बेड की जानलेवा किल्लत : कोविड मरीज नहीं, अब मानवता तोड़ रही दम

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बेड की जानलेवा किल्लत : कोविड मरीज नहीं, अब मानवता तोड़ रही दम

बेड की जानलेवा किल्लत : कोविड मरीज नहीं, अब मानवता तोड़ रही दम


कानपुर। कोरोना अब इस कदर कहर बरपाने लगा है कि मानवता दम तोड़ने लगी है। अस्पतालों में बेड न मिलने से लोगों की मौत तो हो हो रही है। कोविड के नाम पर अफसरों और रिश्तेदारों की सारी संवेदनशीलता खत्म हो चुकी है। यह अहसास तब हुआ, जब शुक्रवार को एक युवक ने घर में दम तोड़ दिया तो आर्डिनेंस फैक्टरी के डायरेक्टर के पीए की अस्पतालों के चक्कर काटते-काटते एंबुलेंस में ही जान चली गई। इन दोनों ही मामलों में अफसरों के स्तर पर संवेदनहीनता की सारी हदें पार हो गईं। या यूं कहें कि व्यवस्था के नाम पर किए जा रहे सभी खोखले दावों की पोल खुल गई। आर्डिनेंस फैक्टरी के डायरेक्टर के पीए के अंतिम संस्कार तक के लाले पड़ गए।

आर्डिनेंस फैक्टरी के डायरेक्टर के पीए की एंबुलेंस में ही मौत

बाबूपुरवा निवासी निरंजन पाल सिंह (56) ऑर्डिनेंस फैक्टरी में डायरेक्टर के पीए थे। बेटे कंवलजीत सिंह ने बताया कि पांच दिन से पिता को बुखार आ रहा था। वह घर पर ही मेडिकल स्टोर की दवा ले रहे थे। शुक्रवार सुबह तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी तो एंबुलेंस से उन्हें फॉर्च्यून अस्पताल ले गए। डायबिटिक पहले से थे। फॉर्च्यून में कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव निकली तो हैलट रेफर कर दिया। 

बेटे के मुताबिक हैलट इमरजेंसी गेट से ही कह दिया गया कि यहां बेड नहीं है, कहीं और ले जाओ। कुछ रिश्तेदारों ने सर्वोदय नगर रीजेंसी ले जाने की सलाह दी। वहां कोविड मरीज सुनते ही मना कर दिया गया। फिर गोविंदनगर रीजेंसी ले गए, वहां भी बाहर से लौटा दिया गया। वापस घर ले जा रहे थे कि एक रिश्तेदार ने नारायणा अस्पताल ले जाने की सलाह दी। नारायणा ले जाते समय लाल पैलेस के पास एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया। बेटे का आरोप है कि उसने जूही पुलिस, सीएमओ और कोविड इंचार्ज विनीत कुमार से भी फोन कर मदद मांगी, लेकिन किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया। मौत के बाद परिजन बारादेवी चौराहे पर करीब दो घंटे खड़े रहे। समझ ही नहीं पा रहे थे कि बिना डेथ सर्टिफिकेट के आखिर कहां ले जाएं। करीब दो घंटे बाद जूही पुलिस ने उन्हें दोबारा हैलट भेज दिया। वहां कोविड मॉर्च्युरी में शव रखवा दिया गया।

शव लिए सात घंटे भटकता रहा बेटा

कंवलजीत सिंह के मुंह से बरबस निकला, इससे दुर्भाग्यपूर्ण भला और क्या होगा। वह इस बारे में जितना बोल रहे थे, उससे अधिक उनकी आंखें और भंगिमाएं मंजर बयां कर रही थीं। बोले, पहले तो सुबह 10 से 12 बजे तक पिता को भर्ती कराने के लिए भटकता रहा। आंखों के सामने पिता ने दम तोड़ दिया। मैं इतना असहाय था कि कुछ नहीं कर सका। फिर बारादेवी चौराहे पर बीच सड़क घंटों पिता का अंतिम संस्कार करवाने के लिए अधिकारियों से गुहार लगाता रहा, लेकिन कोई भी मदद नहीं मिली। पुलिस कहती है हम कुछ नहीं कर सकते हैं और अधिकारी बोल रहे हैं कि डेथ सर्टिफिकेट लेकर घाट चले जाओ। पुलिस-प्रशासन सभी का असली चेहरा देख लिया। सभी अफसर एक-दूसरे का नंबर देकर पल्ला झाड़ते रहे। मृतक के बहनोई डॉ. नवीन श्रीवास्तव ने बताया कि फील्डगन फैक्टरी के हॉस्पिटल से डेथ सर्टिफिकेट बना। इसके बाद शव मार्च्युरी में रखा गया था। शाम करीब सात बजे शव भैरवघाट पहुंचा और अंतिम संस्कार हुआ।

आप खुद कहीं से डेथ सर्टिफिकेट बनवा दो

कंवलजीत ने बताया कि कई बार सीएमओ को फोन लगाने के बाद एक बार उठा। उन्हें समस्या बताई तो उन्होंने कोविड कंट्रोल रूम का नंबर दे दिया। जब कंट्रोल रूम कॉल की तो उन्होंने कोविड इंचार्ज का नंबर दे दिया। वहां मिलाने पर कहा गया कि आप खुद कहीं से डेथ सर्टिफिकेट बनवा दो।

सामने पिता का शव पर छू न सका बेटा

कंवलजीत ने बताया, बारादेवी चौराहे के पास एंबुलेंस में पिता का शव घंटों पड़ा रहा, लेकिन कोई उन्हें छूने तक नहीं दे रहा था। सब बोल रहे थे कि उसे भी कोरोना हो जाएगा, लेकिन ऐसी जिंदगी भी किस काम की, जो पिता के शरीर को भी न छू सके। उनके दर्द और सिसकारियों को देख आसपास खड़े लोगों की भी आंखें नम हो गईं। 

अकेली तड़पती रही पत्नी, पास न आया कोई

निरंजन पाल सिंह की मौत के बाद पत्नी नरेंदर कौर घर पर अकेली बिलख रही थीं। लोग उनके घर तक जाने से डर रहे थे। कुछ रिश्तेदार पहुंचे तो वे भी दूर खड़े रहे। 

पड़ोसियों ने फोन करवाकर कराया सेनेटाइज 

मृतक के बहनोई ने बताया कि साले के घर और आसपड़ोस को पड़ोसियों ने किसी को फोन करवाकर सेनेटाइज करवाया है। अभी उनकी पत्नी और बेटे की कोरोना जांच नहीं हो पाई है। अब शनिवार को इस पर बात की जाएगी।

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