचाने वाला बैक्टीरिया, घटेगा सिंचाई का खर्च और ईंधन की भी होगी बचत

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मिल गया पानी बचाने वाला बैक्टीरिया, घटेगा सिंचाई का खर्च और ईंधन की भी होगी बचत

मिल गया पानी बचाने वाला बैक्टीरिया, घटेगा सिंचाई का खर्च और ईंधन की भी होगी बचत


पब्लिक न्यूज डेस्क। खेतों की सिंचाई के दौरान अधिक पानी का प्रयोग करना पड़ता है। कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में फसलों का उत्‍पादन भी प्रभावित होता है। पानी बचाने के लिए खेतों में कोई उपाय नहीं होता था। लेकिन, अब कृषि विज्ञानियों ने उस बैक्‍टीरिया को खोज निकाला है जो पौधों में पानी के उपयोग को नियंत्रित कर सकता है। प्रयोग के परिणाम काफी उत्‍साहजनक रहे हैं। दरअसल बीजों के उपचार के दौरान ही इस बैक्‍टीरिया का प्रयोग होने से खेतों में नमी मिलती रहेगी। इसकी वजह से गेहूं और सरसों के खेतों में सिंचाई पर कम ध्‍यान देना पड़ेगा। इसका प्रयोग करने से किसानों की खेती में लागत भी काफी कम विज्ञानियों ने एक ऐसे जीवाणु (बैक्टीरिया) की खोज की है जो कृषि क्षेत्र में ऊर्जा, जल और अर्थ प्रबंधन को बदलकर रख देगा। इस बैक्टीरिया से गेहूं और सरसों के बीज को उपचारित कर बोआई करने के बाद उन्हें यह इतनी शक्ति प्रदान कर देता है कि सरसों को महज नमी मिलती रहे तो सिंचाई करने की आवश्यकता ही नहीं होगी। वहीं, गेहूं की फसल को तीन के बजाय दो सिंचाई की जरूरत रह जाएगी। इससे सिंचाई का खर्च तो घटेगा ही, ईंधन (डीजल-बिजली) की भी बचत होगी।

खेती में लगातार सिंचाई के लिए बढ़ती जा रही लागत और पाताल भागते पानी की वजहों से खेती के लिए भी कई इलाके सूखे की चपेट में आ रहे हैं। मानसून पर अधिक निर्भरता से बचने के साथ ही जमीन से पानी निकालने के लिए बोरवेल भी काफी लगने से कई इलाकों में सूखे का खतरा बढ़ रहा है। पूर्वांचल में भी खेती के लिए सिंचाई की जरूरत काफी होती है। वहीं मानसूनी बरसात में कमी आने की वजह से फसल खराब होने की संभावना अधिक रहती है। पूर्वांचल में धान की खेती अधिक होती है और धान की खेती में पानी का अधिक प्रयोग होता है। मगर अभी सभी प्रकार के फसलों पर इसके प्रयोग और लाभ को लेकर विज्ञानी इंतजार कर रहे हैं। 

सिचाईं में इस्तेमाल हो रहा पीने योग्य बहुमूल्य पानी भी बचाया जा सकेगा। राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो के विज्ञानियों ने यह बैक्टीरिया उच्च लवण सांद्रता वाले क्षेत्रों से प्राप्त किया है। यह बैक्टीरिया फसल को मुरझाने या सूखने नहीं देता। ब्यूरो के प्रधान विज्ञानी डा. आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि अब इस बैक्टीरिया के उपयोग से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में फसल उगाने की तकनीक पर काम किया जा रहा है। अन्य फसलों के जल प्रबंधन पर पडऩे वाले इसके प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है। उन्होंने बैक्टीरिया पर अपना शोधपत्र बीएचयू में हाल ही में हुई 15वीं कृषि कांग्रेस में प्रस्तुत किया था।

पूर्वांचल में व्‍यापक लाभ : पूर्वांचल में चंदौली, मीरजापुर और सोनभद्र जैसे पहाड़ी जिलों में खेती किसानी की बड़ी चुनौती हो रही है। यहां नहरों का व्‍यापक जाल भी नहीं है और जमीन से पानी निकालने की चुनौती भी काफी होती है। ऐसे में पानी बचाने वाले बैक्‍टीरिया के प्रयोग से यहां पर सिंचाई को लेकर काफी राहत मिलना तय है। हालांकि, इसके व्‍यापक स्‍तर पर औद्योगिक प्रयोग जैसी संभवनाओं के जमीन पर उतरने में समय है। फ‍िलहाल पानी बचत की संकल्‍पना को लेकर हो रहे प्रयोग के सफल होने पर भविष्‍य में जल संरक्षण में भी सहूलियत मिलना तय है। 

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