सद्गुरु रितेश्वर महाराज की एक बोध कथा-सद्गुरु इतने ठाठ_बाट में राजाओ की तरह आखिर क्यों रहते हैं..?

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सद्गुरु रितेश्वर महाराज की एक बोध कथा-सद्गुरु इतने ठाठ_बाट में राजाओ की तरह आखिर क्यों रहते हैं..?

सद्गुरु रितेश्वर महाराज की एक बोध कथा-सद्गुरु इतने ठाठ_बाट में राजाओ की तरह आखिर क्यों रहते हैं..?


बहुतों के मन में ये #प्रश्न आता है:
कि माया से परे संत(सद्गुरु) इतने #ठाठ_बाट में राजाओ की तरह आखिर क्यों रहते हैं..?
सलेमाबाद अजमेर के एक अत्यंत ही उच्च कोटि के सद्गुरु हुए स्वामी श्री परशुराम देवाचार्य जी, बड़े ही सिद्ध और भगवत प्राप्त।
परशुराम जी राजाओं की तरह बड़े ठाठ बाट से रहा करते उन्हें इस प्रकार रहते देख एक महंत को शंका हुई, उसने कहा! महाराज! आप तो कहते हैं 
माया सगी ना तन सगो, सगो न यह संसार। ‘परशुराम’ या जीव को, सगा जो सिरजनहार।।
फिर आप संसार में इतना वैभव लेकर क्यों रहते हैं? परशुराम जी उसे अपना यथार्थ परिचय देने के लिए उसी समय सारा वैभव छोड़ कर लंगोटी में अपने स्थान से निकल लिए और नाग पहाड़ की एक कंदरा में जाकर आसन जमाया, महंत को भी अपने साथ ले गए। वे ध्यान लगाकर गुफा में बैठे गए, महंत से भी ध्यान लगाकर बैठ जाने को कहा। वह भी ध्यान लगाकर बैठे।
 3 दिन हो गए इस प्रकार निराहार बैठे-बैठे। चौथे दिन महंत उठकर भिक्षा मांगने चला गया, उसी समय परशुराम जी का एक शिष्य लाखा बंजारा उधर आया किसी वैष्णव को खोजते–खोजते, 
उसका नियम था नित्य किसी वैष्णव को भोजन कराकर स्वयं ग्रहण करने का पर उसे 2 दिन से कोई वैष्णव नहीं मिला था और वह भूखा था।
 गुफा में गुरुदेव को बैठा देख उसके आश्चर्य और खुशी का ठिकाना ना रहा दंडवत प्रणाम कर और उनसे आज्ञा लेकर वह अपने स्थान को वापस गया कुछ ही देर में लौट कर आया और साथ में लाया छड़ी, सिंहासन, पालकी, बहुत से नौकर चाकर और भोग राग का सामान।
विधिवत गुरु की पूजा की और भोग आरोगने को कहा, उसी समय महंत जी भिक्षा से लौटकर आए और राजसी ठाठ बाट फिर से जुटा देख दंग रह गए।
वे समझ गए कि संसार और उसके वैभव से परशुराम जी का वास्तविक संबंध क्या है। परशुराम जी संसार में ऐसे रहते हैं जैसे ‘पंक में कमल’ संसार की गंदगी उन्हें स्पर्श नहीं करती।
 सिद्धियों की उन्हें चाह नहीं सिद्धियां स्वयं ही उनके पीछे लगी रहती हैं, सिद्धियां उन्हें कृतार्थ नहीं करती वह सिद्धियों को कृतार्थ करते हैं, भगवत सेवा में उनका उपयोग कर।
यह कथा शिष्यों के लिए और उन लोगों के लिए है जो सद्गुरु के वैभव ठाट बाट राजशाही रहन-सहन को देखकर न जाने अनेकों तर्क कुतर्क करते रहते हैं और नामापराध के पाप के भागी बनते रहते हैं।
 कभी हमसे ये अपराध न हो बैठे...
या हुआ हो तो बोध जगे,,,
इस सुभिक्षा से ये सुंदर सी बोधकथा जीवमात्र को समर्पित

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